दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ नहीं मिलता:-उद्धव दास

सहरसा:-लाड़ली अन्विका के जन्मोत्सव पर आयोजित बिहरा ग्राम के बद्री नारायण आवास पर आयोजित परम पवित्र श्री मद भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर जगद्गुरू परम सिद्ध श्री राधा वल्लभ दास जी महाराज के परम भागवत शिष्य श्री उद्धव दास जी महाराज ने भगवान वामन अवतार पर विशेष चर्चा की एवं वामनावतार उत्सव मनाया गया। श्री महाराज ने कथा आरंभ श्री मदभागवत आरती से किया साथ ही अजीत भैया एवं साथियों के द्वारा प्रस्तुत मनमोहक भजनों से श्रोता को झूमने पर मजबूर कर दिया। कथा के आरंभ में श्री व्यास जी ने नाम एवं सत्संग की महत्ता भक्तों को बताया कि इस कलिकाल में किसी बड़े आडंबर की जरूरत नहीं है बल्कि सिर्फ़ नाम के सहारे ही प्रभु की प्राप्ति हो सकती है। श्री महाराज ने अपने श्री मुख से बताया कि भगवान वामन त्रेता युग के आरंभ में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में देवी अदिति के गर्भ से प्रकट हुए।        इनके पिता कश्यप थे एवं इनके बड़े भाई विवस्वान, इन्द्र, वरुण, पूषा, अर्यमा, भग, धाता, पर्जन्य, अंशुमान, त्वष्टा और मित्र थे। उन्होंने कथा में बताया कि श्री प्रह्लाद जी के वंशज राजा बलि ने दंभ अहंकार से भर कर तीनों लोकों पर अपनी राज्य स्थापित करने की कोशिश की और दंभ के वशीभूत हो कर उन्होंने भगवान वामन को तीन पग भूमि देने का प्रण लिया और भगवान ने दो पग में ही सभी लोकों को नाप लिए तो तीसरे पग को राजा बलि ने अपने सर पर रखने को कहा ताकि उनके दिये वचन पूरे हो। राजा बलि की वाचनबद्धता से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्हें उनका एक अलग लोक दे दिया। इस कथा के माध्यम से महाराज श्री ने बताया कि इससे हमें शिक्षा मिलती है कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ नहीं मिलता और धन संपदा सब क्षणभंगुर है।

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