बकरीद मे हर साहिब ए निसाब को कुर्बानी देना वाजिब है:-मुफ्ती

अररिया:-ईद के बाद मुसलमानों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार ईद उल अजहा (बकरीद पर्व) मनाया जाता है। आगामी 17 जून को बकरीद की नमाज अदा की जाएगी। इस्लामी कैलेंडर के 12 वें महीने जिलहिज्जा की दसवीं तारीख को मनाया जाने वाला यह पर्व तीन दिनों का होता है। ईद की ही भांति इस पर्व में ईदगाह समेत मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है और लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं । बकरीद में नमाज के बाद तंदुरुस्त जानवर की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद एकता व भाईचारा को मजबूत करता है। उक्त बातें मदरसा फैज ए रहमानी के संस्थापक अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी साहब ने कही।                    उन्होंने कहा कि कुर्बानी का बड़ा मकसद यह भी है कि हम खुशी के दिन अपने साथ गरीबों, रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों को भी खुशी में शामिल करें। यही वजह है कि इस्लाम ने हुक्म दिया है कि कुर्बानी के मांस का एक हिस्सा खुद रखा जाता है, जबकि दो हिस्से आस-पड़ोस, दोस्तों, रिश्तेदारों और गरीबों में बांट दिया जाता है। कुर्बानी का संदेश यह है कि जैसे हजरत इब्राहिम, अल्लाह के लिए अपने बेटे हजरत इस्माइल को बलिदान करने के लिए तैयार थे वैसे ही हर आदमी को अपनी भावनाओं का त्याग करना चाहिए। ध्यान नीरहे की कुर्बानी इबादत है। साथ ही यह ध्यान रखें कि किसी को नुकसान ना पहुंचे। दुर्गंध और बीमारी पैदा करने वाली कोई भी चीज नहीं फैंके। साफ़ सफाई का पुरा पूरा ख्याल रखें। यह त्यौहार सादगी और शांति के साथ खुशियों का उत्सव मनाने एक दूसरे को गले लगाने और आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने की विशेषता भी है। मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी साहब ने बताया कि हर साहिबे निसाब मुसलमान पर अपनी ओर से कुर्बानी देना वाजिब है। जिस शख्स के पास साढ़े 52 तोला चांदी और साढ़े 7 तोला सोना हो उसके लिए कुर्बानी देना वाजिब है। तीन दिनों तक यानी बकरीद की नमाज के बाद से लेकर 12वीं जिलहिज्जा की शाम तक कुर्बानी की जा सकती है। इन तीन दिनों में कुर्बानी से बढ़कर अल्लाह को ज्यादा प्यारी चीज कोई नहीं है। बताया कि कुर्बानी लोगों के दिखावा के लिए नहीं हो बल्कि अल्लाह के रास्ते में अल्लाह को राजी करने के लिए हो। कुल मिलाकर मुस्लिम समुदाय में काफी हर्ष व उत्साह व्याप्त है। लोग कुर्बानी के जानवर बकरे आदि लेने में मशगूल हैं। यह पर्व हजरत इब्राहिम अलेह सलाम की सुन्नत मनाई जाती है। ईद उल अजहा के मौके पर नवी जिल्हिज्जा के फजर के नमाज के बाद से लेकर 13 वीं जिल्हिज्ज के असर नमाज तक तकबीर तशरीके पढ़ी जाती है जो हर मर्द औरत बालिग, नाबालिग जो नमाज में शरीक होगा उसे तकबीर तशरीक पढ़ना वाजिब है। महिलाएं अपने घर पर ही नमाज अदा करें इसे भी तकबीर तशरीक पढ़ना चाहिए जो वाजिब है।

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