हर्षोल्लास के साथ भाई बहन का अटूट महापर्व रक्षाबंधन संपन्न

बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर, तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुख समृद्धि की किया कामना

सहरसा:-जिले भर में सोमवार को भाई-बहन के प्यार, विश्वास एवं पवित्रता का अटूट महापर्व रक्षाबंधन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सुबह से ही बहने अपने भाइयों के घर राखी बांधने के लिए चल दिए। रक्षाबंधन को लेकर शहर में काफी भीड़ देखने को मिली। रक्षाबंधन के दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर, तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना की तथा भाईयो से जीवन भर हर मुसीबत से अपनी रक्षा का शपत ली।                     रक्षाबंधन को लेकर मिठाई दुकानदारो की चांदी रही। पंडित वंशीधर झा राणा के अनुसार रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त सोमवार को दोपहर दो बजकर एक मिनट से तीन बजकर दस मिनट तक था। वही रक्षाबंधन पर्व को लेकर भगवती विषहरा मंदिर दिवारी, महावीर चौक सहरसा में भव्य मेला का आयोजन किया गया। मेला में लोगों की काफी भीड़ देखने को मिली। मेला में प्रशासन की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था के बीच किसी की एक न चली और लोगों ने मेला का जमकर आनंद लिया। वही रक्षाबंधन पर्व को लेकर सोशल मिडिया के व्हाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर साइटस पर बधाई देने का संदेश एक सप्ताह पहले से चल रहा है। सोशल मिडिया पर भाई-बहन का राखी बांधते तस्वीर, राखी का फोटो सहित कई तरह के मैसेज शेयर किये जा रहे है।           वही सोशल साइटस पर कई लोगों के द्वारा चाइनीज राखी का उपयोग नही करने की अपील किया जा रहा है। समाजसेवी सरिता राय ने कहा कि रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का पर्व है। रक्षा का यह सूत्र आपके इस पावन रिश्ते को सदैव मजबूती के साथ जोड़े रहे। ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि हमारी पावन संस्कृति का यह उत्सव सभी के जीवन को सुख-सौभाग्य व समृद्धि से परिपूर्ण रखे। उन्होंने आगे कहा कि भाई-बहन के असीम प्रेम, अटूट स्नेह एवं अनमोल रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन का यह पावन पर्व जाति, धर्म, पंथ से ऊपर उठकर परस्पर बंधुत्व और मेलजोल को बढ़ावा देने वाला अनोखा त्यौहार है। यह उत्सव भारतीय समाज में महिलाओं को बराबरी का हक देता है। मुझे आशा है कि राखी का यह त्यौहार सभी देशवासियों के जीवन में प्रेम, सौहार्द, एकजुटता और आपसी सद्भावना के रिश्तों को और ज्यादा संबल देगा। उन्होंने कहा कि बहन प्रण हैं, प्राण हैं, प्रेरणा हैं, मां हैं, ममता हैं, मंगल हैं साथ ही जीवन की आस और उल्लास हैं। रक्षाबंधन के इस स्नेहिल पर्व पर सभी बहनों के जीवन में सुख-समृद्धि के नए रंग खिले तथा स्नेह की अनमोल डोर से बंधा यह पवित्र रिश्ता और मजबूत हो, यही अदृश्य शक्ति से विनती करता हूं।           वही पौराणिक कथानुसार एक सौ यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली। बलि के गुरू शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी। वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहा रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया। जब बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा। इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयी। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी इसी दिन से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा। वही भविष्य पुराण के अनुसार-रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है।
“येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
दानवेन्द्रो मा चल मा चल।।”
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया यथा रक्षाबंधन अस्तित्व में आया और श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।

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