“न्याय चला निर्धन के द्वार” को साकार कर रहा है राष्ट्रीय लोक अदालत:- कमला प्रसाद

जमुई:-गांधीवाद के सिद्धांत पर आधारित राष्ट्रीय लोक अदालत गरीबों, शोषितों के साथ हर तबके के लिए सस्ता और सुलभ न्याय का सशक्त माध्यम है।           इसके जरिए न्याय चला निर्धन के द्वार के सपनों को साकार किया जा रहा है। इससे वादकारियों को तारीख पर तारीख से मुक्ति मिलती है। समय और पैसे की बचत होने के साथ त्वरित न्याय भी सुलभता से मिलता है। लोक अदालत का सबसे बड़ा गुण निःशुल्क और त्वरित न्याय है। यह विवादों के निपटारे का प्रभावशाली उपकरण है। एडीजे द्वितीय कमला प्रसाद ने व्यवहार न्यायालय परिसर स्थित न्याय सदन के प्रशाल में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत का अग्नि ज्योति जलाकर शुभारंभ करते हुए उक्त बातें कही। उन्होंने आगे कहा कि “लोक अदालत ” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, आपसी सुलह या बातचीत की एक प्रणाली है।           यह एक ऐसा मंच है जहां सौहार्दपूर्ण तरीके से प्रकरणों को निपटाया जाता है। राष्ट्रीय लोक अदालत वैकल्पिक विवादों के समाधान के लिए सबसे प्रभावशाली उपकरण के रूप में सामने आया है। इसका मकसद नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाना है। साथ ही लोक अदालत वंचित और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की वकालत करता है और समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है। यह अदालत भारतीय न्याय प्रणाली की उस पुरानी व्यवस्था को स्थापित करता है जो प्राचीन भारत में प्रचलित थी।        इसकी वैधता आधुनिक दिनों में भी प्रासंगिक है। इस अदालत में वादों के निपटान के लिए लचीला रुख अख्तियार किया जाता है। इसके चलते ममलचियों को अल्प समय में अल्प व्यय के साथ त्वरित न्याय मिलता है। इससे वे बार- बार कोर्ट की यात्रा करने और मामले के लिए पूरा दिन आरक्षित करने की परेशानी से बच जाते हैं। राष्ट्रीय लोक अदालत में सुगम, सुलभ और सस्ता न्याय उपलब्ध है। वादों के निपटान में पक्षकारों की हार-जीत नहीं होती है। इसका फैसला अंतिम और चुनौती रहित होता है। एडीजे ने मुकदमेबाजों से उदारता के साथ वादों का निपटान कराए जाने की अपील की। एडीजे तृतीय पवन कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय लोक अदालत को सफल बनाने के लिए समस्त न्यायिक, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारी लचीला रुख अख्तियार करें। विशेष तौर पर न्यायालय में लंबित आर्बीट्रेशन मामले, पारिवारिक-वैवाहिक, सिविल-बंटवारा, चेक बाउंस, लघु आपराधिक और ई-चालानी मुकदमों को सुलह-समझौते के आधार पर निस्तारण कर वादकारियों को लाभ पहुंचाएं।          साथ ही लंबित प्री-लिटिगेशन और बैंक ऋण प्री-लिटिगेशन मामलों को अधिक से अधिक निस्तारित कराएं। उन्होंने राष्ट्रीय लोक अदालत को अत्यंत लाभकारी करार दिया। जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव राकेश रंजन ने कहा कि पक्षकार अपने मुकदमों के निस्तारण के लिए संबंधित न्यायालय एवं विभागीय अधिकारी से संपर्क कर मामलों का निस्तारण कराकर राष्ट्रीय लोक अदालत का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाएं। इस अदालत के जरिए सुलभ न्याय, कोई अपील नहीं, अंतिम रूप से निस्तारण, समय और धन की बचत जैसे लाभ मिलते हैं। यहां बीमा, बिजली, वन, बैंक, खनन, उत्पाद, दूरभाष, मापतौल, वैवाहिक वाद, मोटर दुर्घटना, एनआई एक्ट, राजस्व आदि से संबंधित सुलहनीय प्रकरणों की सुनवाई होती है और उदारता के साथ इनका निपटान किया जाता है। उन्होंने ममलचियों से इसका लाभ उठाने की अपील की। श्री रंजन ने आगत मेहमानों के प्रति आभार जताने के साथ धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व निभाया। अपर समाहर्ता सुभाष चंद्र मंडल ने कहा कि राष्ट्रीय लोक अदालत में सुनाए गए फैसले की उतनी ही अहमियत है, जितनी सामान्य अदालत में सुनाए गए फैसलों की होती है। यह फैसले बाध्यकारी होते हैं और इनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। राज्य उद्घोषक डॉ. निरंजन कुमार ने राष्ट्रीय लोक अदालत के उद्घाटन सत्र का मंच संचालन किया और न्यायिक पदाधिकारी, विद्वान अधिवक्ता, वादी और गणमान्य नागरिकों के प्रशंसा के पात्र बने।         उद्घाटन सत्र में न्यायिक पदाधिकारी अतुल सिन्हा, एम. के. दुबे, कुमार प्रभाकर, अनुभव रंजन, नाजिया खान, मृणाल आर्यन, अनिमेष रंजन,  अहसान रशीद, एलडीएम श्रीमती लक्ष्मी, कोर्ट कर्मी मुकेश रंजन आदि न्यायिक पदाधिकारी, प्रबुद्धजन एवं भारी संख्या में वादकारी उपस्थित थे। उधर राष्ट्रीय लोक अदालत को सफल बनाने के साथ ज्यादा से ज्यादा वादों के निपटान के लिए कुल 10 बेंचों का गठन किया गया है। सभी बेंच को यथोचित सहयोग के लिए विद्वान अधिवक्ता नामित किए गए हैं। राष्ट्रीय लोक अदालत में वादों की सुनवाई और निस्तारण जारी है।

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