नवहट्टा प्रखण्ड के पूर्वी कोसी तटबंध के समीप शाहपुर में अवस्थित अतिप्राचीन देवनवन शिवमंदिर का विकास जरूरी

29 साल बाद भी देवनवन शालवाहनेश्वर नाथ मंदिर का विकास नहीं

सहरसा:-देश भर में जिस तरह महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, बद्री केदारनाथ, बैजनाथ धाम, विश्वनाथ धाम, विशेश्वर और अमरनाथ के मंदिर हैं, उसी तरह नवहट्टा प्रखंड में पूर्वी कोसी तटबंध पर बने अति प्राचीन देवनवन (शालवाहनेश्वर) मंदिर भी है। यह महापुराण में वर्णित एक अति प्राचीन मन्दिर हैं, जिसका निर्माण द्वापर काल में राजा सालवाहन ने स्वप्न में संदेश मिलने के बाद किया था।           यदि यह मंदिर मुख्य मार्ग से बहुत दूर, बिहार के एक भीतरी क्षेत्र में न होकर किसी सुन्दर-विकसित क्षेत्र में होता तो इसका प्रचार-प्रसार काशी के बाबा विश्वनाथ और देवघर के वैधनाथ जैसा ही हो गया होता। सन 1996 ई के भीषण कटाव में मंदिर के कोसी नदी से प्रभावित होने के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी रहे टीएन लाल दास के द्वारा कोसी की तेज धारा में विलीन हो गए देवनवन स्थित शिव मंदिर की पुनर्स्थापना किया गया इसके बाद से ही देखरेख की अभाव में यहां की स्थिति दिनों दिन बद से बदतर हो गई। ज्ञात हो कि मन्दिर अति प्राचीन होने के कारण स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर के व्यवथा को व्यवस्थित करने का समय समय पर प्रयास किया भी जाता हैं। लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था नही रहने के कारण विफल होता दिखाई दे रहा हैं। इस अति प्राचीन मंदिर के नाम पर्याप्त अचल संपत्ति भी हैं जिसका कोई उचित प्रबंधन नहीं हैं। इसको लेकर स्थानीय लोगों ने कई बार स्थानीय विधायक, सांसद और कई मंत्रियों को भी आवेदन देकर मंदिर के विकासात्मक कार्य में सहयोग करने की मांग की है। बावजूद इसके आज तक किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिल पाया हैं और ना ही किसी प्रकार की कोई प्रशासनिक सहयोग मिल पाता हैं। जबकि आसपास के सैकड़ो गांव सही पड़ोसी देश नेपाल तक के श्रद्धालु यहां खासकर श्रावणी मास महाशिवरात्रि मकर संक्रांति और साप्ताहिक रविवार को दर्शन करने आते हैं लेकिन यहां श्रद्धालुओं के लिए किसी भी प्रकार की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। कहा जाता हैं देवनवन शालवाहनेश्वर नाथ महादेव मन्दिर सन 1009 ई० में महाराजा शालवाहन द्वारा स्थापित किया गया था। शालवाहन के पुत्र जितवाहन के नाम के बाद जीतिया नामक एक त्यौहार मनाते हैं। इस स्थान का विवरण श्री पुराण में पाया जाता है। स्थानीय समाजसेवी शिवशंकर दास उर्फ मन्नु रिस्की ने बताया कि लगभग 30 वर्ष पूर्व जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी टीएन लाल दास ने परमहंस स्वामी निजानंद सरस्वती परमाचारी बिहार आयोग द्वारा किया गया था। लेकिन मंदिर निर्माण के बाद से ही यह यस का तस हैं। यहां के स्थानीय लोग भी जो विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में बड़े ओहदे पर होते हुए भी कभी कुछ नहीं सोचा।            जबकि मंत्री रहे अब्दुल गफूर, स्थानीय सांसद रहे पप्पू यादव, राज्यसभा सांसद मनोज झा, मंत्री रत्नेश सादा और कई अन्य मंत्री विधायकों ने आश्वासन देकर मुँह फेर लिया। हाल में जिले के प्रभारी मंत्री दिलीप जायसवाल से भी मिलकर मंदिर के विकास की बात किया गया लेकिन कहीं से किसी प्रकार का कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रहा है। नवहट्टा प्रखंड वासियों के लिए यह अति प्राचीन शिव मंदिर का विकास आवश्यक हैं इसके लिए एक पहल जरूरी हैं।

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