प्रगतिशील लेखक संघ और अभियान सांस्कृतिक मंच ने किया बर्तोलत ब्रेख्त की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर कार्यक्रम

पटना:- प्रगतिशील लेखक संघ और अभियान सांस्कृतिक मंच की ओर से विश्वख्यात कवि व नाटककार बर्तोलत ब्रेख्त की 125 वीं वर्षगांठ के मौके पर विमर्श का आयोजन किया गया। विमर्श का विषय था बर्तोलत ब्रेख्त जीवन और रंगमंच। प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित इस विमर्श में पक्तना शहर के रंगकर्मी, बुद्धिजीवी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। पूरे कार्यक्रम का संचालन युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने किया। अरविंद श्रीवास्तव ने विषय प्रवेश करते हुए कहा में बर्लिन और बॉन में रहा हूं। हेमबाल्ड यूनिवर्सिटी ने मूझपर फिल्म भी बनी। पूर्वी जर्मनी से मेरा अस्सी के दशक से मेरा ताल्लुक रहा था। इंदिरा गांधी, ब्रेजनेव और जर्मनी के प्रसारण केंद्र रेडियो बर्लिन से हो गया था।के ब्रेख्त मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े रहे। दूसरे विश्वयुद्ध के इरान कई मुल्कों का भ्रमण किया। उनसे थोड़े पहले ही चार्ली चैपलिन थे। यूरोप में तब बहुत लोग थे जो बीसवीं सदी के आरंभ में। हिटलर के दमन में बहुत से कलाकार यूरोप से भाग गए। ब्रेख्त कहा करते थे कि कला आइना नहीं दिखाता बल्कि हथौड़ा बनकर आकार प्रदान करता है। पटना साइंस कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक शोभन चक्रवती ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा बर्तोलत ब्रेख्त की शुरुआती जर्नी मार्क्स की यह पंक्ति थी कि दार्शनिकों ने व्याख्या की है मूल सवाल उसे बदलने का है। वे पूरी जिंदगी बदलाव की लड़ाई में रहे अपने कविता और रंगमंच के माध्यम से।            वे एंटी फासिस्ट एक्टीविस्ट थे। वे अरस्तू से भिन्न नाट्य प्रयोग को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने एपिक थियेटर की अवधारणा को आगे बढ़ाया। ऐसे नाटक में सत्ता जो चाहते हैं जनता या दर्शक भी वही बात बोलता है। विरोध करना है तो आत्म मुग्धता के खिलाफ बोलना है। थियेटर के माध्यम से एलियनेशन इफेक्ट का माध्यम था। पात्र से एकात्म के बदले उससे अलग करने की बात किया करते थे। अपने अभिनय के माध्यम से अपने पात्रों के साथ एकाकार नहीं हो जाना है। स्क्रिप्ट को आधार मानते हुए आप अपना काम करिए। ब्रेख्त ने वी इफेक्ट और जेस्टस के बात की थी। वे रंगमंच को भी सामाजिक परिवर्तन का माध्यम माना करते थे। थियेटर भी प्रोडक्शन सिस्टम की तरह है। ब्रेख्त का मानना था कि दुनिया कई रंग से रंगी हुई है अतः वे सारे रंग आने चाहिएं।रियलिज्म को कैसे देखा जाए यह उनके लिए चुनौती थी। वरिष्ठ रंगकर्मी विनोद कुमार वीनू ने ब्रेख्त के रंगमंच संबंधी कई उद्धरणों का उदाहरण देते हुए कहा जो रंगकर्मी दर्शकों की कल्पना शक्ति पर भरोसा नहीं करते वे जनता को जीवित संपर्क में नहीं आने देते। पतनशील संस्कृति के लिए हमारे शासक वर्ग ने सभी दरवाजे खोल दिए है। वीनू जी ने बर्तोलत ब्रेख्त की दो कविताओं का पाठ भी किया। पटना रंगमंच के वरिष्ठ अभिनेता जावेद अख्तर ने बताया भारत में एक जमाने में स्टानिस्लावस्क के बदले ब्रेख्त को अपनाने का चलन इतना शुरू कर दिया है। पटना इप्ता ने कौकेशियान चौक सर्किल ने मंचन कियाका था। चीनी और एशियाई लोक कथा को आधार बनाकर ब्रेख्त ने मंचन किया। यह नाटक भिखारी ठाकुर के गबर घिचोर से मिलता जुलता है। लोक गाथाएं यात्राएं करते हैं। वे हमारी सामूहिक स्मृति का हिस्सा रहा करती है। शेक्सपीयर के समय की चीजें हमें छूती है। आज एक ऐसा आदमी हम पर राज कर रहा है कि हैरत होती है। दिक्कत यह है कि व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक पीढ़ी आत्ममुग्ध हो जाए तो क्या किया जाए। जब हिटलर का उत्थान हुआ तो उन्हें कई देशों में जाना पड़ा। बाद में इनपर काफी आरोप लगे। ब्रेख्त ने अंधेरा युग को झेलते हुए आतताई सत्ता का मुकाबला करते हुए। जावेद अख्तर ने भी ब्रेख्त की कुछ कविताओं का पाठ किया। प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने बताया ब्रेख्त मात्र 24 साल की दुनिया में नाटक में दुनिया में मशहूर शख्स बन चुके थे। 1 जनवरी 1929 को मेंडिवास के दिन मजदूरों पर बर्बर रंग से मारा गया तब वे संगठित मजदूर वर्ग के ओर आकर्षित होने लगे। बर्तोलत ब्रेख्त कहा करते थे कि अतीत को समकालीन बनाना राजनीतिक रुप से खतरनाक माना जाता है। मान लीजिए आज आप कालिदास का नाटक अभिज्ञान शाकुतलम करना चाहते हैं तो आप ब्रेख्त के एलियेनेशन इफेक्ट का इस्तेमाल करके उसे आज के अनुसार कर सकते हैं। ब्रेख्त को अपना देश जर्मनी छोड़ना पड़ा जब हिटलर सत्ता में आया क्योंकि नाजी पार्टी ने उनको हिटलिस्ट में रखा हुआ था। उनका नाटक ‘थ्री पेनी ओपेरा’, मदर करेज एंड हर चिल्ड्रेन, रेसिस्टेबल राइज और आरती उई आदि। ब्रेख्त मानते थे कि यदि आप फासीवाद से लड़ना चाहते हैं तो उसकी जड़ संपत्ति संबंधों पर बोलना होगा। कवि व संस्कृतिकर्म आदित्य कमल ने कहा आज समाज कंटेंट से भरा हुआ है जबकि लोग अंधा युग का धर्मवीर भारती, गिरीश कर्नाड, विजय तेंदुलकर में फंसे हुए है। हबीब तनवीर को छोड़ कर किसी में कोई ताज़गी नहीं दिखाई देता है। युवा रंगकर्मी राजू कुमार ने ब्रेख्त की कविता का पाठ किया जबकि अनिल अंशुमन ने गीत गाकर समापन किया। कार्यक्रम में मौजूद प्रमुख लोगों में थे अरुण सिंह, अरुण शाद्वल, राजीव रंजन, राज कुमार शाही, अभिषेक विद्रोही, गौतम गुलाल, सुब्रो भट्टाचार्य, अभय पांडे, निखिल कुमार झा, हरेंद्र कुमार, उत्कर्ष आनंद, निखिल आनंद गिरिर्ल, रोहित, प्रो सुधीर कुमार, रविकांत, रविकिशन, चंद्रबिंद सिंह, मनोज कुमार, संजय कुमार कुंदन, पंकज करपटने मौजूद थे।

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