मिथकों से निकलकर सुरक्षित मातृत्व की ओर बढ़ता बिहार

• रेफरल, प्रसवोत्तर रक्तस्राव प्रबंधन और जिला-स्तरीय नवाचारों ने बदली तस्वीर

पटना:-वर्ष 2005 में बिहार का मातृ मृत्यु अनुपात 374 प्रति लाख जीवित जन्म था, जो देश में उच्चतम आंकड़ों में शामिल था। बाद के वर्षों में मातृ स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने, आपातकालीन प्रबंधन को प्राथमिकता देने और समुदाय स्तर पर जागरूकता फैलाने के प्रयासों ने व्यापक प्रभाव डाला। एसआरएस के आँकड़े बताते हैं कि अब बिहार में मातृ मृत्यु अनुपात घटकर लगभग 100 प्रति लाख जीवित जन्म रह गया है। एसडीजी लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्य का लक्ष्य वर्ष 2030 तक इसे कम करके 70 पर लाना है। यह प्रगति किसी एक सुधार का परिणाम नहीं, बल्कि संपूर्ण मातृ स्वास्थ्य प्रणाली के मजबूत होने का प्रमाण है, जिसमें प्रसवोत्तर रक्तस्राव की रोकथाम, प्रसव-पश्चात देखभाल, समय पर रेफरल, उच्च जोखिम गर्भावस्था की पहचान और स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षित रहना जैसे प्रयास एवं नवाचार शामिल है। इस संबंध में डॉ. इंदिरा प्रसाद, अतिरिक्त प्राध्यापक, एम्स, पटना कहती हैं कि- “हमारे यहाँ आने वाली अधिकांश महिलाएँ बिना किसी गर्भावस्था संबंधी अभिलेख, एनीमिया या रेफरल में देरी की स्थिति में पहुँचती हैं, जिससे जटिलता और बढ़ जाती है। प्रसवोत्तर रक्तस्राव को रोकने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है समय पर रेफरल तथा प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च संस्थान तक सभी जगह निर्धारित प्रक्रिया का पालन। यदि समय पर पहचान और त्वरित कदम उठाए जाएँ तो गंभीर स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।” समुदाय और स्वास्थ्य तंत्र के एकीकरण का प्रयास हुआ सफल:-राज्य में मातृ स्वास्थ्य में हुए वास्तविक बदलाव की शुरुआत समुदाय के स्तर से हुई।           सारण में आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम ने लगातार प्रयास ने लोगों को मातृ स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर लोगों को समझाया उन्होंने गर्भावस्था के दौरान जांच, आयरन की गोलियों का सेवन, प्रसव स्थान की अग्रिम पहचान और खतरे के लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया। इन प्रयासों से महिलाओं और परिवारों में समझ बढ़ी कि स्थिति बिगड़ने पर तुरंत अस्पताल जाना आवश्यक है। इस जागरूकता ने अनेक जीवन सुरक्षित किए और त्वरित निर्णय लेने की आदत भी विकसित हुई। सीमित संसाधनों के बीच उत्तरदायित्व और तत्परता की मिसाल:-वैशाली जिले के महुआ उपस्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्सकीय टीम ने सीमित संसाधनों के बावजूद अनुशासन और जवाबदेही के साथ प्रसवोत्तर रक्तस्राव प्रबंधन का प्रभावी मॉडल विकसित किया है। चिकित्सक डॉ. विनीता सिंह और उनकी टीम ने रेफरल मामलों को प्राथमिकता देने, आपातकालीन स्थिति में समय प्रबंधन, प्रसव कक्ष में हमेशा तैयार रहने और सभी प्रोटोकॉल का पालन करने पर विशेष ज़ोर दिया है। यह केन्द्र यह दर्शाता है कि यदि टीम उत्तरदायी हो, व्यवस्थाएँ तैयार हों और आपात स्थितियों का अभ्यास नियमित रूप से किया जाए, तो कम संसाधनों में भी मातृ मृत्यु में गिरावट लाई जा सकती है। प्रसवोत्तर रक्तस्राव किट ने बचाई कई जिंदगियाँ:-मुजफ्फरपुर के मातृ-शिशु अस्पताल में उपलब्ध प्रसवोत्तर रक्तस्राव किट और प्रशिक्षित कर्मचारियों ने हाल ही में एक गंभीर स्थिति में एक महिला निशा सोनी का जीवन बचाया। दूसरे शल्य प्रसव के बाद जब उन्हें अचानक गंभीर रक्तस्राव हुआ, तो किट में उपलब्ध आवश्यक दवाओं, उपकरणों और प्रशिक्षित नर्सों की तीव्र प्रतिक्रिया ने उनकी स्थिति स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ “संजीवनी कोष” की संज्ञा देते हैं, क्योंकि यह रेफरल के दौरान समय की हानि को कम करती है। राज्य में प्रणाली का मजबूत होना, परिवर्तन की मुख्य वजह:-बिहार में मातृ मृत्यु में आई गिरावट के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण जुड़े हैं। सबसे पहले, प्रसवोत्तर रक्तस्राव को प्राथमिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार कर सभी स्तरों पर इसकी रोकथाम को प्राथमिकता दी गई। प्रसव केन्द्रों की तैयारियों को सुदृढ़ किया गया, जिसमें दवाओं की उपलब्धता, रक्त की व्यवस्था, उपकरण और प्रशिक्षित कर्मचारी शामिल हैं। रेफरल श्रृंखला को बेहतर बनाया गया ताकि आशा कार्यकर्ता से लेकर उच्च संस्थान तक मामला सुचारू रूप से आगे बढ़ सके। इसके साथ ही एनीमिया की रोकथाम, नियमित जांच, और गर्भावस्था के दौरान जोखिम पहचान पर लगातार काम किया गया। समुदाय स्तर पर आयोजित स्वास्थ्य और पोषण दिवसों में खतरे के लक्षणों की जानकारी दी गई, जिससे आम लोगों में स्थिति पहचानने की क्षमता बढ़ी। सितंबर 2025 तक आयोजित 4,13,952 स्वास्थ्य और पोषण दिवसों में 49,269 उच्च जोखिम गर्भवती महिलाओं की पहचान की गई, जो इस बदलाव का बड़ा आधार है। मिथकों से विश्वास की ओर-बिहार की मातृ सुरक्षा यात्रा:-सारण की आरती देवी की समझ, वैशाली में सेवाओं की तत्परता और मुजफ्फरपुर में प्रसवोत्तर रक्तस्राव किट से बची जिंदगियाँ ये सभी मिलकर राज्य में हो रहे परिवर्तन को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। समय पर पहचान, त्वरित रेफरल, प्रशिक्षित टीम, तैयार किट और समुदायिक जागरूकता जैसे संयुक्त प्रयास से बिहार सुरक्षित मातृत्व की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। मातृ मृत्यु अनुपात में आई कमी सिर्फ आँकड़ों का बदलाव नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि “प्रसव अब जोखिम नहीं, बल्कि तैयारी और विश्वास की प्रक्रिया” बन चुका है।

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