प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक मानवाधिकारों की यात्रा

पटना:-मानवाधिकारों का इतिहास एक लंबी और विविध यात्रा रही है, जो प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक वैश्विक दृष्टिकोण तक फैली हुई है। मानवाधिकारों का विचार हमेशा से ही मनुष्यों के अधिकारों की रक्षा और सम्मान से जुड़ा हुआ है, लेकिन इन अधिकारों की पहचान और संरक्षा का प्रयास समय के साथ विकसित हुआ है। प्रारंभिक काल में मानवाधिकारों की अवधारणा संकुचित और सीमित थी, जो आज के समान व्यापक और सार्वभौमिक नहीं थी। प्राचीन भारत में मानवाधिकारों की भावना वेदों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में झलकती थी, जहां प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान और स्वतंत्रता का अधिकार माना जाता था। हालांकि, उस समय समाज में वर्ग, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव मौजूद था। लेकिन फिर भी धर्म और अहिंसा के सिद्धांतों ने मानवाधिकारों के संरक्षण की नींव रखी। ग्रीस और रोम में भी नागरिकों के अधिकारों की अवधारणा थी, लेकिन यह केवल कुछ विशेष वर्गों तक ही सीमित थी। वहीं, इंग्लैंड में 1215 में मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर हुए, जो उस समय के शाही अधिकारों और नागरिकों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का पहला कदम था। मानवाधिकारों की आधुनिक अवधारणा का आरंभ 17वीं और 18वीं शताब्दी में हुआ, जब अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की अवधारणा को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। 1776 में अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा में जीवन, स्वतंत्रता और सुख की तलाश के अधिकारों की बात की गई। फ्रांसीसी क्रांति के समय 1789 में मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों को वैश्विक स्तर पर फैलाया। इन क्रांतियों ने मानवाधिकारों को एक व्यापक और सार्वभौमिक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन मानवाधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 20वीं शताब्दी में आया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, पूरी दुनिया ने देखा कि युद्ध ने मानवता को किस हद तक आहत किया था। इसके परिणामस्वरूप, 1945 में संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ और 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया गया। इस घोषणा ने मानवाधिकारों की संपूर्ण सूची दी, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता, शिक्षा, रोजगार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त करने का अधिकार शामिल था। यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ था जिसने दुनिया भर में मानवाधिकारों की परिभाषा को नया रूप दिया। मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई संगठन और संस्थाएं काम करती हैं। संयुक्त राष्ट्र, जो एक वैश्विक संगठन है, मानवाधिकारों के संरक्षण का सबसे प्रमुख संरक्षक है। संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद और मानवाधिकार उच्चायुक्त जैसी संस्थाएं मानवाधिकारों के उल्लंघन पर निगरानी रखती हैं और आवश्यक कदम उठाती हैं। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय भी मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने का कार्य करता है। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में हर व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त कराना और किसी भी प्रकार के भेदभाव, उत्पीड़न और असमानता को समाप्त करना है।भारत में भी संविधान के तहत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया गया है।                           भारतीय संविधान में मूल अधिकार का प्रावधान किया गया है, जो हर भारतीय नागरिक को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय का अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों में धर्म, जाति, लिंग या भाषा के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और जीवन का अधिकार शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय न्यायपालिका ने कई महत्वपूर्ण फैसलों के माध्यम से मानवाधिकारों की रक्षा की है। जैसे कि 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता केवल उचित प्रक्रिया के तहत छीनी जा सकती है। इसी तरह, 1997 में विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के खिलाफ दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में की गई थी, जो मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करता है और उचित कार्रवाई करता है। राज्य स्तर पर भी मानवाधिकार आयोगों का गठन किया गया है, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। भारतीय समाज में विभिन्न जातियों, धर्मों और भाषाओं के लोग रहते हैं, और यहाँ सामाजिक असमानताएं और भेदभाव की समस्याएं भी विद्यमान हैं। इसलिए, भारत में मानवाधिकारों का संरक्षण और पालन अत्यंत आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति को समानता, स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त हो, और समाज में शांति और समरसता बनी रहे। इस वर्ष का मानवाधिकार दिवस का थीम है “हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, अभी”। मानवाधिकार व्यक्तियों और समुदायों को बेहतर कल बनाने के लिए सशक्त बना सकते हैं। मानवाधिकारों की पूरी शक्ति को अपनाकर और उस पर भरोसा करके, जिस दुनिया को हम चाहते हैं, हम अधिक शांतिपूर्ण, समान और टिकाऊ बन सकते हैं। इस मानवाधिकार दिवस पर हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि मानवाधिकार किस तरह समाधान का मार्ग है, जो अच्छे के लिए निवारक, सुरक्षात्मक और परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस वर्ष का विषय हमारे दैनिक जीवन में मानवाधिकारों के महत्व और प्रासंगिकता को स्वीकार करने का आह्वान है। हमारे पास नफ़रत भरे भाषण के खिलाफ़ बोलकर, गलत सूचना को सही करके और गलत सूचना का मुकाबला करके धारणाओं को बदलने का अवसर है। यह मानवाधिकारों के लिए एक वैश्विक आंदोलन को फिर से जीवंत करने के लिए कार्रवाई को संगठित करने का समय है। हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है, जो 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की स्वीकृति की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में मानवाधिकारों के महत्व को पहचानने और उनके संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है। मानवाधिकारों का इतिहास एक लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा रही है, जो निरंतर विकसित होती रही है। यह यात्रा न केवल अधिकारों की पहचान से जुड़ी रही है, बल्कि उन अधिकारों के संरक्षण और सम्मान की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। आज, मानवाधिकारों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति को उसकी गरिमा, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार मिले, और हर स्थान पर असमानताओं का अंत हो।

लेखक:-निरंजन कुमार
अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय

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