ऐतेकाफ की रूह को समझने की कोशिश कीजिए

अररिया:-रमजान का आखिर अशरा शुरू हो गया है। बीस से तीस तक आखरी अशरा जहन्नुम से निजात का है। इसी आखरी अशरा की ताक रात यानी 21, 23, 25, 27 और 29 को किसी एक रात को शबे कद्र होती है जो हज़ारों रात की इबादत से अफजल होता है। इस तरह इन रातों का एहतमाम करें। उक्त बातें मदरसा फेज ए रहमानी के संस्थापक अध्यक्ष सह वीर नगर विषरिया भरगामा निवासी मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दिकी ने रमजान के तीसरे अशरा के शुरू होने के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि इस आखिरी अशरा के शाम से यानी बीसवीं रमजान की शाम से ऐतेकाफ करने के दस दिनों का आययाम भी शुरू हो जाएगी, जिसे ऐतेकाफ कहते हैं। मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दिकी ने बताया कि ऐतेकाफ के लिए मुसलमान होना, आकिल होना, सेहतमंद होना, नियत करना व दाखिल ए मस्जिद के वक्त जनाबत से पाक साफ होना और खवातीन महिलाओं का हैज व नफास से पाके होना और अपने शौहर से इजाजत लेना शर्त है। ऐतेकाफ के लिए बालिग होना और जामा मस्जिद का होना शर्त नहीं। रमजान मुबारक के आखिरी अशरे में ऐतेकाफ करना सुन्नत ए मोइककदा अलल किफाया है। जिसकी शुरुआत 20 वीं रोजे के दिन गुरुब आफताब से ईद के चांद तक है। मुफ्ती मुहम्मद आरिफ सिद्दीकी ने बताया कि किसी शख्स को उजरत देकर ऐतेकाफ में बैठाना, उजरत लेकर बैठना ,दोनों जायज नहीं, क्योंकी इबादत के लिए उजरत देना और लेना जायज नहीं। दौराने एतेकाफ कोई खास इबादत निर्धारित नहीं बल्कि तिलावते जिक्र, नफली इबादात, कजा नमाजे और दुआओं का खास एहतमाम करें।            ऐतेकाफ एक आशिकाना इबादत और इनाबत इलल्लाह की एक खास कैफियत का नाम है, जो कुरब और रहमते खुदावंदी के हुसूल का एक बेहतरीन जरिया है। जिसमे एक बंदा मोमिन हर चीज व दुनिया से कटकर सिर्फ अल्लाह ताला से लौ लगा लेता है। मसनून ऐतेकाफ के लिए नियत का होना जरूरी है। दिल में नियत करेके अल्लाह की रजा के लिए रमजान के आखिर अशरा का ऐतेकाफ करता हूं। औरत घर के मखसूस हिस्से के एक कोने में ऐतेकाफ कर सकती है। अलबत्ता शौहर से इजाजत लेना जरूरी है। आप सल्लाह वसल्लम ने हमेशा इसकी पाबंदी फरमाते थे,जो शख्स एक दिन का भी ऐतेकाफ अल्लाह के वास्ते करता है, तो हक ताला शानहूं उसके और जहन्नम के दरमियान तीन खंदक आड़ फरमा देते हैं जिनकी मुसाफत आसमान और जमीन की मुसाफत से भी ज्यादा चौड़ी है। हजरत आयशा रजि अल्लाह फरमाती है कि अल्लाह के नबी सल्ला व अलैह सल्लम रमजान के आखिरी 10 दिनों का ऐतेकाफ किया करते थे। हमलोग रमजान के जिस अशरे से गुजर रहे हैं यह वक्त काफी कीमती है। उसका एक एक लम्हा रहमत ए अनवार में डूबा हुआ है। मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी साहब कहते हैं कि आप (स) ने इरशाद फरमाया जो शख्स रमजान में 10 रोज का ऐतेकाफ करें उसका यह अमल दो हज और दो उमरों जैसा होगा। इस अशरे में फरिश्तों की गश्तत बढ़ा दी जाती है। पूरी कायनात अल्लाह की तस्बीह करती है। इसलिए कि इस में एक ऐसी रात है जो हजार रातों से बेहतर है, जिसे शबे कद्र कहते हैं। इस रात में अल्लाह ताला अपने बंदों की आंखों से निकलने वाले आंसुओं की लाज रखता है। खालीके कायनात को बंदे की इस अदा पर बेहद रहम आता है और अल्लाह कहता है  देखो मेरा बंदा मेरी बात पर कितना यकीन रखता है। मुझसे ही मदद मांगता है। मुसलमान को आखिरी अशरे की रात को पाने के लिए वैसे ही तलब होनी चाहिए जैसे दुनिया के अंदर अगर कोई कंपनी किसी मौका पर खुशी का ऑफर निकालती है ,तो खरीदारों में खुशी के ऑफर को पाने की तमन्ना होती है और वह किसी भी सूरत में उसे पाना चाहता है। ठीक उसी तरह इस अशरे में अल्लाह के रहमतों का फायदा उठाएं। नबी करीम सल्लल्लाहो अलैः सल्लम रमजान मुबारक के आखिरी अशरा में दाखिल होते तो कमर में, हिम्मत कर लेते और अपनी रात को इबादत में शबे बिदारी से से जिन्दा करते और अपने घर वालों को भी जगा देते, लेकिन आज मुस्लिम मुआश्रेय का यह हाल है कि हमारे आखिरी अशरे के ज्यादातर आयाम औकात शॉपिंग व खरीदारी में गुजर जाते हैं। हमें इस जानिब ध्यान करनी चाहिए और एतकाफ के रूह को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अल्लाह ताला से दुआ है कि हमें यह लम्हा जिंदगी में हमेशा मयस्सर होते रहे। कुछ दिनों की यह मुबारक माह अब मेहमान है, इसलिए जितनी ज्यादा हो सके, इसमें इबादत कर ली जाए, पता नहीं आइंदा हमें जिंदगी में यह लम्हात मयस्सर आएंगे भी नहीं। हमें इस अशरे को खूब इबादत करनी चाहिए। एतेकाफ के लिए एहतियातन बाद नमाज असर मस्जिद में दाखिल हो जाना मुनासिब है। अल्लाह हम सबको इस माह का एहतराम करने वाला बनाए।

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