मलेशिया स्थिति दक्षिण पूर्व एशिया की 28 वीं सबसे उंची चोटी पर चढाई करेगी लक्ष्मी झा

सहरसा:-जिले के बनगांंव की बेटी लक्ष्मी झा मलेशिया के माउंट किनाबालु बोर्नियो एवं मलेशिया के सबसे उंचे पर्वत पर चढ़ाई करेने के लिए दिल्ली से रवाना हुई। जहां लक्ष्मी झा 4095 मीटर पर चढाई करेगी। यह पृथ्वी पर एक द्वीप की तीसरी सबसे उंची चोटी है। जो दक्षिण पूर्व एशिया की 28 वीं सबसे उंची चोटी एवं दुनिया का 20 वांं सबसे प्रमुख पर्वत है। ऐसा करनेवाली भारत की पहली पर्वतारोही है। उनकी इस यात्रा की सारी व्यवस्था हर बार की तरह आरके सिन्हा कर रहे हैं। ज्ञात हो कि दो फरवरी 1997 को एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुई लक्ष्मी झा अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है। वह पर्वतारोहण की दुनिया में जाना पहचाना नाम हो गयी है। उन्होंने अनेक अवसरों पर ना सिर्फ अपना बल्कि देश का गौरव बढ़ाया है। लक्ष्मी झा के सपनों को पंख तब लगे जब 2019 में किसी परिचित के माध्यम से उनकी मुलाकात राज्यसभा के पूर्व सदस्य डॉ. आर के सिन्हा से हुई। लक्ष्मी झा की इच्छा बचपन से ही पर्वतारोहण के क्षेत्र में कैरियर बनाने की थी। लेकिन अथार्भाव के कारण वह अपनी इच्छा को दबाये बैठी थी। डॉ. सिन्हा अपने कई कारोबार के अलावा अवसर ट्रस्ट भी चलाते है।           जिसमें गरीब बच्चों की पढ़ाई लिखाई के अलावा उनके रहने खाने की मुफ्त व्यवस्था रहती है। डॉ. सिन्हा ने लक्ष्मी के सपनों को पंख दिया। उन्होंने उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट से लक्ष्मी के प्रशिक्षण की व्यवस्था कराई एवं उसका सारा खर्च उठाया। उसी वर्ष सोलो बेस कैम्प पर तिरंगा झंडा फहराकर लक्ष्मी ने अपने हिम्मत एवं हौसले का लोहा मनवा लिया। ऐसा करनेवाली वह बिहार की पहली पर्वतारोही बनी। नतीजतन उन्हें विद्यापति पर्व समारोह के दौरान मिथिला के सबसे बड़े साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ. सिन्हा की प्रेरणा से लक्ष्मी झा ने वर्ष 2023 में दक्षिण अफ्रीका की सबसे उंची चोटी क्लिमजार पर्वत पर महिलाओं में सबसे कम समय 41 घंटा में पहुंंचने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया। उसी वर्ष तुर्की की सबसे उंची चोटी अरारत पहुंंचने वाली भारत की पहली पर्वतारोही बनी। वर्ष 2023 में ही लद्दाख की मेंटोक चोटी पर लक्ष्मी ने तिरंगा फहराया। लक्ष्मी के इस प्रयास में हर बार आर के सिन्हा ने ना सिर्फ आर्थिक मदद दी बल्कि हर तरह से सहयोग किया। लक्ष्मी अपनी कामयाबी का श्रेय डॉ. आर के सिन्हा को देती हैं। वह कहती हैं कि जिस ईश्वर ने बचपन में उनके सिर से पिता का साया हटा लिया था। अब वही ईश्वर इसके लिए सिन्हा जी को भेज दिया है।

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