पुरुषों की सोच बढ़ा रही महिलाओं पर परिवार नियोजन का बोझ

पटना।….अगर मैं ऑपरेशन करके पड़ा रहा तो अंदर बाहर कौन देखेगा। कमाएगा कौन.. मेरे यहां परिवार नियोजन महिलाएं कराती हैै। मेरी मां ने भी कराया था, दो बच्चे हो गए अब पत्नी का भी ऑपरेशन करवा दूंगा। पटना में किराना दुकान चलाने वाले 32 वर्षीय गुड्डु साव की इस राय से आम पुरूषों की राय जुदा नहीं है। जिसे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के आंकड़े भी मानते हैं। इस सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में 15 से 49 वर्ष के लगभग 50 प्रतिशत पुरुष यह मानते हैं कि परिवार नियोजन जैसी चीज महिलाओं का हिस्सा है। इसमें उन्हें दखल देने की जरूरत नहीं। वहीं 14 प्रतिशत पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक लेने वाली महिलाएं किसी न किसी अनैतिक कार्यों को अंजाम देती है। एनएफएचएस 5 के यह आंकड़े बिहार में न सिर्फ पुरुषों का एकतरफा रवैया बल्कि राज्य में पुरूषों के परिवार नियोजन के प्रति सोंच से भी वाकिफ कराती है। परिवार नियोजन में पुरूषों की भागीदारी भले ही चिंतनीय है पर तीन दशक पहले पुरूष निश्चित रूप से परिवार नियोजन में अभी के वेग से कहीं आगे थी। एनएफएचएस के आंकड़े कहते हैं कि परिवार नियोजन में पुरूषों की भागीदारी बिहार में वर्ष 1992-93 में 1.3 थी। वहीं वर्ष 2019- 21 के आंकड़ों में 0.3 पर आ गयी। बिहार की तरह ही देश में भी पुरुष नसबंदी की स्थिति लगभग वही थी, जो वर्ष 1992-93 में 3.4 और वर्तमान में यह 1.1 पर आकर गिर गयी है। तीन दशक में हम स्वास्थ्य के कई पैमाने पर आगे निकले। कई माइल स्टोन भी सेट किए। पुरूष नसबंदी ऑपरेशन में नित नई तकनीक और सुरक्षात्मक उपाय जुड़े, फिर भी आखिर हम क्यों इन दशकों में महिलाओं के बजाय पुरूषों को परिवार नियोजन के नजदीक नहीं ला पाए। पुरूष नसबंदी की यह स्थिति वास्तव में एक बार सोंचने को मजबूर जरूर करती है। अभी भी बाकी है अवसर:-मसौढ़ी के 42 वर्षीय मुकेश ने पिछले साल 2022 में अपना नसबंदी करवाया है। उसके बच्चे 9 और 5 साल के हैं। उसने भी सोंचा था कि पत्नी को वह बंध्याकरण ऑपरेशन करा देगा। इसके लिए वह गांव के आशा से मिला।           उसने बताया कि पुरुष नसबंदी ज्यादा आसान है और सुरक्षित भी। मुकेश कहते हैं कि मैंने सोचा पत्नी को कराऊंगा तो उसे परेशानी ज्यादा होगी इसलिए मैंने ही नसबंदी करा लिया। मुकेश की यह सोच अभी भी परिवार नियोजन के पुरुष नसबंदी में आशा कि किरण की तरह है। परिवार कल्याण कार्यक्रम को राज्य और जिला स्तर पर ऐसे पुरूषों को एक रोल मॉडल की तरह उभारने की जरूरत है। लोगों को यह बताना होगा कि पुरूष नसबंदी महिलाओं के बंध्याकरण की तुलना में न सिर्फ आसान है बल्कि उससे कहीं ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद भी है। हालांकि बिहार सरकार इस दिशा में काफी प्रयासरत है। पुरुष नसबंदी पर लाभार्थी को 3 हजार की राशि तथा उत्प्रेरक को 400 रुपए की राशि का प्रावधान है। यह परिवार नियोजन के सबसे ज्यादा दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में से है। पुरुष आज भी नहीं स्वीकार रहे अपनी नसबंदी:-परिवार नियोजन पर रिसर्च कर चुकी पटना एम्स में स्त्री एवं प्रसूति रोग की एडिसनल प्रोफेसर डॉ मोनिका अनंत भी मानती हैं कि परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी न के बराबर है। वह कहती हैं कि परिवार नियोजन के स्थायी और अस्थायी साधनों पर शहरी और ग्रामीण पुरुषों की समझ में भी फर्क है। शहरी पुरुष बेहिचक कंडोम जैसे साधन का इस्तेमाल करते हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उनकी स्वीकार्यता संतोषजनक नहीं है।
परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी पर डॉ मोनिका आगे कहती हैं कि उनके पास जब भी कोई परिवार नियोजन के लिए आता है तो वह परिवार महिला को ही आगे करता है। उनके घर के पुरूषों का सीधा मानना है कि परिवार नियोजन महिलाओं के ही हिस्से की चीज है। एसे मामलों में उन्हें पड़ने की आवश्यकता नहीं। लंबे वर्षों वाले साधनों की मांग:-डॉ. मोनिका कहती हैं कि बिहार में खासकर लंबे अंतराल वाले साधनों की मांग की जाती है, मगर कॉपर टी जैसे लंबे अंतराल वाले अस्थाई साधनों पर भी समाज में काफी मिथ है और समाज में कॉपर टी की स्वीकार्यता बहुत ही कम है। इस कारण भी परिवार नियोजन में स्थायी साधन की तरफ लोगों का रुझान कम है। महिलाओं के बदले दंपत्ति को दे परामर्श:-
देश सहित बिहार में भी यह राय आम है कि महिलाओं में गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की सहमति में पति का योगदान सबसे अधिक होता है। पुरूषों को इस योगदान में खुद को आगे लाना होगा। सिर्फ महिलाओं के बदले दंपित्त को परामर्श देना ज्यादा असरदार होगा। पुरुष नसबंदी के फायदे गिनाने होगे। कंडोम के इस्तेमाल के साथ पुरुषों के इसके फायदे भी गिनाने होंगे कि यह न सिर्फ परिवार नियोजन बल्कि किसी भी प्रकार के यौन संक्रमण वाले रोगों (एचआईवी और एड्स) के प्रसार में फायदेमंद है।

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