डॉ. जगन्नाथ मिश्र आमलोगों के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्त्ताओं का रखते थे ख्याल

सहरसा:-मिथिला मैथिली अभियानी शिक्षाविद दिलीप कुमार चौधरी ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. डाॅ. जगन्नाथ मिश्र की जयंती मनाये जाने को लेकर अपने उदगार व्यक्त किया। श्री चौधरी ने कहा कि भारतीय राजनीति में कई दशकों तक अपनी राजनीतिक अंतर्दृष्टि के बल पर मिथिला-बिहार से लेकर संपूर्ण भारत वर्ष में अपने रणनीतिक सूझ-बूझ से देश की सेवा की। भारतीय राजनीति में असहयोग आंदोलन के समय से ही इस परिवार का असीम योगदान रहा है। 1920 ई. में पं राजेन्द्र मिश्र जी का गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल होने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश से ही इनके परिवार की राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। इसके बाद भारतीय राजनीति की धूरी कहे जाने वाले साथ ही भारतीय वांग्मय राजनीति को अपने दूरदर्शी सोच से आवेशित करने वाले मिथिला विभूति पं ललित नारायण मिश्र का भारतीय राजनीति में पदार्पण हुआ।                         इस प्रकार से भारतीय राजनीति में मिथिला का यह परिवार। तत्कालीन राजनीति के लिए अपरिहार्य बन गया और अपने राजनीतिक कौशल के बल पर मिथिला के इन सपूतों ने बिहार के साथ-साथ भारतीय राजनीति को अपने बुद्धि से उद्वेलित करता रहा। डाॅ. जगन्नाथ मिश्र शुरू के अपने छात्र जीवन में सर्वोदयी विचारधारा से काफी प्रभावित थे। बाद में अपने परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तरफ अग्रसर हुए। डॉ. मिश्र पेशा से शिक्षक थे। वो अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में बिहार विश्वविद्यालय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अर्थशास्त्र पर लगभग दो दर्जन से अधिक  किताबों की रचना की। वो अर्थशास्त्र के बहुत बड़े ज्ञाता थे। उनका राजनीति में प्रवेश एमएलसी के रूप में हुआ। पहली बार 1975-77 में बिहार जैसे बड़े एवं राजनीतिक रुप से संवेदनशील राज्य के मुख्यमंत्री बने। पुनः 1980 में दूसरे बार मुख्यमंत्री बने। 1983 में मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। पार्टी में शीर्ष नेताओं से मतभेद होने के बावजूद भी अपने रणनीतिक कौशल से अपने पद, प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को बनाए रखा। तीसरी बार कुछ महीनों के लिए मुश्किल की घड़ी में कांग्रेस आलाकमान ने इन्हें बिहार का कमान सोंपा। इस बार डाॅ. मिश्र ने कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल तो नहीं हुए परंतु सम्मान जनक आंकड़ा जरूर प्राप्त किए। सरकार में रहते हुए उन्होंने बहुत बड़े-बड़े फैसले लिए। मसलन शिक्षकों के वेतन मान में वृद्धि, कई महाविद्यालयों का सरकारीकरण, हजारों प्राथमिक विद्यालयों एवं माध्यमिक विद्यालयों का सरकारीकरण, हजारों चौकीदारों के सेवा का स्थायीकरण से लेकर कई परियोजनाओं को स्वीकृति देने का काम किया। उन्होंने कहा कि राजनेताओं के बीच काफी लोकप्रिय रहने के बावजूद वो सदैव आमलोगों के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्त्ताओं का ख्याल रखते थे। उन्होंने कहा कि उनकी याददाश्त काफी अच्छी थी। वो प्रेस का सामना बखूबी करते थे। तेज तर्रार नेता के रूप में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनका सम्मान करते थीं। साथ ही उनके राजनीतिक कौशल को देखते हुए उन्हें कई राज्यों का चुनावी प्रभारी भी बनाया। बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्री के रुप में उनके द्वारा किए गए कार्यों को सदा याद किया जाएगा। मेरी दो बार मुलाकात उनसे हुई थी जिनमें मैंने पाया वो स्वभाव से बड़े ही विनम्र थे दिखने से मजे हुए राजनीतिज्ञ लगते थे मानो राजनीति उनके रग-रग में बसी हो। उनकी जयंती को चेतना समिति कल 24 जुलाई को बड़े ही धूमधाम से मना रही हैं।

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