राहुल सांकृत्यायन की 131 वीं जयंती का किया गया आयोजन

पटना:- महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 131वीं जयंती के मौके पर प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के संयुक्त तत्वाधान में विमर्श का आयोजन मैत्री-शांति भवन में किया गया। विषय था ‘ राहुल सांकृत्यायन और नई दुनिया की संभावना”। इस विमर्श में पटना शहर के साहित्यकार, बुद्धिजीवी, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि मौजूद थे।          विषय प्रवेश प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य कार्यकारिणी सदस्य जयप्रकाश ” राहुल सांकृत्यायन की साहित्य के साथ- साथ आंदोलन से प्रभावित रहे। राहुल जी ने हमेशा घूम-घूम कर लिखा। वे बौद्ध धर्म से प्रभावित रहे। इसके लिए उन्होंने तिब्बत की कई यात्राएं की। वहां से खच्चर पर लादकर सामग्री लाए। जो पटना संग्रहालय में रखा हुआ है। उनकी प्रमुख किताब भागो नहीं दुनिया को बदलो’। उनकी चर्चित किताब है ‘दर्शन दिग्दर्शन’। उन्होंने लगभग आठ नाटक सिर्फ भोजपुरी में लिखा। राहुल जी कभी ठहरे नहीं। हमेशा बेहतर की तलाश में रहे। ऐसे ही उनकी किताब है ‘वोल्गा से गंगा’। राहुल जी को पढ़ते हुए यह लगता है की बेहतर दुनिया बन सकती है। आज जितना कुछ हम हासिल कर पाए हैं उसमें राहुल जी का बहुत बड़ा योगदान है। वे स्वामी सहजानंद सरस्वती के प्रभाव में किसान आंदोलन में शामिल हुए। राहुल के का लेखन और जीवन अलग-अलग नहीं था। काशी प्रसाद जायसवाल ने उनको राजनीति के बजाए लेखन पर केंद्रित करने को कहा। बाद में काशी प्रसाद जायसवाल ने कहा भी है मुझे भूल हुई यदि वे राजनीति वे होते तो गांधी के कद के नेता होते । अपने घर से जब भागे उसके बाद पचास साल बाद घर लौटे। घुमक्कड़ी पर उन्होंने ‘घुमक्कड़शास्त्र’ लिखा। राहुल जी ने सारा लेखन हिंदी में लिखा। ” युवा कवि चंद्रबिंद सिंह ने कहा ” हिंदी में राहुल सांकृत्यायन जैसा यात्रा वृत्तांत लिखा वैसा फिर कभी द्वारा नहीं लिखा गया। मेरे ऊपर राहुल जी की किताब बौद्ध दर्शन का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि अपने पुत्र का नाम हर्षित तीर्थंकर रखा।” ऐप्सो के राष्ट्रीय नेता सर्वोदय शर्मा ने कहा ” राहुल जी विद्रोही व्यक्तित्व के स्वामी थी। भारतीय संस्कृति में सबसे बड़ा विद्रोही महात्मा बुद्ध थे। राहुल जी बीसवीं सदी के सबसे बड़े व्यक्ति थे। वैदिक परंपरा पर सवाल उठाने वाला सबसे बड़े शख्स थे। मैं सब्जी खरीदने से पैसा बचाकर राहुल जी की किताबें चार आना में खरीदकर सीखा। राहुल जी का विकास बहुत तेजी से हुआ कुछ मायनों में बुद्ध से भी आगे। उनकी प्रसिद्ध किताब ‘बाइसवीं सदी’।वे रूस में जाकर वहीं विवाह करते हैं।तिब्बत के सबसे ऊबड़ खाबड़ रास्तों से जाते हैं। पटना संग्रहालय में राहुल जी की किताबों पर जो रिसर्च होना चहिए वह नहीं हो रहा है। बिहार में जब पहली बार दशहरे के दिन कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। दशहरे का दिन पुलिस से बचने के लिए चुना गया था। जिन पांच लोगों को नेतृत्व दिया गया उसमे राहुल सांकृत्यायन जी थे। उनके साथ सुनील मुखर्जी आदि नेता थे। इससे राहुल जी के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। राहुल जी द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में गोमांस खाने का साहस रखते थे। उनके आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर खाली हो जाता था। राहुल जी का भाषा के सवाल पर टकराव हुआ।           कई बार कम्युनिस्ट पार्टी की संकीर्णताओं के कारण उन्हें काफी परेशानी हुई। राहुल जी ने कम्युनिस्ट पार्टी कभी नहीं छोड़ा और न कभी उसकी आलोचना की। ‘इस्कफ’ के राज्य महासचिव रवीन्द्र नाथ राय ने कहा ” मैने भी स्कूल के समय ही राहुल जी की किताबें पढ़ीं। सबसे ज्यादा जब उनकी जीवनी के बारे में मैंने पढ़ा। यदि वे अंग्रेजी में लिखते तो भले नोबल प्राइज मिल सकता था। ऐसी हिंदी जो सामान्य आदमी भी समझ सकता है। विद्वान तो थे ही पर समझने में कोई दिक्कत नहीं। रामायण और महाभारत ने आम भाषा में वर्ण व्यवस्था को जनता की भाषा में समझा दिया। बाइबिल भी लोकप्रिय तब हुआ जब अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ। यदि वे संस्कृत में लिखते तो यह बात नहीं होती। लेखक और पत्रकार संजय श्याम ने कहा ” राहुल संकृत्यान ने आर्य समाजी होते हुए बौद्ध धर्म अपनाया। राहुल जी ने पाया कि जाति और धर्म ही है जो मानव मुक्ति में सबसे बड़ी बाधा है। यह धर्म ही है, मजहब ही है जो हमें आपस लड़वाता है। राहुल जी मेहनतकश वर्ग के साथ जाते हैं। अपने देश में किसानों का आंदोलन चलता है। किसान आंदोलन के दौरान पड़ी लाठी के कारण ही उनकी असमय मौत हुई। वे आज होते तो वरवर राव, अरुण फरेरा और जी एन साईंबाबा की तरह जेल में रहना पड़ता। माकपा नेता अरुण मिश्रा ने कई उदाहरण देते हुए कहा ” यदि आज हम यहां खड़े हैं तो उसकी वजह थे राहुल सांकृत्यायन। हमलोग ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’, बाइसवीं सदी, ‘तुम्हारी क्षय’ पढ़कर ही कम्युनिस्ट बनें। राहुल जी ने जाति, धर्म की क्षय की बात की। