नटखट खेल महोत्सव का लोगों को बेसब्री से इंतजार, कोसी में फिर गूंजेगा खेलों का शंखनाद

खेल नहीं, यह जनभावना है… परंपरा नहीं, यह नवजागरण है… और आयोजन नहीं, यह ग्रामीण आत्मा की पहचान है

सहरसा:-कोसी की मिट्टी में कुछ तो खास है जो एक बार बोई गई खेल की भावना, अब महोत्सव बन चुकी है। नटखट खेल महोत्सव केवल प्रतियोगिताओं का मंच नहीं, यह एक सांस्कृतिक आंदोलन है जिसने पूरे इलाके में खेलों की नन्हीं लौ को मशाल में बदल दिया है। 2021 से शुरू हुआ यह आयोजन जब 32 जिलों के प्रतिभागियों के स्वागत के साथ राज्यस्तरीय पहचान पाने लगा, तब किसी ने नहीं सोचा था कि गांव की पगडंडियों से उठी यह पहल बिहार के सबसे बड़े ग्रामीण खेल महोत्सव का रूप ले लेगी। 2022 के बाद 2023 और 2024 में इसे समाहित कर एक भव्य और ऐतिहासिक आयोजन के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसमें पारंपरिक खेलों के साथ आधुनिक ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स का अद्भुत समागम हुआ। और अब, 2025 के आयोजन के समीप आने भर से पूरे कोसी अंचल में खेलों का उत्सव छा गया है। बोलती तस्वीरें, जागता जनमानस:-बनगांव, परड़ी, पंचगछिया, बिरौल, बैजनाथपुर, बैरगाछी, दुधैला, बखरी, बसरिया हर गांव की मिट्टी में ‘नटखट’ की गूंज है। जहां पहले बच्चों के हाथों में मोबाइल दिखते थे, अब वही हाथ फुटबॉल, वॉलीबॉल और कबड्डी की रेखाओं में संकल्प की लकीरें खींच रहे हैं। गांव-गांव में 50 से अधिक खेल आयोजनों की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि नटखट खेल महोत्सव अब सिर्फ एक तिथि नहीं, एक आंदोलन है जो युवा ऊर्जा को दिशा देता है, भाईचारे को बल देता है और परंपरा को नया जीवन देता है। ‘नटखट’ बना नई पीढ़ी का नायक:-जिन खेलों को कभी ग्रामीण पिछड़ेपन की निशानी समझा जाता था, आज वही कबड्डी, खो-खो, दौड़ और शतरंज गौरव का प्रतीक बन गए हैं।          नटखट खेल महोत्सव ने ना केवल खिलाड़ियों को मंच दिया, बल्कि गांवों को गौरव और खेलों को गरिमा दी। यहां प्रतियोगिता जीतने से बड़ा सम्मान मैदान में उतरना है। यहां खेल केवल पदक की लड़ाई नहीं, आत्मा की अभिव्यक्ति है। और यही वजह है कि हर आयु, हर जाति, हर वर्ग का व्यक्ति नटखट को अपना पर्व मान चुका है। बच्चे अपनी टीमें बना रहे हैं, लड़कियां कबड्डी के मैदान में आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं, और बुज़ुर्ग अपने बचपन को इस महोत्सव में पुनः जीते दिख रहे हैं। उत्साह का आलम यह है कि “नटखट कब आएगा?” अब कोसी की सबसे बड़ी जिज्ञासा बन चुकी है। नटखट खेल महोत्सव एक आयोजन नहीं, कोसी की आत्मा का रंग है। यह वह उत्सव है जहाँ एक रस्सी की खींचतान से लेकर कबड्डी के दम तक, हर पल में गांवों की चेतना झलकती है। यह एक अवसर है जहाँ ग्रामीण भारत अपने पैरों पर खड़ा होता है, अपने खेलों को गर्व से अपनाता है और नई पीढ़ी को यह सिखाता है-
“खेलो, बढ़ो, और अपने गांव को गर्व से चमकाओ!”

नटखट है, तो मुमकिन है…!
कोसी अब सिर्फ बहती नदी नहीं, खेलों की बहती ऊर्जा बन चुकी है और उसका नाम है नटखट खेल महोत्सव।

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