कृषि अनुसंधान परिसर, पटना में बिहार में जलवायु संकट से निपटने पर राज्यस्तरीय परामर्श का आयोजन

पटना:-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में जलवायु संकट से निपटने के लिए खाद्य, भूमि और जल प्रणालियों के परिवर्तन पर एक राज्य-स्तरीय हितधारक परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, विकास एजेंसियों और किसानों ने बिहार में टिकाऊ भूमि एवं जल प्रबंधन के लिए एक रोडमैप तैयार किया।           इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, डॉ. बी. राजेंदर, भा.प्र.से., अपर मुख्य सचिव, बिहार सरकार, ने अपने संबोधन में भारत के विजन 2047 के अनुरूप बिहार की खाद्य, भूमि और जल प्रणालियों में अनुकूलन बढ़ाने के लिए समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने मिलेट्स पर विशेष जोर देते हुए फसल-विशेष और क्षेत्र-विशेष योजना बनाने और केंद्र व राज्य विभागों के साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, बिहार का कृषि भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम विभिन्न क्षेत्रों में अपने प्रयासों को कितने प्रभावी ढंग से एकीकृत करते हैं। मिलेट्स को बढ़ावा देने से लेकर जल-स्मार्ट खेती तक, हर विभाग को एक टीम के रूप में काम करना होगा। विशिष्ट अतिथि भरत ज्योति, आईएफएस (सेवानिवृत्त), अध्यक्ष, बिहार राज्य जैव विविधता पर्षद ने जैव विविधता संरक्षण, पॉकेट-वाइज लैंड पूलिंग, स्थानीय और संकर फसल किस्मों के रणनीतिक सम्मिश्रण तथा पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक कृषि नवाचारों के साथ जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया।         संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने अपने स्वागत भाषण में बिहार के बढ़ते जलवायु संकट से निपटने के लिए समेकित, विज्ञान-आधारित रणनीतियों को अपनाने की तात्कालिकता पर जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और किसानों के बीच सहयोगात्मक कार्रवाई को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। डॉ. दास ने कहा, हमारा लक्ष्य ज्ञान आधारित कार्य पर होना चाहिए, ताकि हर वैज्ञानिक नवाचार खेतों तक पहुंचे और किसानों को लाभ हो। इस दौरान प्रख्यात विशेषज्ञों ने बिहार में जलवायु-सहिष्णु कृषि के निर्माण के लिए चुनौतियों और समाधानों पर तकनीकी प्रस्तुतियाँ दीं। बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया, समस्तीपुर के वरिष्ठ सस्य वैज्ञानिक डॉ. आर.के. जाट ने जलवायु-स्मार्ट खेती के लिए उठी हुई क्यारियों में बुवाई, लेजर लैंड लेवलिंग और संसाधन संरक्षण पद्धतियों को अपनाने पर जोर दिया। भा.कृ.अनु.प.-अटारी, पटना के निदेशक डॉ. अंजनी कुमार ने सभी प्रसार विभागों को एक मंच पर लाने, नवाचार और नए किसानों के बीच संवाद बढ़ाने तथा क्षमता निर्माण पहलों को मजबूत करने पर जोर दिया।         नारायण इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के अधिष्ठाता डॉ. एस.एस. सिंह ने अनिश्चित वर्षा और गेहूं के लिए सही तापमान की अनुपलब्धता के खतरों को रेखांकित करते हुए किसानों के अनुकूलन के लिए लक्षित सर्वोत्तम पद्धतियों का सुझाव दिया। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र,मुजफ्फरपुर के निदेशक डॉ. बिकास दास ने फल बैगिंग, कैनोपी प्रबंधन और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसे उपायों के बारे में बताया । बामेती के निदेशक डॉ. डी.पी. त्रिपाठी ने जलवायु-सहिष्णु कृषि कार्यक्रम, दलहन और तिलहन को बढ़ावा देने तथा जलवायु-सहिष्णु फसल किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। एमजीआईएफआरआई, मोतिहारी के निदेशक डॉ. एस. के. पुरबे ने बदलती जलवायु परिस्थितियों में कृषि उत्पादकता बनाए रखने के लिए आर्द्रभूमि प्रबंधन के महत्व पर जोर दिया। इस कार्यक्रम में आईसीएआर-आरसीईआर और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया, साथ ही संस्थान का न्यूजलेटर भी जारी किया गया। प्रगतिशील किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लेकर व्यावहारिक प्रतिक्रिया और अनुभव साझा किए। कार्यशाला में पाँच विषयगत सत्र आयोजित किए गए जैसे जलवायु-स्मार्ट खाद्य-पोषण प्रणाली परिवर्तन, जलग्रहण-आधारित लचीलापन और एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, छोटे किसानों के लिए कार्बन फार्मिंग और जलवायु वित्तपोषण, खाद्य-भूमि-जल नेक्सस और एकीकृत योजना उपकरण और जलवायु-सहिष्णु खाद्य-भूमि-जल प्रणालियों के लिए अत्याधुनिक तकनीकें। प्रत्येक बहु-विषयक टीम ने चुनौतियों पर चर्चा की, क्रियान्वयन योग्य रणनीतियों की पहचान की और भविष्य की कार्य योजना प्रस्तावित की।            डॉ. पी. सी. चंद्रन, प्रधान वैज्ञानिक, पशुधन एवं मात्स्यिकी प्रबंधन प्रभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इसके बाद प्रतिभागियों ने आईसीएआर-आरसीईआर के प्रक्षेत्र का भ्रमण किया, जहाँ उन्होंने जलवायु-सहिष्णु कृषि नवाचारों को देखा।

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