आजाद भारत के सफर में पिछड़े वर्ग के मसीहा के रूप में सदैव याद किए जायेंगे बी पी मंडल:-राठौर

बी पी मंडल की जयंती 25 अगस्त पर राठौर की कलम से…..

मधेपुरा:-राष्ट्र के पिछड़े वर्ग को समस्त अधिकार दिलाने को संकल्पित, प्रखर वक्ता, पिछड़े वर्ग के मसीहा, स्वाभिमानी ….ये सारी उपमाएं भी कम पड़ सकती है मधेपुरा रत्न और मण्डल आयोग के प्रणेता बी पी मंडल हेतु। एक ओर वो जितने ही निडर व स्वाभिमानी थे दूसरी ओर उतने ही सरल भी। 25 अगस्त 1918 को वाराणसी में जन्में बी पी मंडल के जीवन का दुर्भाग्य भी रहा की जन्म के अगले ही दिन 26 अगस्त को रोग शय्या पर उनके पिता का निधन हो गया।           जिससे उनका जीवन पिता के लाड प्यार से ताउम्र वंचित रहा।उनकी प्रारम्भिक शिक्षा मुरहो से प्रारम्भ कर वर्ष 1927 में मधेपुरा में सीरीज इंस्टीट्यूट में दाखिला ले अपने अग्रज कमलेश्वरी प्रसाद मंडल के संरक्षण में शिक्षा प्राप्त की। बाढ़ की विभीषिका के कारण उनका नामांकन दरभंगा राज उच्च विद्यालय में कराया गया। छात्र जीवन से ही बेबाक और स्वाभिमानी रहे बी पी मंडल ने इसका परिचय विद्यालय में व्याप्त जातीय भेदभाव का कड़ा प्रतिकार करते हुए दिया।       पटना कॉलेज में अंग्रेजी ऑनर्स में एडमिशन ले आगे की पढ़ाई शुरू की। इसी बीच बड़े भाई के पी मण्डल के निधन के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ उन्हें अपने कर्म भूमि मुरहो वापस आना पड़ा। 1937 में सीता मंडल के संग विवाह बन्धन में बंधे। धीरे धीरे उनका झुकाव राजनीति के ओर होने लगा। 1952 में पहली दफा विधानसभा के लिए चुने गए बी पी मण्डल तीन बार विधान सभा, एक बार विधान परिषद और दो बार लोकसभा के सदस्य रहे। सत्य के प्रति उनका रुझान अद्भुत था तभी तो पामा कांड में सत्ताधारी दल में होते हुए भी विधानसभा में चर्चा के दौरान सरकार का कड़ा विरोध किया। सहयोगियों द्वारा मना करने और समझाने पर विपक्ष की ओर जाकर बैठ गए। जिसका परिणाम हुआ की कांग्रेस के साथ 13 वर्षों का अटूट सम्बन्ध एकाएक खत्म हो गया।विषम दौर में एक फरवरी 1968 को सूबे के सातवें और पहले यादव मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर उन्होंने पिछड़े वर्ग को गौरवान्वित किया। 47 दिन के अल्पावधि में ही कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण उनकी सरकार गिर गई। लेकिन अल्प अवधि में ही उन्होंने राजनीति के अखाड़े में सरकार के दलालों की नींद हराम कर अपने नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया।                                1979 में जब समता पार्टी की केंद्र सरकार द्वारा दूसरे पिछड़ा आयोग का गठन किया गया तो बी पी मण्डल आयोग के अध्यक्ष बनें और यह मण्डल आयोग कहलाया। अल्पावधि में ही कांग्रेस के सरकार में आ जाने के कारण इस आयोग पर काले बादल मंडराते लगे। ऐसे गम्भीर हालात में बी पी मंडल ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कांग्रेस की पुनः सदस्यता ग्रहण करते हुए देश के कोने-कोने का भ्रमण कर 3743 जातियों की पहचान अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में कर अनसूचित जाति/जन जाति की तरह आरक्षण की अनुशंसा की। 31दिसम्बर 1980 को रिपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को सौंप उन्होंने एक नए क्रांतिकारी अध्याय की आधारशिला रखी। लेकिन दुखद पहलू ही रहा की इस आयोग की सिफारिशों का विरोध शुरू हुआ और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। जहां देश के चर्चित अधिवक्ता राम जेठ मलानी के प्रयास से कोर्ट ने अपना फैसला मण्डल आयोग के पक्ष में दिया। और इस प्रकार रिपोर्ट जमा करने के लगभग एक दशक उपरांत 13 अगस्त 1990 को यह लागू हुआ। आयोग की रिपोर्ट सौंपना शायद बी पी मंडल का आखिरी लक्ष्य था तभी तो रिपोर्ट जमा करने के बाद उन्होंने अपने द्वारा किए महान पुण्य के सुखद अनुभव को प्राप्त किए बिना ही 64 वसंत का दीदार करने वाले बी पी मंडल 13 अप्रैल 1982 को आखिरी सांस ली।          आज बी पी मंडल निसंदेह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आजादी के बाद भारत में हुए बड़े बदलावों के पन्ने जब भी पलटे जाएंगे तब 21 मार्च 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी के उद्घाटन भाषण से लेकर 12 दिसम्बर 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के समापन भाषण के बीच अथक प्रयास से सम्पन्न मण्डल आयोग की सिफारिशों के साथ बी पी मण्डल मानस पटल पर उपस्थित होंगे।

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