भूपेंद्र बाबू की पुण्यतिथि पर राठौर की कलम से…..

अपने भूपेंद्र बाबू सबके भूपेंद्र बाबू…..

मधेपुरा:-किसी समाज की मिट्टी अपनी संस्कृति की संपूर्णता की अभिव्यक्ति के लिए अपने समाज में ही समय-समय पर ऐसे लोगों को उत्पन करती है जिनके कर्मयोग की क्षमता देख मानव समाज उसे आदरणीय बना लेता है। प्राचीन काल से सांस्कृतिक, सामाजिक, दार्शनिक, धार्मिक और राजनीतिक पुनर्जागरण के प्रस्फुटन की धरा मधेपुरा भी इससे अछूती नहीं रही। अलग-अलग क्षेत्रों में कई नामचीन हस्तियां इसकी उर्वरा भूमि की जीवंत हस्ताक्षर हैं।                    समाजवाद के अमिट स्याही भूपेंद्र नारायण मंडल इस कड़ी में अग्रिम पंक्ति के नाम हैं। एक फरवरी 1904 को अपने मातृकुल साहुगढ़ में जन्में भूपेंद्र नारायण मंडल बाबू जयनारायण मंडल और दानावती देवी के सदैव लाडले रहे। समाजसेवा और राजनीति के प्रति प्रारंभ से रहा लगाव:-नामचीन जमींदार विरासत के बाद भी समाजसेवा बाल्यकाल से जीवन का हिस्सा रहा। छात्रवस्था में गांधी जी,डॉ राजेंद्र प्रसाद,शौकत अली के प्रभाव और आह्वान पर 1921 में विद्यालय बहिष्कार का नेतृत्व किया फलस्वरूप सीरीज इंस्टीट्यूशन ने निष्कासित कर दिया।1930 में अनुमंडलीय न्यायालय मधेपुरा में वकालत आरंभ किया। मधेपुरा में राजनीतिक गतिविधि के केंद्र बिंदु थे भूपेंद्र बाबू:-1937 में अंबेडकर के नेतृत्व वाली जस्टिस पार्टी से जुड़े, 1942 में वकालत छोड़ भारत छोड़ों आंदोलन को प्राथमिकता दी, 13 अगस्त 1942 को मधेपुरा कोर्ट स्थित कोषागार में तालाबंदी कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, 1945 में तत्कालीन भागलपुर जिला कांग्रेस पार्टी स्थापना में सक्रिय भागीदारी दी, 1950 में सुपौल के भूमि सुधार आंदोलन में भागीदारी और सोशलिस्ट पार्टी गठन के आधार स्तंभ रहे, 1954 आते आते बिहार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रांतीय सचिव बने भूपेंद्र बाबू धीरे-धीरे आजाद मुल्क में सूबे बिहार की राजनीतिक मानचित्र पर स्थापित हो चुके थे, 1955 में पार्टी विघटन के उपरांत सोशलिस्ट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और इसी पार्टी तले 1957 में मधेपुरा से विधायक बने, धीरे-धीरे राष्ट्रीय फलक पर स्थापित हो चुके भूपेंद्र बाबू डॉ. लोहिया से गहरे लगाव के सूचक बन चुके थे, 1959 में अखिल भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष, 1962 में मधेपुरा से लोकसभा सदस्य निर्वाचित, 1967 में संसदीय समिति संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने, 1966,1972 में राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। भूपेंद्र बाबू के समाजवाद में विदेश भ्रमण का भी था प्रभाव:-भूपेंद्र नारायण मंडल के समाजवाद के प्रति विस्तृत चिंतन मनन में बर्लिन, वियना, लंदन, पेरिस, फ्रैंकफर्ट, ज्यूरिख, रोम जैसे देशों के विदेश भ्रमण से प्राप्त अनुभव और वहां के समाज की समझ का भी अहम योगदान रहा। समाज सृजन और राजनीतिक सफर जब निरंतर नई पटकथा लिख रहा था इसी दौरान डॉ. लोहिया की के विचारों के सारथी भूपेंद्र बाबू ने 29 मई 1975 को एक स्थानीय ग्रामीण यात्रा के दौरान टेंगरहा में आखिरी सांस ली। आमजन के हित में लगातार संघर्ष के कारण आधे दर्जन दफा जेल जाना पड़ा जिसमें गुलाम भारत में दो और आजाद भारत में चार दफा। समाज सृजन, पुस्तकों के अध्ययन की जहां लत थी वहीं बैलगाड़ी और बाद में जीप उनके जन संवाद का