संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महराज के 141 वी.पावन जंयती समारोह के अवसर पर निकाली गई प्रभात फेरी

सहरसा:-बीस वी.सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महराज के 141 वी.पावन जंयती समारोह के अवसर पर शहर के गांधी पथ स्थित संतमत सत्संग मंदिर से गाजे-बाजे के साथ प्रभात फेरी निकाली गई जो कि शहर के विभिन्न मार्गो से सदगुरू के जय घोष के साथ गुजरा।          तत्पश्चात मंदिर मे भव्य समारोह मे सदगुरू के चित्र पर पूष्पंजालि अर्पित कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालने के साथ विशाल भंडारा का आयोजन किया गया जिसमे हाजरो श्रद्धालू ने प्रसाद ग्रहण किया। महर्षि मेंहीं जंयती के अवसर पर आयोजित सत्संग मे प्रवचन करते हुए स्वामी महेशनंद जी महाराज ने कहा कि महर्षि मेंही परमहंस संतमत की परंपरा के संत थे। उन्हें ‘गुरु महाराज’ के नाम से भी जाना जाता ह। वे ‘अखिल भारतीय संतमत सत्संग’ के गुरु थे। उन्होंने वेद, उपनिषद, भगवद गीता, बाइबिल, बौद्ध धर्म के विभिन्न सूत्रों, कुरान, संत साहित्य का अध्ययन किया और इससे यह निष्कर्ष निकाला कि इन सभी में निहित मूल शिक्षा एक ही है।           पुज्य बाबा ने कहा कि जिसका ज्ञान जाग्रत होता है उसे ऋषि कहते है, जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है उसे महर्षि कहते है एवं जिसका परम चक्षु भी जाग्रत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि कहते है। उन्होंने कहा कि संत पांच पापों से मुक्त रहने की सलाह देते हैं। व्यभिचार, चोरी, नशा, हिंसा और झूठ। उन्होंने कहा कि मानव कल्याण के लिए ही संतो का अवतरण होता है। ईश्वर के बताए रास्ते पर चल कर ही संकट से मुक्ति पा सकते हैं। आज भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौर से गुजर रहा है। आतंकवाद के खिलाफ इस लडाई मे भारत सरकार के निर्देशों का पालन करें।         अपनी सरकार व सेना का हर वक्त मनोबल बढाने का काम करे। स्वामी देवेंद्रानंद जी महराज ने कहा कि मानव तन बड़ा ही अनमोल है। इस तन में ही आत्मा को परमात्मा की भक्ति करने का अवसर प्राप्त होता है। वृक्ष जैसे स्वयं फल नहीं खाते, नदी स्वयं जल नहीं पीती, उसी तरह संतों का अवतारण भी दूसरों के कल्याण के लिए होता है।    गुरुसेवी सिहेश्वरनाथ जी महाराज ने सद्गुरु परमहंस जी महाराज को नमन करते हुए उनके जीवन पर प्रकाश डाला।

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