शिशु मृत्यु दर में कमी के लिए 23 जिलों में चल रहा होम बेस्ड यंग केयर कार्यक्रम

पटना:- “छोटे बच्चों की गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम” (होम बेस्ड यंग चाइल्ड केयर) में माताओं और उनके अभिभावकों को 3 माह से 15 माह तक बच्चों के देखभाल का गुर सिखाया जा रहा है. इस कार्यक्रम को राज्य के 23 जिलों में चलाया जा रहा है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में शिशु मृत्यु दर में कमी लाना है.इस कार्यक्रम में बच्चों को कृमि से मुक्त करने के लिए माताओं को एल्बेनडाजोल की दवा देकर इसके सेवन के विषय के विषय में जानकारी दी जाती है. आशा द्वारा बच्चों में दिखने वाली बीमारियों जैसे निमोनिया, डायरिया आदि जैसे रोगों के संकेतों की पहचान के लिए बच्चे के माता-पिता का भी उन्मुखीकरण किया जाता है. इस कार्यक्रम के तहत 6 माह तक बच्चों द्वारा सिर्फ स्तनपान एवं 6 माह के बाद अनुपूरक आहार के साथ 2 साल तक स्तनपान जारी रखने की आदत में सुधार करने पर विशेष बल दिया जाता है. कार्यक्रम में माताएं एवं अन्य अभिभावक भी देखभाल का गुर सीख रहे हैं।            कार्यक्रम के कुशल क्रियान्वयन के कारण 3-15 माह तक के बच्चों में होने वाली बीमारियों के संकेतों की पहचान एवं रेफरल से शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में मदद मिल रही है. 3 से 15 माह तक के बच्चों के मानसिक विकास एवं समझने की शक्ति का नियमित अनुश्रवण जरूरी है जिसमें होम बेस्ड यंग चाइल्ड केयर की भूमिका महत्वपूर्ण है.23 जिलों में चलाया जा रहा कार्यक्रम:-“छोटे बच्चों की गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम” (होम बेस्ड यंग चाइल्ड केयर) राज्य के 23 जिलों यथा अररिया, औरंगाबाद, बांका, बेगूसराय, गया, जमुई, कटिहार, खगड़िया, मुजफ्फरपुर, नवादा, पूर्णिया, शेखपुरा, सीतामढ़ी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, सहरसा, शिवहर, भोजपुर, अरवल एवं जहानाबाद में संचालित किया जा रहा है. इस कार्यक्रम में मुख्य उद्देश्य शिशु मृत्यु दर एवं बीमारियों में कमी लाना एवं छोटे बच्चों में पोषण की स्थिति, विकास एवं बच्चों में प्रारंभिक विकास में सुधार लाना है.इसके अंतर्गत 3 माह से लेकर 15 माह तक के बच्चों को आशाओं द्वारा घर-घर जाकर देखभाल प्रदान की जाती है. इस देखभाल में पोषण, स्वास्थ्य, बच्चे का विकास एवं स्वच्छता पर ध्यान दिया जाता है. पोषण में स्तनपान के अलावा अनुपूरक आहार एवं आयरन फोलिक एसिड का सेवन सुनश्चित कराना शामिल किया जाता है. स्वास्थ्य में पूर्ण टीकाकरण एवं बच्चों में ओआरएस के माध्यम से डायरिया नियंत्रण के साथ बच्चों में साफ़-सफाई पर जोर दिया जा रहा है।

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