प्रशासन के चोक चौबंद व्यवस्था के बीच दशहरा का पर्व शांतिपूर्ण माहौल में सम्पन्न

सहरसा:-जिले भर में दशहरा का त्यौहार प्रशासन के चोक चौबंद व्यवस्था के बीच धूमधाम से मनाया गया। दशहरा पर्व को लेकर लोग काफी उत्साहित थे।            नवरात्र में मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद लोगों ने दशहरा का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया। दशहरा पर्व को लेकर शहर के थाना चौक, पंचवटी चौक, प्रशांत मोड़, कचहरी चौक, जेल गेट, बड़ी दुर्गा मंदिर, कॉलेज गेट, रेलवे कॉलिनी में माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर धूमधाम से मनाया गया। माँ दुर्गा की प्रतिमा की दर्शन को लेकर लोगों की काफी भीड़ उमड़ पड़ी थी। वही सहरसा कॉलेज मैदान में रावण वध का आयोजन किया गया।                                                दशहरा पर्व को लेकर प्रशासन काफी चौकस थी। प्रशासन के द्वारा चोक चौबंद सुरक्षा की व्यवस्था किया गया था। जिसके कारण हुड़दंगियों की एक न चली। बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक है विजयादशमी। भगवान राम ने भी रावण को मारने से पहले मां दुर्गा की वंदना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। विजयादशमी के अवसर पर समाज के उन तमाम रावण का विरोध और विनाश का संकल्प लें जो किसी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, काली या पार्वती से उनका सम्मानित जीवन जीने का अधिकार छीनते हैं।          अपने अंदर एवं बाहरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की सदबुद्धि सबको मिले, यही मां दुर्गा देवी के चरणों में मेरी प्रार्थना है। दशहरा को विजयादशमी या आयुधपूजा के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा का पर्व हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवी जया और विजया की पूजा की जाती है। क्यों मनाया जाता है दशहरा का त्योहार पौराणिक कथा के अनुसार, रावण ने देवी सीता का हरण कर लिया था। देवी सीता जो एक महारानी थी, जब उनका हरण रावण कर सकता था तो अन्य स्त्रियों की उस समय क्या स्थिति रही होगी।          नारी जाति के सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए भगवान राम ने अधर्म और अन्यायी रावण को युद्ध के लिए ललकारा और दस दिनों तक रावण से द्वंद युद्ध किया। आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को भगवान राम ने मां दुर्गा से प्राप्त दिव्यास्त्र की सहायता से रावण का वध कर दिया। रावण का अंत दस सिर वाले रावण का अंत था। इसे असत्य पर न्याय और सत्य की जीत के उत्सव के रूप में मनाया गया।           रावण पर राम को विजय प्राप्त हुई थी इसलिए यह तिथि विजया दशमी कहलाई। दस सिर वाला रावण इस दिन हारा था इसलिए इसे दशहरा और लोक भाषा में दशहारा भी कहते हैं। दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र में मां दुर्गा और महिषासुर के वध की कथा है। इस असुर ने देवताओं को भी स्वर्ग से भगा दिया था। इसके अत्चार से पृथ्वी पर हाहाकार मचा हुआ था। देवी ने आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को महिषासुर का अंत करके पृथ्वी को पाप के भार से मुक्त दिया था। देवी की विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने विजया देवी की पूजा की और यह तिथि विजया दशमी कहलाई। महाभारत युद्ध से पहले एक और महायुद्ध हुआ था जिसे अर्जुन ने अकेले ही लड़ा था। एक तरफ कौरवों की विशाल सेना थी और दूसरी तरफ अकेला अर्जुन। यह युद्ध विराट के युद्ध नाम से इतिहास में दर्ज है। अपने अज्ञातवश के अंतिम दिनों में अर्जुन ने यह युद्ध महाराज विराट के लिए लड़ा था जिनके राज्य में उन्होंने अपना अज्ञातवास बिताया था। कौरवों के असत्य पर यह पांडवों के धर्म की जीत थी। पांडवों के विजय के रूप में भी दशहरा को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा होती है। लेकिन बिना योगिनियों की पूजा के देवी की पूजा संपन्न नहीं मानी जाती है। इसलिए विजया नक्षत्र में देवी की योगिनी जया और विजया आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को होती है। ये दोनों योगनियां अपारजित हैं इन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता इसलिए अपराजिता देवी के रूप में भी इनकी पूजा होती है। दशमी तिथि को विजया देवी की पूजा होने की वजह से दशहरा को विजया दशमी कहा जाता है।        प्राचीन काल राजागण दशहरे को विजया उत्सव के रूप में मनाते थे। इस दिन राजा विजया देवी की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। विजयादशमी के दिन राजा अपनी सीमा को बढ़ाने के लिए दूसरे देश के राजाओं पर आक्रमण भी किया करते थे।

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