उपलब्धि : राज्य में 94 फीसदी नवजातों ने किया जन्म से एक घंटे के अंदर स्तनपान

पटना:- स्वास्थ्य संस्थानों में ब्रैस्ट फीडिंग कॉर्नर (स्तनपान कक्ष) स्थापित होने और नियमित जागरूकता कार्यक्रमों की बदौलत अब सूबे में नवजातों के जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने की प्रवृत्ति बढ़ी है तथा इसमें उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गयी है. आधिकारिक जानकारी के अनुसार, अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के दस महीने में राज्य के 94 फीसदी नवजातों ने जन्म के पहले घंटे में स्तनपान किया है. बच्चे के जन्म के बाद माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध नवजात के लिए प्रथम टीका माना जाता है जो नवजात को भविष्य में कई रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। एम्स, पटना की एसोसिएट प्रोफेसर एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. इंदिरा प्रसाद बताती हैं कि ब्रैस्ट फीडिंग कार्नर से महिलाओं में सार्वजानिक जगह पर स्तनपान कराने की झिझक में काफी कमी आई है और वह सहज माहौल में अपने शिशु को स्तनपान करा रही हैं. उन्होंने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद माँ का पहला पीला गाढ़ा दूध नवजात के लिए प्रथम टीका होता है. इसमें कई पोषक तत्व होते हैं जो नवजात को भविष्य में होने वाले कई रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। प्रथम घंटे में स्तनपान एवं छः महीने तक सिर्फ स्तनपान शिशु के लिए स्वस्थ जीवन की आधारशिला तैयार करते हैं.स्वास्थ्य संस्थानों में स्थापित ब्रैस्ट फीडिंग कॉर्नर ने बदली सूरत:-स्वास्थ्य संस्थानों में ब्रैस्ट फीडिंग कॉर्नर (स्तनपान कक्ष) मुख्यतः ओपीडी के नजदीक स्थापित हैं जहाँ ओपीडी में आने वाली धात्री माताएं भी अपने शिशु को स्तनपान करा रही हैं। सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर ममता कार्यकर्ता कार्यरत हैं जो प्रसूता माता को नवजात के जन्म के एक घंटे के अंदर एवं छः माह तक सिर्फ स्तनपान कराने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. आधिकारिक जानकारी के अबुसार, इसी क्रम में संस्थागत प्रसव एवं स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए राज्य के 13 जिलों के चिन्हित 15 अनुमंडलीय अस्पताल में एमएनसीयू (मातृ एवं शिशु अस्पताल) की स्थापना अंतिम चरण में है जहाँ विशेषज्ञ चिकित्सक एवं स्टाफ नर्स 24 घंटे मौजूद रहेंगे.बीमार नवजात भी कर सकेंगे स्तनपान:-जन्म के तत्काल बाद स्तनपान माँ व बच्चा दोनों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. जो नवजात कमजोर अथवा बीमार पैदा होते हैं, उनको जन्म लेते ही एसएनसीयू या एनबीएसयू में शिफ्ट किया जाता है. इससे बच्चा जन्म के एक घंटे के भीतर अनिवार्य स्तनपान से वंचित रह जाता है. इससे माँ की सेहत पर भी मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है. इस परेशानी को दूर करने का भी प्रयास किया जा रहा है. मातृ एवं शिशु अस्पताल की स्थापना इस दिशा में बड़ा “गेम चेंजर” साबित हो सकता है।