हाई रिस्क प्रेगनेंसी से बचाव के लिए एएनसी के साथ एनीमिया प्रबंधन जरूरी:-एमओआईसी

बक्सर:-गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को खानपान का विशेष ध्यान रखना होता है। ताकि, गर्भवती महिलाएं किसी गंभीर रोग की चपेट में न आ सकें। जिनमें गर्भवती महिलाओं के लिए एनीमिया सबसे बड़ा बाधक है। एनीमिया के कारण न केवल गर्भवती महिलाओं को बल्कि उनके गर्भ में पल रहे बच्चों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।                                            कई मामलों में एनीमिया के कारण प्रसव के दौरान जटिलताएं भी बढ़ जाती है। जिसके कारण अधिक रक्त स्राव से गर्भवतियों की मौत की भी संभावना होती है। इसलिये गर्भावस्था में बेहतर शिशु विकास एवं प्रसव के दौरान होने वाली रक्त स्राव प्रबंधन के लिए महिलाओं में पर्याप्त मात्रा में खून होना आवश्यक होता है। एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जांच के प्रति महिलाओं की जागरूकता ना सिर्फ एनीमिया रोकथाम में सहायक होती है, बल्कि सुरक्षित मातृत्व की आधारशिला भी तैयार करती है। इस क्रम में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत मंगलवार को जिले के सभी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स समेत सभी अस्पतालों में एएनसी की जांच की गई। 35 महिलाओं की हुई एएनसी जांच, किसी में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लक्षण नहीं:-सदर प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. मिथिलेश सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत मंगलवार को गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें 35 गर्भवती महिलाओं में प्रसव पूर्व विभिन्न जांच की गई। इन गर्भवती महिलाओं में किसी में हाई रिस्क प्रेगनेंसी नहीं पाया गया। उन्होंने बताया कि एएनएसी जांच के आधार पर गर्भवतियों को एनेमिक या गंभीर एनेमिक होने की जानकारी मिल जाती है। एनेमिक महिलाओं को तीन श्रेणी में रखा जाता है। 10 ग्राम से 10.9 ग्राम खून होने पर माइल्ड एनीमिया, 7 ग्राम से 9.9 ग्राम खून होने पर मॉडरेट एनीमिया एवं 7 ग्राम से कम खून होने पर सीवियर एनीमिया होता है। गंभीर एनेमिक की श्रेणी की गर्भवतियों को प्रथम रेफरल यूनिट में ही प्रसव कराने की सलाह दी जाती है। ताकि, प्रसव की जटिलताओं से आसानी से निपटारा पाया जा सके। दूसरी जांच गर्भधारण के 14वें से लेकर 26वें सप्ताह तक:-सदर प्रखंड के सामुदायिक उत्प्रेरक प्रिंस कुमार सिंह ने बताया कि प्रसव से पूर्व गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व चार जांच होती है। पहली जांच गर्भधारण से लेकर 12वें सप्ताह तक, दूसरी जांच गर्भधारण के 14वें से लेकर 26वें सप्ताह तक, तीसरी जांच गर्भधारण के 28वें से 34 वें सप्ताह तक और आखिरी जांच 36वें सप्ताह से लेकर प्रसव होने के पहले तक कराई जाती है। इसे एएनसी जांच कहते हैं। एएनसी जांच से प्रसव के समय होने वाली जटिलताओं को भी चिह्नित किया जाता है। दूसरी व तीसरी तिमाही में भी गर्भवती महिलाएं कराएं जांच:-जिला सामुदायिक उत्प्रेरक हिमांशु कुमार सिंह ने बताया कि गर्भावस्था की पहली तिमाही में महिलाएं आसानी से एएनसी जांच कराती हैं। लेकिन, उसके बाद दूसरी व तीसरी तिमाही में महिलाएं एएनसी जांच कराने में आनाकानी करती हैं।           जो उनके व उनके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चिंता का विषय है। क्यूंकि गर्भ में भ्रूण के बढ़ने के साथ-साथ जटिलताएं भी बढ़ती है, जिससे बचाव के लिए एएनसी जांच कराना अनिवार्य रहता है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष अप्रैल, 2023 से लेकर मार्च, 2024 एएनसी जांच के लिए 52,250 गर्भवती महिलाओं का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जिसमें 44,547 महिलाओं ने ही सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों पर आकर अपनी जांच कराई। वहीं, गर्भावस्था की पहली तिमाही में 27,506 महिलाओं ने एएनसी जांच कराई। वहीं, 34,106 महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान चार या उससे अधिक एएनसी जांच कराई।

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