एक प्रतिशत व इससे अधिक एमएफ रेट होने पर ही प्रखंडों में चलेगा एमडीए राउंड

बक्सर:- राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत जिले में 10 अगस्त को सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) राउंड शुरू होने वाला है। जिसके लिए जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण विभाग तैयारियों में लगा हुआ है। फिलवक्त एमडीएम के पूर्व होने वाले नाईट बल्ड सर्वे (एनबीएस) के लिए लैब टेक्नीशियन्स को प्रशिक्षित किया जाना है। जिसके बाद अधिकारियों और कर्मियों को प्रशिक्षित कर एनबीएस को निर्धारित अवधि में सम्पादित किया जाएगा। एनबीएस के आधार पर ही जिले में एमडीए अभियान के संचालन का निर्णय लिया जाएगा। सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि जिले के ग्रामीण व शहरी इलाकों में फाइलेरिया (हाथीपांव) के कई मरीज मौजूद हैं। कई मरीजों में हाथीपांव के गंभीर मामले भी देखने को मिले हैं। उन्होंने बताया कि नाइट ब्लड सर्वे जिले में फाइलेरिया मरीजों को पता लगाने का महत्वपूर्ण माध्यम है। सर्वे की मदद से फाइलेरिया प्रसार दर का पता लगाया जाता है। नाइट ब्लड सर्वे अभियान की मदद से जिले में हाथी पांव समेत फाइलेरिया से बचाव को लेकर माइक्रो प्लान तैयार करने में सहायता होती है। इससे फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों पर स्वास्थ्य विभाग अपना ध्यान केंद्रित कर सकेगा और प्रसार दर के अनुसार हाथीपांव से बचाव के लिए लोगों को सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम को सफल बनाने की दिशा में काम करेगा। चौसा और राजपुर में एक से कम था प्रसार दर:- मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि पिछली बार की एनबीएस रिपोर्ट के अनुसार जिले में माइक्रो फाइलेरिया रेट 1.4 प्रतिशत थी।         जिसमें चौसा और राजपुर में निर्धारित मानक के अनुसार एमएफ रेट से कम रिपोर्ट आई थी। वहीं, जिले के सदर प्रखंड, इटाढ़ी, डुमरांव, ब्रह्मपुर नावानगर, सिमरी, केसठ, चौगाई व चक्की प्रखंड में की एनबीएस रिपोर्ट एक से अधिक थी। इसलिए फाइलेरिया प्रसार को देखते हुए जिले के सभी प्रखंडों में एमडीए राउंड चलाया गया था। उन्होंने बताया कि इस बार नाइट बल्ड सर्वे के लिए अन्य साइट्स का चयन किया जाएगा। इसके लिए सभी प्रखंडों से उनके क्षेत्र के मरीजों की जानकारी मांगी गई है। जिसके आधार पर सेंटिनल साइट का चयन कर वहां पर एनबीएस संचालित कराया जाएगा। लक्षण दिखने पर अनिवार्य रूप से कराई जाए जांच:-जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, फाइलेरिया से बचाव के लिए शुरुआती दौर में ही बीमारी की सही जानकारी जरूरी है। यह तभी संभव है, जब लोगों में शुरुआती यानी लक्षण दिखने पर जांच अनिवार्य रूप से करायी जाए। इसलिए फ्रंटलाइन वर्कर्स के माध्यम से लोगों को जागरूक किया गया। जिनकी बदौलत लोगों का सहयोग मिला और लक्ष्य की प्राप्ति की सकी। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया का कोई पर्याप्त इलाज संभव नहीं है। लेकिन, इसे शुरुआत में ही पहचान करते हुए रोका जा सकता है। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को फाइलेरिया ग्रस्त अंगों को पूरी तरह स्वच्छ पानी से साफ करना चाहिए। साथ ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही डीईसी व अल्बेंडाजोल की दवा का नियमित सेवन करना चाहिए।

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