संतमत सत्संग मंदिर परिसर में संतमत का दो दिवसीय विराट सत्संग का किया गया आयोजन

सहरसा:- शहर के गांधी पथ स्थित संतमत सत्संग मंदिर परिसर में सप्तदिवसीय ध्यान-साधना शिविर के बाद बुधवार से संतमत का दो दिवसीय विराट सत्संग का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित सत्संग मे प्रवचन करते हुए संतमत के वर्तमान आचार्य पुज्यपाद महर्षि चुतरनांद जी महराज ने कहा कि किसी को कोई काम करना होता है और उसके लिए उसको कुछ सहारा मिलता है, तो वह बहुत प्रसन्न होता है और काम कर लेता है।           ईश्वर दर्शन सत्संग का सर्वश्रेष्ठ विषय है। इसका सहारा कुछ मिल जाय तो बहुत अच्छा हो। यहाँ ईश्वर दर्शन के लिए पूजा-पाठ, कीर्तन आदि जितने करते हैं, इनमें से कोई ऐसा सहारा नहीं है, जो हम जानें की अपने से आप ईश्वरप्रदत्त सहारा मिल रहा है। हमलोग अपनी श्रद्धा के अनुकूल प्रतिमाओं का दर्शन करते हैं और समझते हैं कि यह सहारा है। इससे भी कोई विशेष चीज मिले जो हमारी बनाई नहीं हो, स्वयं ईश्वरकृत हो तो विशेष सहारा जानने में आवे। शरीर के अंदर  में ही वह सहारा मिले तो बड़ा अच्छा हो। चेतन आत्मा बूढ़ा, बच्चा, जवान नहीं होती। यह चेतन स्वरुप है, इसका सहारा कैसा होना चाहिए इसका सहारा बाहर में हो, ऐसा नहीं।  लोगों ने अपने अंदर की खोज की जैसे उपनिषदों के ऋषि लोग। और वेद की आज्ञा के अनुकूल जिन्होंने प्राप्त किया वह है अंतर्ज्योति और अंतर्नाद। परमात्मा की ज्योति और नाद तुम्हारे अंदर है, ये सहारे मनुष्यकृत नहीं, ईश्वर कृत हैं। अंदर प्रवेश करो, पाओगे। निडर ध्यान लगाओ, अंधकार का बज्र कपाट खुल जाएगा। ईश्वर की ज्योति जो सब में समाई है, देखोगे। केवल बाहर ही बाहर ईश्वर को नहीं खोजो। बाहर-बाहर खोजने के बाद अंदर-अंदर भी खोज करो। सदग्रंथ, गुरु का वाक्य और अपना विचार मिल जाय तो कितना विश्वास होगा। अंतर में प्रकाश हुआ यह गुरु की गवाही है और तब गुरु के दया दान को पहचाना। इस सहारा को पकड़ो। मनुष्य अपने अंदर अभ्यास करके ब्रह्म ज्योति और ब्रह्मनाद को प्रत्यक्ष देख सुन सकता है, यही सहारे हैं। संतों की वाणियों में हम यहीं  बात पढ़ते हैं। क्या वेद, और क्या उपनिषद् ज्ञान, सबमें यह बात है। आज भी जो करते हैं, उनको चिन्ह मिलता है। भजन करने की भी शक्ति होती है।  जो अभ्यास को बढ़ा लेते हैं, उनको चिन्ह देखने में आता है। जो बाह्य दृष्टि से कुछ देखना चाहता है, वह नहीं देख सकता। अंतर्दृष्टि करो, तब देखने में आवेगा। आँख बंद करो, मानसिक रचना को छोड़ो। बाहर का देखना छोड़ो, अंतर में दृष्टि रखो, तब देखने में आवेगा कि अंदर में क्या है।           तन की कमान और सूरत की डोरी बनाओ। जिसकी इंद्रियाँ  बेकाबू हैं, उसकी डोरी खुली हुई है। उसपर से तीर नहीं छूट सकता। तमाम शरीर में जो चेतन की धार बिखरी है, उसको केंद्र में केंद्रित करो, जहाँ गुरु ने बताया है। उस निशाने पर जो कोई ख्याल रखता है, तो मन की सब धारें एक जगह स्थिर होती हैं।  जैसे दोनों हाथों से किसी चीज को बहुत मजबूती से (पूरा बल से) पकड़ने से शरीर का सारा बल उस ओर हो जाता है। इस विषय को थोड़ा-थोड़ा ही सुनना चाहिए। यह कोई कथा नहीं है सैर नहीं है, जिसमें अधिक मन लगे। अधिक सुनने से भी क्या फायदा यदि उसमें से करने योग्य कर्मों को नहीं किया। इस ज्ञान यज्ञ मे संतमत के स्वामी अनुभवानंद जी महराज, स्वामी महेशानंद बाबा, स्वामी शाहीशरण बाबा, स्वामी नबलकिशोर बाबा, स्वामी ज्ञानी बाबा, स्वामी सुरजनंद बाबा, स्वामी दिनकर बाबा, स्वामी हरिनंद बाबा, स्वामी शभ्भुनंद बाबा, स्वामी योगानंद बाबा, स्वामी सुरेंद्रनंद बाबा, स्वामी सत्यानंद बाबा आदि बाबा ने प्रवचन किया। स्वामी चुतरनांद बाबा का स्वागत बैण्ड बाजे व रथ पर बैठाकर मंदिर परिसर लाया गया।

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