सबसे बड़ा संवाहक। जहां सोशलिस्ट पार्टी के चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन में अध्यक्षीय संबोधन में उनके कहे गए वाक्य “अधमरा सामंतवाद, बूढ़ा पूंजीवाद, युवा कम्युनिज्म और अपंग एवम रोगग्रस्त समाजवाद के घात- प्रतिघात के अंदर वर्तमान सभ्यता में सड़न पैदा हो गई है।” उनके समाजवादी चिंतन और मनन के बीच की छटपटाहट का दर्पण प्रतीत होता हैं। वरीय पत्रकारों, साहित्यकारों, राजनेताओं ने भी भूपेंद्र बाबू को बताया समाजवाद की अमिट स्याही:-वहीं भारत के वरीय पत्रकार उर्मिलेश जी लिखते हैं कि “बीसवीं शताब्दी के छठें-सातवें दशक में भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवादी राजनीति आंदोलन के न सिर्फ शीर्ष नेताओं में शुमार होते रहे अपितु पूरब के सबसे बड़े सोशलिस्ट माने जाते थे। “दूसरी तरफ देश के बुद्धिजीवी चिंतकों की बड़ी पसंद पत्रकार रवीश कुमार भूपेंद्र बाबू को अपनी भाषणों में हमेशा जनता को केंद्र में रखने वाले नेता के रूप में याद करते हुए कहते हैं कि आज के लंपट दौर में भूपेंद्र बाबू को समझने के लिए साठ के दशक में राज्य सभा में उनके द्वारा दिए उस भाषण को याद करना ज़रूरी है जब उन्होंने कहा था कि “जनतंत्र में अगर कोई पार्टी या व्यक्ति यह समझे कि वही जब तक शासन में रहेगा तब तक संसार में उजाला रहेगा, वह गया तो सारे संसार में अंधेरा हो जायेगा, इस ढंग की मनोवृति रखने वाला, चाहे वह व्यक्ति हो या पार्टी, वह देश को रसातल में पहुंचाएगा।” वरीय साहित्यकार प्रो. सिद्धेश्वर काश्यप की मानें तो भूपेंद्र बाबू समाजवाद के ज्ञाता ही नहीं बल्कि समाजवाद को जीने वाले नेता थे। भूपेंद्र बाबू के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ रमेंद्र कुमार रवि भूपेंद्र बाबू के समाजवाद की चर्चा करते हुए लिखते हैं “समाजवाद सूरज होगा, चांद होगा, हवा बनकर हर एक घर आंगन में जायेगा, स्पर्श करेगा जीवन को सहलाएगा…..हमारा सुख दुख एक होगा। हम एक दूसरे का सहारा और भरोसा बनकर इस जग का, जीवन का, जीवन नियंता का सही उद्देश्य पूरा कर सकेंगे।’ गर ऐसा हुआ तो यकीनन यही भूपेंद्र बाबू के सपने और संघर्ष का मुकाम *समाजवाद* होगा। जाने के पांच दशक बाद भी जब लोग आपकी चर्चा कर रहे …विचारों पर मंथन कर रहे तो यह जीवंत प्रमाण है कि आपका जीवन आपसे ज्यादा समाज की सेवा, दबे कुचले लोगों के उत्थान में अर्पित रहा होगा, छोटे से छोटा आदमी भी आपके संपर्क में आकर हर बात से परे समान हो जाता होगा शायद यही तो सच्चा समाजवाद है।       भूपेंद्र बाबू के सम्मान में स्थापित और अंकित हैं कई हस्ताक्षर:-भूपेंद्र बाबू हर दौर में समाजवाद के सूचक बन याद आयेंगे और उनके नाम पर बना भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा, भूपेंद्र नारायण मंडल कॉमर्स कॉलेज, बीएन मंडल स्टेडियम मधेपुरा, बीएन मंडल कला भवन मधेपुरा, कॉलेज चौक, विश्वविद्यालय एवम कॉमर्स कॉलेज परिसर स्थित उनकी प्रतिमा उनके प्रति समाज और सरकार के सम्मान व दिवानगी का दर्पण प्रतीत होगा। चंद शब्दो संग 49 वीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि….भूपेंद्र बाबू का कृतित्व और व्यक्तित्व शब्दों की परिधि से परे है आप के लिए बस इतना ही अपने भूपेंद्र बाबू सबके भूपेंद्र बाबू…..

हर्षवर्धन सिंह राठौर
प्रधान संपादक, युवा सृजन
संयुक्त सचिव, भूपेंद्र विचार मंच मधेपुरा।

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