हर्षोल्लास के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ संपन्न

सहरसा:- छठ महापर्व जिले सहित विभिन्न प्रखंडों में भक्तिमय वातावरण में सम्पन्न हो गया। पूजा को लेकर शहर सहित ग्रामीण इलाकों के विभिन्न छठ घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग अपने-अपने घरों से छठ व्रतियों के साथ छठ का डाला लेकर छठ घाट की ओर निकल पड़े।             छठ पर्व को लेकर छठ व्रतियों के द्वारा 24 घंटे का निर्जला व्रत रखा गया। जिले के घाटों पर प्रशासन की चौक चौबंद व्यवस्था थी। शहर के शंकर चौक, सतपोखरिया, मत्स्यगंधा, मसोमात पोखर, गांधी पथ, पोलटेक्निक ढ़ाला, कचहरी, सराही, पासवान टोला व सोनवर्षा प्रखंड के घाट व शाहपुर पंचायत के घाट सहित कई घाटों पर छठ व्रतियों के द्वारा छठ माता की पूजा अर्चना की गई। छठ पूजा को लेकर शहर सहित ग्रामीण इलाकों का माहौल भक्तिमय हो गया था। छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्टी को मनाई जाती है। इसे सूर्यषष्टी भी कहा जाता है। छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक नियम निष्ठा के साथ श्रद्धालुओं के द्वारा मनाया गया।          यह पर्व चतुर्थी से सप्तमी तक चलता है। इस व्रत में श्रद्धालुओं के द्वारा माता छठी की पूजा अर्चना की गई। भारत की विविध संस्कृति का एक अभिन्न अंग यहां के पर्व है। भारत में ऐसे कई पर्व मनाए जाते है जो बेहद कठिन माने जाते है और इन्ही पर्वो में से एक है छठ पर्व। छठ को सिर्फ पर्व ही नहीं महापर्व भी कहा जाता है। छठ पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाने के ठीक छः दिन बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चौत्र अप्रैल-मई में दूसरी बार कार्तिक अक्टूबर-नवम्बर में। चौत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले छठ को कार्तिकी छठ व डाला छठ कहा जाता है। छठ पर्व की परंपरा सदियों से चली आ रही है।          वेदों के अनुसार इस व्रत में भगवान सूर्य देव की पत्नी उषा छठी मैया की पूजा की जाती है। ऐसा मान्यता है कि इस व्रत के करने से छठी माता बच्चों की रक्षा करती है। इस व्रत को संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता है। इस दिन सूर्य देव की विशेष पूजा का विधान है। इस पूजा के द्वारा सूर्य देव को धन्यवाद दिया जाता है। जिनकी कृपा से ही इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है और जो हमें आरोग्य प्रदान करते है। भगवान सूर्य देव ही एकमात्र ऐसे देव है जिन्हें हम प्रत्यक्ष देख सकते है। सूरज के प्रकाश से ही पृथ्वी पर प्रकृति का चक्र चलता है। खेती के द्वारा अनाज और वर्षा के द्वारा जल की प्राप्ति हमें सूर्य देव की कृपा से ही होती है। सूर्यषष्टी की पूजा भगवान आदित्य के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता को दर्शाने के लिए ही की जाती है। इस त्यौहार को बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी हर्षोल्लास एवं नियम निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार में देवी षष्ठी माता एवं भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही व्रत रखते है। इसमें गंगा स्नान का महत्व सबसे अधिक होता है। लोक मान्यताओं के अनुसार सूर्य षष्ठी या छठ व्रत की शुरुआत रामायण काल से हुई थी। इस व्रत को सीता माता समेत द्वापर युग में द्रौपदी ने भी किया था। इस दिन षष्टी देवी की कथा भी सुनी जाती है।         पौराणिक कथा के प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था।दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गई नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्महत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधी-विधान से पूजा की इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा। एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा।           इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। एक मान्यता यह भी है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन है और उन्ही को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हे साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी, तालाब या पोखर के किनारे यह पूजा की जाती है। वैसे तो छठ पर्व व्रतियों की हर मनोकामना को पूरा करने वाला है पर लोग इसे सबसे ज्यादा पुत्र प्राप्ति की कामना से करते है। छठ के एक गीत कांचही बांस के डलवा बुनाओल कोशिया भराओल रे…. में बताया गया है कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है। इस तरह से छठ महापर्व की समाप्ति होती है और फिर से आने वाले साल का इंतजार किया जाता है। वही दूसरी ओर जिले के सोनवर्षा प्रखंड के शाहपुर पंचायत में छठ घाट पर युवाओं के द्वारा छठ घाट को आकर्षण रूप से सजाया गया था व लाइट की व्यवस्था किया गया था। और अर्घ्य देने के लिए दूध की व्यवस्था किया गया था। वही छठ घाट पर प्रोजेक्टर से छठ मैया की कथा दिखाया जा रहा था।           छठ घाट को सजाने में स्वराज शांडिल्य उर्फ मुनमुन, सन्नी, साहिल, बबुआ, धन्नू, सुमन का सराहनीय योगदान रहा। डेली बिहार के संपादक आशिष कुमार झा छठ घाट पर घूमकर लोगों को छठ की बधाई दिया

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