तरावीह की नमाज़ में गफलत ना करें:-मुफ्ती मो. आरिफ सिद्दिकी

अररिया:-रमजानुल मुबारक के मुकद्दस महीने को अल्लाह ने नियामतों, रहमतों और पाकीजा जिंदगी के पाने के लिए बनाया है। यही वजह है कि इस महीने को विशेष इबादतों और सवाब को पाने के उद्वेश्य से ही इनको किया गया है। हमारे लिए यह एक जबरदस्त मौका है कि हम इस महीने में शरीयत के जरिए तय शुदा इबादतों को अंजाम देकर मकसद ए जिंदगी हासिल कर सकते हैं। रमजानूल मुबारक की खास इबादतों में से एक अहम इबादत नमाज तरावीह है। इस बाबत रमजान के आमद पर भरगामा स्थित वीरनगर विशरिया पंचायत के मदनी नगर के निकट मदरसा दारूल उलूम फैज ए रहमानी के संस्थापक मौलाना मुफ्ती मुहम्मद आरिफ सिद्दीकी साहब ने इसी इबादत के चंद पहलुओं पर रोशनी डालते हुए कहा कि यह खास नमाज तरावीह, जिसे हर जमाने में मुसलमान बहुत ही एहतमाम के साथ अदा करते हुए आए हैं और इसके जरिया रूहानियत का सफर तय करते रहे हैं। आज भी हम में से खास तादाद इस नमाज को अदा करते हैं, लेकिन इस नमाज के जो आदाब और उसूल हैं उनकी पाबंदी हम नहीं कर पाते।                    इसी वजह से जो रूहानी सुकून और पाकिजगी हमें मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पाती है और हम दामन में शवाब समेटने के बजाय खाली दामन रह जाते हैं। हमे नमाज तरावीह को बड़े ही सुकून के साथ अदा करनी चाहिए। उसकी फजीलत पर मौलाना मुफ्ती मो आरिफ सिद्दीकी साहब कहते हैं की हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह अन्हु से रिवायत है कि रसूल स. वसल्लम ने फरमाया जो शख्स रमजान की रातों में ईमान के साथ और शवाब की नियत से खड़ा हो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं। एक दूसरी हदीस में है कि जिसका मफहूम है कि रसलूल्ला सल्ला वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह ताला ने हमलेगों पर रमजान के रोजे फर्ज किए हैं और मैंने रात के क्याम यानि तरावीह को सुन्नत बताया है, तो जो शख्स ईमान और सवाब की उम्मीद के साथ रोजा रखेगा और तरावीह पढ़ेगा, तो वह गुनाहों से इस तरह पाक और साफ हो जाएगा कि वह गोया आज ही पैदा हुआ हो। मुसलमानों के लिए नमाज़ तरावीह काफी अहमियत रखता हे। नमाज तराविह में एक बड़ी कोताही हमलोगो से यह होती है कि सफों को मुकम्मल करने का एहतमाम नहीं करते। कुछ लोग बीच में सफ़ खाली होने के बावजूद पीछे नमाज पढ़ते हैं और जहां चाहते हैं वहां खड़े हो जाते हैं। हालांकि दो सफों के दरमियान फासले का मसला यह है कि दो सफों के दरमियान पांच या छह फिट से ज्यादा फासला ना हो, साथ में मिलकर खड़ा होना और कंधे से कंधे को मिलाने का ताकीदी हुक्म आहादीश में वारिद हुई है। यानी मुक्तादियों को जमात की नमाज में मिल मिल कर खड़ा होना चाहिए। जमात की नमाज में दो लोगों के दरमियान जगह खुला छोड़ना खिलाफ सुन्नत है। इसी तरह कुछ लोग वह होते हैं जो पीछे बैठे रहते हैं या मस्जिद में इधर-उधर घूमते रहते हैं और जब इमाम तरावीह को रूकू की तकबीर कहते हैं तो वह दौड़ कर नमाज में शामिल होते हैं। यह एक नापसंदीदा तरीका और बे अदबी वाला अमल है। नमाज में शिरकत के ताल्लुक से फिकहा में ये लिखा है कि जमात में शरीक होने के लिए मस्जिद की तरफ दौड़ कर या तेजी से (वकार के खिलाफ अंदाज में) जाने की ममानियत हदीस मुबारक में मौजूद है। जमात में शिरकत के लिए सुकून से और बावकार तरीके से चलना चाहिए। खुलासा यह है कि हमें तरावीह की नमाज मुकममल एहतमाम के साथ और तमाम आदाब और उसूल की रिआयत के साथ अदा करनी चाहिए ताकि हमारा रूहानी सफर सही सिमट में रवान रवान रहे और हम मंजिल पर पहुंच जाएं।

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