जीएनएम भवन के सभागार में छात्र छात्राओं ने नाटक के माध्यम से दिया टीबी पर जीत का संदेश

बक्सर:- विश्व यक्ष्मा दिवस के उपलक्ष्य पर जिला यक्ष्मा केंद्र के तत्वावधान में जीएनएम भवन के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने करते हुए बताया कि जिले में पहले की अपेक्षा लोगों में जागरूकता बढ़ी है।           लोग टीबी और इसके इलाज को लेकर गंभीर हुए हैं। जिससे टीबी मरीजों का सफल इलाज संभव हो सका है। लेकिन अभी भी कुछ बाधाएं हैं, जिनको जल्द से जल्द दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत 2025 तक बक्सर जिला समेत पूरे देश को टीबी से मुक्त करने का निर्णय लिया गया है। जिसे हर हाल में पूरा किया जाएगा। इसके लिए इस बीमारी के होने की स्थिति में लोगों को इलाज की सुविधा के बारे में जानकारी देने के लिए अब टेलीमेडिसिन की भी मदद ली जा रही है। इसके माध्यम से उनका इलाज भी किया जा रहा है। लोगों को जागरुक करने से लेकर रोगियों को दवा खिलाने तक का काम किया जा रहा है।           एमडीआर टीबी के मरीजों का दो साल तक चलता है इलाज:-जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. शालिग्राम पांडेय ने बताया कि जिले को टीबी मुक्त बनाने में एक बाधा यह है की कई लोग टीबी की दवा बीच में ही छोड़ देते हैं, जो काफी चिंतनीय विषय है। इससे मरीजों के एमडीआर (मल्टीपल ड्रग रेजिस्टेंस) टीबी से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, जिले में ऐसे मरीज मरीजों की संख्या कम है।लेकिन, इस संख्या को शून्य करने के लिए जिले में इलाजरत टीबी मरीजों का नियमित फॉलोअप किया जा रहा है। साथ ही, अब एमडीआर टीबी मरीजों को 24 महीने तक लगातार दवा दी जा रही है और उनका नियमित फॉलोअप किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों की सहूलियत को देखते हुए पंचायतों में स्थित हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के माध्यम से रोगियों की पहचान और उनका इलाज किया जा रहा है। वहीं, पीएचसी में भी जांच की सुविधा उपलब्ध है। जांच में टीबी की पुष्टि होने पर आशा के माध्यम से उन्हें दवा दी जाती है। जीएनएम छात्राओं ने नाटक के माध्यम से दिया संदेश:-इस दौरान जीएनएम की छात्राओं ने नाटक के माध्यम से टीबी के प्रति लोगों को जागरूक किया।           जिसमें था दिखाया गया कि जिला यक्ष्मा केंद्र इलाजरत मरीजों का किस प्रकार से फॉलोअप करता है और टीबी की दवा छोड़ने से किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि टीबी की दवा छोड़ने से मरीज एमडीआर टीबी का शिकार हो जाता है और वह अपने परिजनों को भी संक्रमित कर देता है। इसके लिए मरीज को दोबारा जांच कराने के बाद दो साल तक दवाओं का सेवन करना होगा। वहीं, उसके लिए मास्क का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। जिससे टीबी का संक्रमण उसके परिजनों को अपनी चपेट न ले सके। वहीं, एमडीआर टीबी के मरीज के परिवार के सभी सदस्यों की जांच करते हुए उन्हें भी दवाइयां दी जाती हैं। जिससे उनको टीबी से सुरक्षित रखा जा सके। अंत में जिला यक्ष्मा केंद्र के कर्मियों को बेहतर कार्य के लिए सम्मानित किया गया। साथ ही अधिकारियों और कर्मियों ने 2025 तक जिले से टीबी उन्मूलन की शपथ ली।
मौके पर जिला यक्ष्मा केंद्र के डीपीसी कुमार गौरव, प्रधान लिपिक मनीष कुमार श्रीवास्तव समेत सभी एसटीएस, एसटीएलएस और जीएनएम स्कूल की छात्राएं मौजूद रही।

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