6 से 10 हजार में बिक रहा निजी स्कूलों के किताबों का सेट, लुट रहे अभिभावक, चुप है प्रशासन

स्कूलों में नया सत्र शुरू, चुनिंदा दुकानों से ही किताबें लेना अभिभावकों की मजबूरी, बोले- किससे करें शिकायत

सहरसा:- नया सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में डेवलपमेंट फीस के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो कॉपी-किताब भी खरीदना है कॉपी-किताब का सेट इतना महंगा है कि उसे खरीदने में अभिभावकों के पसीने निकल जा रहे हैं। कई निजी स्कूलों में तो पहली व आठवीं कक्षा की किताबों का सेट छह से 10 हजार रुपये पड़ रहा है। उधर, प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए है। इन दिनों सभी पुस्तक विक्रेताओं के यहां लंबी लाइनें लग रही है। परिजन बच्चों की किताबें खरीदने पुस्तक की चुनिंदा दुकानों पर पहुंच रहे हैं। स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों को किताबें एनसीईआरटी की किताबी से पांच गुना तक महंगी है। एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल रही है। अभिभावकों का भी यही कहना है कि ऐसी कौन की किताबें स्कूल पढ़ा रहा है जो 500 से 600 रुपये में मिल रही है। इतनी महंगी दो बीए-एमए की किताबें भी नहीं आती। महंगी किताबों की नहीं मिली शिकायत:-शिक्षा विभाग कह रहा है कि महंगी किताबों को लेकर कोई शिकायत नहीं मिली है। आए भी कैसे कोई भी अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता क्योंकि शिकायत के बाद पुस्तक विक्रेता पर कार्रवाई हो न हो, स्कूल बच्चे पर जरूर कार्रवाई कर देगा। ऐसे में सवाल है कि क्या अधिकारियों को खुलेआम हो रही यह लूट दिखाई नहीं दे रही है। मिलीभगत से चल रहा खेल:-किताब खरीदने पहुचे एक अभिभावक ने बताया कि दुकान पर स्कूल का नाम बता दो और आपको पुस्तकों का पूरा सेट थमा देगे। बिना स्कूल और पुस्तक विक्रेता के मिलीभगत के यह कैसे मुमकिन है कि एक दुकान पर तो स्कूल की एक भी पुस्तक नहीं मिलती, वही दूसरी ओर बताई गई दुकान पर स्कूल का नाम और कक्षा बता देने पर सभी पुस्तके मिल जाती है। एक अन्य अभिभावक ने बताया कि छुट्टी के दिन बच्चे की पुस्तके लेने आते हैं और विभाग से शिकायत करनी होगी तो एक अन्य दिन अलग से छुट्टी लेनी पड़ेगी। प्रशासन हमारी पहुंच से बाहर है। किताबों में संशोधन करने की समय सीमा क्यों नहीं तय होती:- एक अभिभावक ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं। दोनों में एक साल का फर्क है। इसके बावजूद बड़े बेटे का किताब छोटा बेटा प्रयोग नहीं कर पाता क्योंकि हर साल किताबों में कोई न कोई बदलाव कर दिए जाते हैं। किताबों के कवर भी बदले होते हैं जिसमें पता नहीं चल पाता कि यह पुरानी पुस्तक है या नई। पुस्तक के एक पन्ने के संशोधन के लिए नई किताबें लेनी पड़ती है। इसको कोई समय सीमा क्यों नहीं तय कि कितने समय के बाद पुस्तक में संशोधन किया जाता है।           केवल पांच नंबर के लिए लेनी पड़ रही 305 रुपये की किताब:-
मामला एक:-एक किताब की दुकान पर कक्षा आठ की किताबें खरीदने आए एक अभिभावक ने बताया कि बच्चें की किताबों का सेट 5500 रुपया का मिला है। इसमें ऐसी कई पुस्तक है जिन्हें स्कूल में केवल टर्म एक की परीक्षा से पूर्व कुछ दिन के पढ़ाया जाएगा। किताबें धूल खाती है। 305 रुपये को अंग्रेजी की कहानियों की किताब में से पेपर में केवल पांच अंकों का प्रश्न आता है जिसे लेना मजबूरी है क्योंकि स्कूल से सूची थमा दी है। खुद अध्यापक हूं, स्कूलों की लूट को समझता हूं।

केस 2:-एक नामी स्कूल की कक्षा-9 की किताबें खरीदने आए एक अभिभावक ने बताया कि विद्यालय अपनी मनमानी कर फिजूल की चीजें लेने के लिए मजबूर करते हैं। उन्होंने बताया कि एटलस, मानव मूल्य की पुस्तक, व्याकरण, कॉम्पैक्ट, ग्राफ बुक आदि ऐसी चीजें है जो पूरे साल कहीं नहीं लगती, फिर भी लेनी पड़ती है क्योंकि स्कूल कहता है। 488 रुपये की कॉम्पैक्ट असाइनमेंट, 50 रुपये की ग्राफ बुक आदि लेते-लेते बिल हजारों में चला जाता है। सीबीएसई के स्कूलों में भी निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ा रहे:-

केस-3:-किताब दुकान पर किताब लेने आए एक अभिभावक ने बताया उनकी बेटी की किताबें 4000 रुपये में आई है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से होने के बावजूद बच्ची को एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताब लेने को कहा जाता है। एनसीईआरटी की पुस्तकें तो हर दुकान में मिल जाती है पर निजी प्रकाशकों को किताबें लेने के लिए हमें निश्चित दुकान पर आना पड़ता है। कहीं और ये किताबें नहीं मिलती। अभिभावकों का शोषण हो रहा है। स्कूल और निजी प्रकाशकों की दादागिरी पर प्रशासन भी चुप है और अभिभावकों के हित के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा। प्रशासन ने निर्देश जारी किए थे कि सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएगी पर कोई भी निजी स्कूल इसका पालन नहीं कर रहा। सब अपनी मर्जी से प्राइवेट पब्लिशर की किताबों की सूची अभिभावकों को थमा रहे हैं।

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