बीएनएमयू सीनेट सिंडिकेट के एक के बजाय दो टर्म पूरे फिर भी चुनाव की सुगबुगाहट नहीं

मधेपुरा:-एक बार फिर वाम युवा संगठन एआईवाईएफ जिला अध्यक्ष हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने बीएनएमयू में सीनेट सिंडिकेट को लेकर बड़ा हमला बोला है। विगत दिनों अर्धवार्षिक सीनेट और मासिक सिंडिकेट बैठक में लम्बे अंतराल, तय समय पर बैठक नहीं होने पर सवाल खड़े करने वाले राठौर ने शुक्रवार को बीएनएमयू कुलपति को पत्र लिख वर्तमान सीनेट, सिंडिकेट के औचित्य पर ही सवाल खड़े किए हैं। तीन साल वाली सीनेट, सिंडिकेट का सात साल बाद चुनाव नहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजाक:-कुलपति को लिखे पत्र में वाम युवा नेता राठौर ने बीएनएमयू की आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए कहा है कि 2017 आखिरी दफा सीनेट, सिंडिकेट का चुनाव हुआ जिसका कार्यकाल 2020 में ही पूरा हो गया था लेकिन आज आलम यह है कि कार्यकाल पूरा होने के बाद चार साल गुजर गए और चुनाव की सुगबुगाहट तक नहीं है। कार्यकाल के बाद के फैसले भी संदेहास्पद, निर्धारित संख्या से कम ही हैं सदस्य:-वाम नेता राठौर ने सीनेट, सिंडिकेट सहित क्रय विक्रय समिति, वित्त समिति के बैठक व फैसलों पर भी सवाल खड़े किए हैं और कहा है कि कार्यकाल पूरा करने के बाद के चार साल में लिए गए फैसले भी संदेहों के घेरे में क्योंकि इस दौरान कई सदस्य पूर्णिया विश्वविद्यालय के हिस्सा बन चुके वहीं कई सदस्यों सेवानिवृत भी। जिससे संख्या बल भी निर्धारित संख्या से कम है।            राठौर ने कहा कि ऐसे में किन हालातों में लोकतांत्रिक मर्यादा को नजर अंदाज करते हुए चुनाव कराने के बजाय अवैध सदन से बैठकें कराई गई। निर्वाचित सदस्यों को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे आना चाहिए चुनावी मैदान में:-दूसरी तरफ हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने 2017 के सीनेट, सिंडिकेट चुनाव में निर्वाचित हुए सदस्यों द्वारा नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देते हुए चुनाव की मांग करने के बजाय अवैध रूपेण बैठकों का हिस्सा बन मलाई कोफ्ता के आनंद लेते रहने पर तल्ख लहजे में नाराजगी जताते विश्वविद्यालय की नियत पर भी सवाल उठाए हैं। राठौर ने कहा कि कार्यकाल पूरा करने के बाद भी चुनाव की पहल नहीं करना टर्म पूरा कर चुके सदस्यों को यूज कर अपने मनोनुकूल फैसले लेने की साजिश लगती है। निर्वाचित व मनोनित सदस्यों को दरकिनार कर ऑफिशियल मेंबर द्वारा कमिटी का गठन लोकतंत्र का गला घोटना:- एआईवाईएफ जिला अध्यक्ष राठौर ने सीनेट, सिंडिकेट से जुड़ी उप समितियों पर भी सवाल खड़े किए हैं और कहा है कि इसका सबसे बड़ा उदाहरण कई बैठकों में निर्वाचित सदस्यों के बिना भी निर्णय लेना है। जबकि नियमानुसार निर्वाचित व मनोनीत सदस्यों के बिना फैसला मान्य ही नहीं हो सकता ।लगातार मांग के बाद पिछले साल जब सभी उप समितियों का गठन हुआ तो निर्वाचित और मनोनीत सदस्यों को दरकिनार कर ऑफिशियल मेंबर को जगह दी गई जिसकी सिंडिकेट बैठक में बहुत विरोध हुआ और आसन ने सुधार का आश्वासन दिया लेकिन अभी तक नहीं हुआ।ऐसी कमियों के कारण ही विगत तीन चार वर्षों की बैठकें पहले की तरह धारदार होने के बजाय कमोबेश खाने पीने और अटैची उठाने तक सीमित रह गई है। राठौर ने कुलपति से मांग किया कि अविलंब सीनेट, सिंडिकेट, वित्त समिति, क्रय विक्रय समिति के चुनाव व गठन की पहल की जाए साथ ही निर्वाचित सदस्यों से अपील भी किया कि नैतिकता के आधार पर उन्हें भी चुनाव की मांग करनी चाहिए जिससे सर्वोच्च सदन की लोकतांत्रिक कवच पर सवाल न उठे। राठौर ने कहा कि संगठन इस सम्बन्ध में राठौर ने महामहिम राज्यपाल व बीएनएमयू कुलसचिव को भी पत्राचार कर मांग किया कि मनोनीत जिन सदस्यों का भी वैध कार्यकाल पूरा हो चुका है उस पर नए सिरे से मनोनयन करे।

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