केदारनाथ का रहस्य, आखिर बंद कपाट के अंदर कैसे जलता है दीप, कौन करता है मंदिर में पूजा

डेस्क:-केदारनाथ मंदिर का कपाट 02 मई को भक्तों के लिए खुलने जा रहा है। केदारनाथ मंदिर को लेकर हिंदुओं में कई मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि केदारनाथ में स्थित ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से व्यक्ति के लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। यह मंदिर 06 महीने तक बंद रहता है और महज 06 महीने ही यहां भक्त दर्शन कर पाते हैं।          लेकिन जब मंदिर बंद रहता है उस समय भी मंदिर के अंदर दीपक खुद-ब-खुद जलता रहता है। आखिरी कौन उन 06 महीनों के दौरान मंदिर के अंदर पूजा करता है। ऐसी ही इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य शिव पुराण में बताए गए हैं। आइए जानते हैं केदारनाथ मंदिर से जुड़े कुछ हैरान कर देने वाले रहस्य। केदारनाथ जहां आरंभ और अंत एक साथ आकर मिलते हैं। जहां भगवान शिव के होने का एहसास मिलता है। जहां दुखी मन को शांति मिलती है और मुक्ति के द्वार का मार्ग आरंभ होता है। शिव पुराण की कोटि रुद्र संहिता में वर्णन मिलता है। जो मनुष्य केदारनाथ की यात्रा भाव से जा रहा है और मार्ग पर चलते समय किसी कारण उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसे भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। केदारनाथ की महिमा सिर्फ इतनी ही नहीं है शिव पुराण के अनुसार जो मनुष्य केदारनाथ का दर्शन करता है और वहां मौजूद कुंड का जल पान करता है वह भी जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। आइए उस केदारेश्वर भगवान शिव के परम धाम केदारनाथ के उन रहस्यों को जानते हैं जो जीव आत्मा को मुक्ति प्रदान करता है। आइए केदारनाथ के अनकहे रहस्यों को जानते हैं…। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। साथ ही पंच केदार में से भी एक है। शिवपुराण के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र महाराज जनमेजय ने कराया था। यहां स्वयंभू शिवलिंग है। साथ ही इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने कराया था। केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र में उनके पूर्वज भगवान नर नारायण और दक्ष प्रजापति के समय से यहां पूजा करते आए हैं।           उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार पांडवों के पौत्र राजा जनमेजय ने दिया था। साथ ही संपूर्ण केदार क्षेत्र भी उन्हें दान में दे दिया था। केदारनाथ के जो मुख्य पुजारी शंकराचार्य के वंशज है जो कर्नाटक के वीराशैवा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जिन्हें रावल नाम से पुकारा जाता है। केदारनाथ के मुख्य पुजारी रावल होने के बाद भी वह वहां पूजा नहीं कराते हैं। वह दूसरे पुजारियों को निर्देश देकर पूजा कराते हैं। केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है। पहला 1) गर्भगृह 2) मध्य भाग 3) सभा मण्डप। गर्भगृह में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। ज्योतिर्लिंग के आगे के हिस्से पर भगवान गणेश के साथ मां पार्वती का श्री यंत्र भी स्थित है। ज्योतिर्लिंग देखने पर ऐसा लगता है कि वहां प्राकृतिक रुप से यज्ञोपवीत (जनेऊ) अंकित देखा जा सकता है। साथ ही पिछले भाग पर प्राकृतिक स्फटिक की माला देखी जा सकती है। यहां हजारों वर्षों से एक दीपक जल रहा है। जब मंदिर छह महीने के लिए बंद कर दिया जाता है उस समय भी यह दीपक अपने आप जलता रहता है। मंदिर में अंदर चार विशालकाय स्तंभ भी हैं जिन्हें 04 वेदों का प्रतीक माना जाता है। इनके पीछे से परिक्रमा करनी चाहिए। भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए।      तब नर और नारायण ने वरदान मांगा कि आप ज्योतिर्लिंग रूप में सदा के लिए यहां वास कर जाएं। भगवान शिव ने उनका वरदान पूरा किया और सदा के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में केदारनाथ में वास कर गए। पुराणों के अनुसार महाभारत का युद्ध जब समाप्त हुआ तो भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास जा रहे थे। पाप से मुक्ति पाने के लिए वह भगवान शिव से आशीर्वाद पाना चाहते थे। लेकिन भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शिव की खोज में पांडव पहले काशी पहुंचे लेकिन भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो गए। भगवान शिव को खोजते खोजते पांडव हिमालय आ पहुंचे लेकिन भगवान शिव वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन पांडवों ने हार नहीं मानी और भगवान शिव को पाने की खोज जारी रखी। जब पांडव केदार पहुंचे तो भगवान शिव उनसे छिपने के लिए बैल का रूप धारण कर बाकी पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया। भीम ने अपने दोनों पैर अलग-अलग पहाड़ों पर रख दिए। बाकी सारे बैल उनके पैर से निकल गए पर बैल रूप में मौजूद भगवान शिव नहीं गए। इसके बाद भीम ने बैल पर जैसे ही झपट्टा मारा तो बैल का त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति देखकर प्रसन्न हो गए। जब भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो रहे थे तो धड़ का ऊपरी हिस्सा काठमांडू पहुंच गया जो आज पशुपति नाथ के नाम से मशहूर है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में , मुख रुद्रनाथ में , नाभि मद्महेश्वर में और भगवान शंकर की जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसलिए इन चार स्थानों को पंच केदार कहा जाता है। केदारनाथ को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी है कि जब असुरों ने देवताओं पर आक्रमण किया तो तब असुरों से बचने के लिए देवताओं ने भगवान शिव की आराधना की थी। जिसके बाद शिव बेल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने देवताओं से कहा कोदारम यानी किसी चीरूं किसे फाडूं। इसके बाद बैल स्वरूप भगवान शिव से असुरों का सींगों और खुरों से नाश कर दिया। इन असुरों को भगवान शिव ने मंदाकिनी नदी में फेंक दिया। केदारनाथ का नाम कोदारम से ही पड़ा है। केदारनाथ मंदिर के पास एक रेतस नाम का कुंड है। कुंड के पास ओम नम: शिवाय बोलने पर पानी में बुलबुले उठते हैं। साथ ही इस कुंड का पानी पीने से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। जहां से केदारनाथ की यात्रा आरंभ करते हैं तो वहां गौरी कुंड स्थित है। गौरी कुंड का पानी हमेशा गर्म रहता है। यहां स्नान करने के बाद ही केदारनाथ की यात्रा आरंभ होती है। इस कुंड को लेकर मान्यता है कि इसके पास माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। उस समय देवी पार्वती के लिए ही यहां गरम पानी स्रोत प्रकट हुआ था। इसलिए यहां का नाम मां पार्वती के नाम पर गौरी कुंड पड़ा।         केदारनाथ मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि जब मंदिर 06 महीने के लिए बंद रहता है तो उन छह महीनों में भी दीप अपने आप जलता रहता है। केदारनाथ मंदिर के आस-पास रहने वाले लोग बताते हैं कि मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भी मंदिर के अंदर से घंटी बजने की आवाज आती है। पुराणों के अनुसार इन छह महीनों में देवता गण यहां पूजा करते हैं। यानी मंदिर 06 महीने मनुष्यों के लिए और बाकी छह महीने देवताओं के लिए खुलता है।

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