समेकित मत्स्य पालन: सतत आय का प्रभावी स्रोत

पटना:-मत्स्य पालन के साथ कृषि के विभिन्न अवयवों को समाहित करने की प्रक्रिया समेकित मत्स्य पालन कहलाती है। चूँकि मत्स्य पालन के साथ-साथ कृषि, बागवानी तथा पशुपालन भी शामिल होता है, इसलिए किसान पूरे वर्ष अपनी उपज बेचकर अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए धन अर्जित कर सकते हैं।    समेकित मत्स्य पालन लघु एवं सीमांत किसानों के लिए सतत आय का एक प्रभावी स्रोत माना जाता है। इससे ग्रामीण किसानों में आत्मनिर्भरता को बल मिलता है और गाँव में मौजूद साहूकारों पर उनकी निर्भरता कम हो सकती है। अतः ग्रामीण आजीविका की वृद्धि में समेकित मत्स्य पालन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। समेकित मत्स्य पालन की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में “ग्रामीण आजीविका सुधार हेतु समेकित मत्स्य पालन की तकनीकियाँ” विषय पर पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 18 से 22 मार्च 2025 तक चलेगा, जिसमें अररिया जिले के 30 किसान भाग ले रहे हैं। प्रशिक्षण का उद्घाटन डॉ. आशुतोष उपाध्याय, विभागाध्यक्ष, भूमि एवं जल प्रबंधन विभाग की उपस्थिति में हुआ। उन्होंने समेकित मत्स्य पालन के महत्व को रेखांकित करते हुए लघु एवं सीमांत किसानों से वैज्ञानिक कृषि पद्धति अपनाने का आग्रह किया। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को समेकित मत्स्य पालन के माध्यम से कम किया जा सकता है। डॉ. कमल शर्मा, विभागाध्यक्ष, पशुधन एवं मात्स्यिकी प्रबंधन विभाग ने संस्थान में उपलब्ध समेकित मत्स्य पालन से संबंधित सुविधाओं और गतिविधियों की विस्तृत जानकारी किसानों को दी। डॉ. विवेकानंद भारती, वैज्ञानिक एवं पाठ्यक्रम निदेशक ने सभी विशिष्ट अतिथियों तथा प्रशिक्षण में भाग लेने वाले अररिया के किसानों के स्वागत से किया।        उद्घाटन समारोह के दौरान सभी किसानों ने अपने वर्तमान कृषि कार्यों और उनसे संबंधित विभिन्न समस्याओं को वैज्ञानिकों के समक्ष रखा। कार्यक्रम में संस्थान से डॉ. तारकेश्वर कुमार, डॉ. प्रदीप कुमार राय, अमरेंद्र कुमार, सुनील कुमार, तथा प्रवीण कुमार झा, अररिया के मत्स्य विकास पदाधिकारी भी मौजूद थे। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संस्थान के निदेशक के निदेशक डॉ. अनुप दास के मार्गदर्शन में आयोजित किया जा रहा है।

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