कृषि अनुसंधान परिसर पटना में बागवानी पौधशाला का हुआ लोकार्पण

जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण हेतु मृदा एवं जल प्रबंधन जरूरी:-डॉ. सिंह एवं डॉ. आचार्य

पटना(सुनयना सिंह):-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में मंगलवार को बागवानी पौधशाला का लोकार्पण डॉ. अनिल कुमार सिंह, पूर्व उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रभाग), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली एवं पूर्व कुलपति, राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कर कमलों द्वारा किया गया।           इस दौरान डॉ. सी. एल. आचार्य, पूर्व निदेशक, भा.कृ.अनु.प. भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल एवं डॉ. के. जी. मंडल, निदेशक, भा.कृ.अनु.प. महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान, मोतिहारी भी उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने बताया कि स्थानीय किसानों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पौधों की उपलब्धता ससमय सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती रही है। संस्थान द्वारा की गई इस पहल से किसानों एवं अन्य हितधारकों को बहुत लाभ होगा। साथ ही साथ उन्होंने संस्थान की शोध, प्रसार एवं शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह संस्थान कृषि अनुसंधान क्षेत्र में नवाचार हेतु प्रतिबद्ध है। उन्होंने संस्थान में संचालित नवनिर्मित आईएआरआई पटना हब के बारे में अतिथियों को अवगत कराया एवं वहां उपस्थित छात्रों से परिचय करवाया। तत्पश्चात अतिथियों ने प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान प्रगतिशील परियोजनाओं, यथा प्राकृतिक खेती, समेकित कृषि प्रणाली मॉडल, पोषण वाटिका, सौर ऊर्जा इकाई, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, पशुधन एवं मत्स्य इकाई आदि का अवलोकन किया एवं संस्थान की गतिविधियों तथा नवाचार की प्रशंसा की।वैज्ञानिकों के साथ संवाद के दौरान डॉ. ए. के. सिंह ने समेकित कृषि प्रणाली के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कृषि के आधुनिक तकनीकों, यथा सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, कृषि क्षेत्र में ड्रोन एवं नैनो उर्वरक के उपयोग इत्यादि को अपनाकर जल एवं पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता बढ़ाकर कृषि उत्पादकता में वृद्धि की बात कही। डॉ. आचार्य ने बताया कि स्वस्थ मृदा ही टिकाऊ कृषि प्रणाली का आधार है।          अतः मृदा जांच के उपरांत ही आवश्यकतानुसार उर्वरकों तथा अन्य कृषि आदानों का प्रयोग करना चाहिए, ताकि मृदा का स्वास्थ्य बना रहे तथा बदलती जलवायु के परिप्रेक्ष्य में कृषि से सतत उत्पादन की प्राप्ति हो सके। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. उज्ज्वल कुमार, डॉ. अभिषेक कुमार, डॉ. तन्मय कुमार कोले, डॉ. कुमारी शुभा, अभिषेक कुमार, अनिल कुमार, उमेश कुमार मिश्र एवं अन्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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