साम्प्रदायिक सद्भाव एवं सौहार्द का प्रतीक है मुहर्रम का ताजिया मेला

हिन्दू व मुसलमान दोनों मिलकर उठाते है ताजिया व भांजते है तलवार व लाठिया

सहरसा:-रविवार को जिले के शहरी क्षेत्र सहित सभी 10 प्रखंड के लगभग सभी गांव में मोहर्रम पर्व शांतिपूर्ण और सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण में आपसी भाईचारे के साथ संपन्न हो गया। देर शाम तक जिले के किसी भी प्रखंड क्षेत्र से कोई अप्रिय समाचार नहीं मिली।            साथ ही शहरी क्षेत्र के भी दर्जनों गांव और मोहल्ले में आयोजित मोहर्रम पर्व पूर्णत: शांतिपूर्ण और सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण में धार्मिक सद्भाव से संपन्न हुआ। जिसके बाद जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन में चयन की सांस ली थी। शहरी क्षेत्र के मीर टोला, अली नगर, मछली बाजार, बनगांव पूर्वी, बरियाही, नरियार, लतहा, रहुआमणि, नौलक्खा सहित अन्य गांव और मोहल्ले में ताजिया अपने इमामबाड़ा से निकल रणखेत तक पहुंची। रणखेत पर पहुंचे कई मोहल्ले और गांव के ताजिया का पहले मिलान हुआ।                                                    जहां सभी धर्मों के लोगों ने सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए एक साथ लड़वारी खेला एवं गंगा जमुना तहजीब की याद दिलाया। साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव की अनूठा मिसाल पेश करते हुए जिले के लोगों ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर मिशाल पेश किया था। जिले में मुहर्रम पर्व के दौरान हिन्दू समुदाय के लोगों में भी मुहर्रम पर्व को लेकर गहरी आस्था देखने को मिली थी। कई इलाकों में हिन्दू समुदाय के लोग मुहर्रम के दौरान ताजिया बनाने, जुलूस निकालने और इमाम हुसैन की शहादत पर मातम मनाने में सक्रिय रूप से शामिल होते दिखे थे। यह परंपरा जिले में बीते कई सालों से चली आ रही है।            जो सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। बता दें कि जिले में मुहर्रम के दौरान हिन्दू समुदाय के लोग न केवल मुहर्रम में शामिल होते हैं। बल्कि वे ताजिया बनाने और जुलूस निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है। यह परंपरा जिले के कई गांवों में पीढ़ियों से चली आ रही है। जो यह दर्शाती है कि धर्म और समुदाय की सीमाओं से परे, आपसी सम्मान और भाईचारा कैसे कायम रखा जा सकता है।           जिले के कई गांवों में हिन्दू समुदाय के लोग मुहर्रम के दौरान अपना त्योहार समझ कर शामिल होते रहे है। कुछ गांवों में यह परंपरा एक ऐतिहासिक समझौते का परिणाम है। जहां हिन्दू परिवारों ने मुसलमानों के साथ मिलकर मुहर्रम मनाने की प्रतिज्ञा ली थी।

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