मैथिली शब्द लोक के तत्वावधान में एकल काव्य पाठ का हुआ आयोजन

सहरसा:- स्थानीय प्रमंडलीय पुस्तकालय सुपर बाजार में देर शाम तक साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक संस्था मैथिली शब्द लोक के तत्वावधान में चर्चित कवि रघुनाथ मुखिया का एकल काव्य पाठ का आयोजन किया गया।   कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। अतिथियों का स्वागत शॉल ओढ़ाकर किया गया। कार्यक्रम का आरंभ प्रसिद्ध भाषा विचारक डॉ. राम चैतन्य धीरज, समालोचक डॉ. कमल मोहन चुन्नू, कवि रघुनाथ मुखिया, त्रिवेणीगंज से आये हुए साहित्यकार शम्भूनाथ अरुणाभ, डॉ. विश्वनाथ शराफ, पूर्णिया से आये सुरेन्द्रनाथ, डॉ. निक्की प्रियदर्शिनी, शैलेंद्र शैली, पारस कुमार झा, ललन झा, अविनाश शंकर बंटी, आनंद झा, रणविजय राज, मुख्तार आलम, राजेश रंजन ने दीप प्रज्वलित कर किया। कवि रघुनाथ मुखिया ने विभिन्न भाव भंगिमा के स्वरचित अठारह कविताओं का पाठ किया। स्रोता रोमांचित होते रहे और तालियां बजा बजाकर सराहना करते रहे।इसके बाद रघुनाथ मुखियाक की कविताओं पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। प्रसिद्ध भाषा विचारक डॉ. राम चैतन्य धीरज ने कहा कि कविता में अगर ज्ञान नहीं, सिद्धांत नहीं तो वह कविता नहीं मन का प्रवाह मात्र है। इस अर्थ में रघुनाथ मुखिया की कविता समग्रता को नही छूती है लेकिन इनकी कविता में प्रगतिशीलता है।         संघर्ष को स्वर देनेवाले कवि अपने सामाजिक व्यवस्था को सहज बिम्ब और नये उपमानो में संजोया है। युवा कवि रघुनाथ जी भविष्णु है।सर्वहारा की पक्षधरता से ये विचलित नहीं होंगे, यही कामना है। प्रखर समालोचक कमल मोहन चुन्नू ने रघुनाथ की कविता की भाषा की सराहना करते हुए कहा कि भाषा और संस्कृति पर होने वाले किसी भी हमले को यह कविता जबाव देती है। समकालीन कवियों में इनका प्रमुख स्थान है। त्रिवेणीगंज से सहरसा पहुचे साहित्यकार शंभुनाथ अरुणाभ ने श्री मुखिया की कविताओं में भरी करुणा तथा व्यंग पर प्रकाश डाला और उनकी कविता को विलक्षण बताया। डॉ. विश्वनाथ शराफ ने कहा कि रघुनाथ मुखिया की कविता का सौंदर्य आकर्षित करता है। इनमें प्रवाह है, एक दर्द है, जीवन संघर्ष है। डॉ. निक्की प्रियदर्शिनी ने कहा कि रघुनाथ मुखिया सशक्त, साहसी और शिल्पकारी कवि हैं। इनकी रचना सत्ता के विरुद्ध, समाज मे व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध अधिक देखने को मिलती है। कोसी की त्रासदी से निकले हुये एक श्रेष्ठ कवि के रूप में इनकी पहचान मैथिली साहित्य में मानी जाती है। ये मूलतः टीस से भरे हुए रचनाकार हैं। शैलेंद्र शैली ने कहा कि मैथिली के चेतनासंपन्न प्रगतिशील युवा कवि रघुनाथ मुखिया की कविता सब बहुत समीचीन प्रश्न उठाती है। उनकी कविता में बिम्ब का बहुत सार्थक प्रयोग है जो पाठक को आनंदित करती है। शोषित वंचित की कविता से लेकर राजनैतिक व्यंग और संस्कृतिक ह्रास को बात करती कविता अद्भुत है। वस्तुतः वैचारिक उद्वेलन के कवि हैं रघुनाथ। पूर्णिया से पधारे साहित्यकार श्री सुरेंद्रनाथ ने इन कविताओं में भ्रष्टाचार पर हुए व्यंग की चर्चा की तथा रघुनाथ को सुपौल परिसर का सबसे उम्दा कवि कहा। इनकी कविता की विविधता प्रेरित करती है। डॉ. श्रीमंत जैनेंद्र ने कहा कि रघुनाथ मुखिया जी जिस समाज से आते हैं, उनकी आवाज को मुखर होकर उठाते क्योंकि आधुनिक समय में भी साहित्य में उनकी उपस्थिति नगण्य है।         रघुनाथ भरोसा को मजबूत करते हैं। सहरसा में इन पर एकल पाठ होना साहित्य जगत में एक ऐतिहासिक घटना है। कथाकार मुक्तेश्वर प्रसाद ने कहा कि रघुनाथ की कविता के बिंब खांटी हैं। ये दबे कुचले की आवाज अपनी कविता में उठाते हैं। इनकी जनपक्षधरता प्रभावित करती है। कार्यक्रम को रणविजय राज, ललन झा आदि ने भी सम्बोधित किया।कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. राम चैतन्य धीरज और संचालन मुख्तार आलम ने किया। इस अवसर पर राजाराम सिंह, राजेश रंजन, ओम सिंह राजपूत, राहुल कुमार पांडेय, रविशंकर कुमार सहित कई मौजूद थे।

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