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण किताब है ‘ रामराज्य और मार्क्सवाद’ राहुल जी की उस पतली किताब ने करपात्री जी की बखिया उधेड़ दी। हमारे समय में सस्ती किताबें आती थी। उसने कितनी किताबें पढ़ी होंगी सोचकर हैरत होती है।           यायावर थे लडकों को घर से भागना ही चाहिए। हम हेगल, कांट को पढ़ते हैं पर भारतीय दर्शन की मैटेरियलिस्ट परंपरा को नहीं जानते। मार्क्स यहां पैदा होते तो ऐसे लोग मिलते जो ठान की भैतिकतावादी परंपरा से वाकिफ होते। बिहार में स्वामी सहजानंद सरस्वती और राहुल जी की किताबों को बहुत कम पढ़ते हैं। हमारे परिवारों में छुआछूत था और कम्युनिस्ट के बारे में बहुत खराब धारणा थी। राहुल जी खुलेआम बीफ खाता थे। विरोध करने पर चुनौती देते थे। राहुल जी ने छोटे छोटे नेताओं पर लिखा। क्या हमलोग यह काम करते हैं ? आज के अंतर्विरोधों को समझने की कोशिश करते हैं। प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने बताया ” राहुल संकृत्यायन जैसे छत्तीस भाषाओं के जानकार और विद्वान को भारत के किसी विश्विद्यालय में पढ़ाने का मौका नहीं दिया गया क्योंकि उनके पास डिग्री नहीं थी जबकि उनकी किताबें ऑक्सफोर्ड में अंग्रेजी में अनुदित कर पढ़ाई जाती थी। यहां तक कि पटना विश्विद्यालय ने भी उनको कोई क्लास में लेने दिया। राहुल जी को मौका मिला श्रीलंका में और सोवियत संघ में। वहां स्टालिन के काल में उन्हें सबसे ज्यादा मौका मिला। राहुल जी ने धर्मकीर्ति की ग्यारहवीं सदी से गायब किताब ‘प्रमाणवार्तिक’खोजा। इसके लेखक थे प्रख्यात बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति। राहुल जी ने आर्य समाज को छोड़ने का कारण बताया की साधु लोग रसगुल्ले के लिए मारपीट पर उतारू हो जाते थे। सीपीआई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने कहा राहुल जी के समय कैसे आज के समाज से भिन्न रहा है। यह कैसे हो गया विद्रोह का वैचारिक पक्ष था वह कमजोर हो गया। जड़ता वाला सोच हावी होता चला गया। मैंने दक्षिण के राज्यों में देखा की राहुल जी की किताबें पढ़ी जाती थी। वहां भी लोगों ने बताया वे लोग भी राहुल जी की किताब पढ़कर बताए। अजय भवन की लाइब्रेरी का नाम राहुल पुस्तकालय रखा गया है। पीएमसीएच के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ अंकित मेरे बचपन का नाम राहुल रखा गया था। जब मैंने दसवीं पास किया तब मुझे पता चला। मैंने भी उनकी कई पुस्तकों का अध्ययन किया है। राहुल संकृत्यान ने साहस दिखाया। राहुल जी घुमक्कड़ थे। भक्तिकालीन सभी साहित्यकार। ये सभी पूरे भारत की यात्रा किया करते थे। राहुल जी तिब्बत की ओर गए। बौद्ध धर्म की खोज में वहां गए। किताबों की पांडुलिपि लाने वे गए। वे दुर्गम जगहों पर जाते थे। कथाकार चितरंजन ने अपने संबोधन में बताया एक बात है शास्त्र सम्मत और एक है लोक सम्मत। जो लोग जयश्री राम का झंडा लेकर चलते हैं उनलोगो ने तो एकदम अपने धर्मग्रंथों को नहीं पढ़ा है । काशी प्रसाद जायसवाल ने लाकर रखा। हमें राहुल जी किताबों को घर में रखना चाहिए।            एआईएसएफ के पटना जिला सचिव मीर सैफ अली ने बताया ” मुझे लगता था कि सिर्फ मैं ही ‘तुम्हारी क्षय’ पढ़कर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। लेकिन आज पता चला कि हमारे सीनियर लोग भी उसी किताब को पढ़कर पार्टी में आए हैं। दूसरी बात यह है उनकी किताबें सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाए। सभा को सामाजिक कार्यकर्ता उदयन ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन जनवादी लेखक संघ के कुलभूषण गोपाल ने किया। इस विमर्श में राजू कुमार, गौतम गुलाल, मनोज कुमार, पुष्पेंद्र शुक्ला, उदयन, जितेंद्र कुमार, सुजीत कुमार, डॉ अंकित, मंगल पासवान, भारती राय शामिल थे।

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