दवाओं का पूरा कोर्स ही कालाजार की चपेट में आने से करेगा मरीजों का बचाव

आरा:-जिले में कालाजार से लोगों को बचाने के लिए प्रभावित इलाकों में इंडोर रेसिडेंशियल स्प्रे (आईआरएस) के तहत दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है। जिसके तहत 11 मई से सदर प्रखंड के लक्षणपुर और भलूंहीपुर में सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) पाउडर का क्रमवार छिड़काव शुरू होगा। ताकि, इन कालाजार प्रभावित इलाकों के लोगों को बालू मक्खियों के प्रकोप से बचाया जा सके।           स्वास्थ्य विभाग के जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण विभाग के स्तर से अब तक जगदीशपुर प्रखंड के सियारुंवा गांव, आरा ग्रामीण में जमीरा, आरा शहरी में धरहरा वार्ड में दवाओं का छिड़काव पूरा कर लिया गया है। जिसके बाद अब शेष चयनित वार्डों में छिड़काव किया जाएगा। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। लेकिन, अब कालाजार को जड़ से मिटाने के लिए लोगों की सहभागिता अति आवश्यक हो चुकी है। यह तभी संभव होगा, जब सामुदायिक स्तर पर लोग कालाजार को लेकर जागरूक बनें। इसके लिए लोगों को कालाजार के लक्षणों की पहचान से लेकर इलाज की पूरी जानकारी होनी चाहिए। त्वचा के कालाजार की चपेट में दोबारा आते हैं मरीज:-सिविल सर्जन डॉ. ईला मिश्रा ने बताया कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आने के कारण भारत में कम से कम 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय (एनटीडी) रोग मौजूद हैं। इन रोगों से रोगी में दुर्बलता तो आती ही है, कई स्थितियों में ये पीड़ित व्यक्ति की मौत का कारण भी बनती हैं। उन्होंने बताया कि कालाजार के संबंध में लोगों को यह बात जाननी जरूरी है कि इस बीमारी से पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज दोबारा से इसकी चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में मरीज के शरीर पर त्वचा संबंधी लीश्मेनियेसिस रोग होने की संभावना रहती है। इसे त्वचा का कालाजार (पीकेडीएल) भी कहा जाता है। पीकेडीएल का इलाज पूर्ण रूप से किया जा सकता है। इसके लिए लगातार 12 सप्ताह तक दवा का सेवन करना पड़ता है। साथ ही, इलाज के बाद मरीज को 4000 रुपये का आर्थिक अनुदान भी सरकार द्वारा दिया जाता है। इसलिए पीकेडीएल से बचने के लिए मरीजों को कालाजार के इलाज के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा करने की सलाह दी जाती है। एनटीडी रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग:-जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. केएन सिन्हा ने बताया कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग है। इसके कारण जिला समेत पूरे राज्य में हर साल मरीज पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पीकेडीएल यानी त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता और वहीं रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है। उन्हें बार-बार बुखार आने लगता है।           साथ ही, भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि इसके लक्षण के रूप में दिखाई देने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को तुरंत नजदीक के अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवानी चाहिए। ठीक होने के बाद भी कुछ व्यक्ति के शरीर पर चकता या दाग होने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भी अस्पताल जाकर अपनी जांच करानी चाहिए।

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