सहरसा की चौपालों पर बदलाव की बयार

सहरसा:-जिले की चौपालों का माहौल इन दिनों बदला-बदला सा है। जहाँ कभी महिलाएं चुपचाप बैठा करती थीं, आज वही महिलाएं खुलकर बोल रही हैं, सवाल उठा रही हैं और अपने हक और जरूरतों की बातें कर रही हैं।           इस बदलाव के पीछे है ‘महिला संवाद’ का अभियान, जो अब सरकारी योजना से आगे बढ़कर महिलाओं के सशक्तिकरण का एक व्यापक आंदोलन बन चुका है। जिले के 10 प्रखंडों में फैले 1468 ग्राम संगठनों ने अब तक लगभग 2 लाख 13 हजार महिलाओं को एकजुट कर लिया है। ये महिलाएं मात्र संख्या नहीं हैं, बल्कि वे परिवर्तन की प्रतीक हैं। 23 मई को जिले भर में 24 स्थानों पर आयोजित संवाद सत्रों ने इस अभियान को एक नई दिशा दी। इन सत्रों में 6000 से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया। ये सत्र केवल चर्चा का मंच नहीं थे, बल्कि अनुभव साझा करने और अपनी आकांक्षाओं को शब्द देने का एक माध्यम बन गए।          मोबाइल संवाद रथों की भूमिका: महिला संवाद कार्यक्रम में मोबाइल संवाद रथों की भूमिका बेहद खास रही। ये तकनीकी संसाधनों से सुसज्जित 12 वैन गाँव-गाँव जाकर महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं। इन वैनों पर चलने वाली LED स्क्रीन पर योजनाओं की जानकारी, कहानियाँ और ऑडियो-विजुअल सामग्री ने संवाद सत्रों को प्रभावशाली बनाया। अब ये वैन ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का प्रतीक बन चुकी हैं। संवाद सत्रों में महिलाएं अपने मुद्दे और सुझाव सामने रख रही हैं। पेंशन में बढ़ोतरी, उच्च शिक्षा के अवसर, सड़क संपर्क, परिवहन, स्वरोजगार और किशोरियों के लिए सुरक्षित स्थानों की मांग ने यह स्पष्ट किया कि महिलाएं अब केवल योजनाओं का लाभ लेने वाली नहीं रहीं, बल्कि नीति निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं।     सत्तरकटैया प्रखंड के सिहौल में आयोजित एक सत्र ने सभी को भावुक कर दिया। यमुना देवी ने अपनी संघर्ष यात्रा साझा करते हुए बताया कि आरक्षण नीति ने कैसे उनकी बेटी को शिक्षा और समाज में पहचान बनाने का अवसर दिया। इसी तरह, जीविका समूह की पांचो देवी ने बताया कि कैसे उन्होंने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर गायें खरीदीं, दूध बेचकर आय अर्जित की और अपने बच्चों की पढ़ाई पूरी कराई। उनका कहना था, “पहले हम चुप रहते थे, अब बोलते हैं और हमारी बात सुनी जा रही है।” महिला संवाद का उद्देश्य केवल बातें करना नहीं, बल्कि इन बातों को आगे बढ़ाना है।          महिलाओं के विचार और सुझाव डिजिटल टीम द्वारा संकलित किए जा रहे हैं, जिन्हें डैशबोर्ड प्रणाली के माध्यम से जिला और राज्य स्तर पर नीति निर्माताओं तक पहुँचाया जा रहा है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नीतियाँ केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जमीन पर लागू हों और महिलाओं की वास्तविकता को दर्शाएं।

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