उत्तर-पूर्वी पर्वतीय घटक के तहत प्रौद्योगिकी और ज्ञान साझा करने को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

पटना:-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने सोमवार को भा.कृ.अनु.प. महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान, मोतिहारी के साथ मिलकर उत्तर-पूर्वी पर्वतीय घटक के तहत प्रौद्योगिकी और ज्ञान साझा करने को लेकर दो  दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।    कार्यक्रम में मुख्य अतिथि, डॉ. अनुपम मिश्रा कुलपति केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल की गरिमामयी उपस्थिति रही, जबकि डॉ. राकेश कुमार, सहायक महानिदेशक (सस्य विज्ञान, कृषि वानिकी एवं जलवायु परिवर्तन), प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ऑनलाइन रूप से जुड़े। इस अवसर पर डॉ. अनुप दास, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना; डॉ. अंजनी कुमार, निदेशक, अटारी, पटना डॉ. विकाश दास, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर; डॉ. एस.के. पूरबे, निदेशक, भा.कृ.अनु.प. -महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान, मोतिहारी; डॉ. एच. कलिता, प्रमुख, क्षेत्रीय केन्द्र, भा.कृ.अनु.प. उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र, नागालैंड केन्द्र; डॉ. एल. एम. गरनायक, निदेशक अनुसंधान,केन्द्रीय कृषि न्विश्वविद्यालय,  इम्फाल; और डॉ. आर.के. जाट, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया, समस्तीपुर शामिल थे।
 साथ ही, उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के विभिन्न आईसीइआर संस्थानों के वैज्ञानिक और प्रमुख भी उपस्थित रहे। कुलपति ने कृषि को सशक्त बनाने में क्रॉस-लर्निंग के महत्व पर जोर दिया तथा जलभराव वाली क्षेत्रों की चुनौतियों से निपटने और कुशल जल निकासी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों को अपनाने का आह्वान किया।            उन्होंने उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र में मखाना और सिंघाड़ा के समावेश पर भी बल दिया। कार्यक्रम के दौरान, सहायक महानिदेशक डॉ. राकेश कुमार नई दिल्ली ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना और भा.कृ.अनु.प. -महात्मा गांधी समेकित कृषि अनुसंधान संस्थान, मोतिहारी टीम को इस नवोन्मेषी कार्यशाला के आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह पहल अनुसंधान के आदान-प्रदान, क्षमता निर्माण को बढ़ावा देगी और उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के विशाल जर्मप्लाज्म संसाधनों का लाभ इसके हस्तांतरण और समझौता ज्ञापनों के माध्यम से पूर्वी क्षेत्र को प्राप्त होगा। स्वागत संबोधन में निदेशक डॉ. अनुप दास ने कहा कि उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र अद्वितीय जर्मप्लाज्म से भरपूर है और यहां की जैव विविधता कृषि उन्नति के लिए अपार संभावनाएं प्रदान करती है। उन्होंने जोर दिया कि यह कार्यशाला  केवल उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वी क्षेत्र के लिए ज्ञान आदान-प्रदान, सहयोगी अनुसंधान और प्रौद्योगिकी अनुकूलन को मजबूत करेगी। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए नवोन्मेषी कृषि समाधानों पर प्रकाश डाला। डॉ. अंजनी कुमार ने क्षमता निर्माण पर जोर दिया, जबकि डॉ. बिकास दास ने जर्मप्लाज्म विविधता और बायोप्रॉस्पेक्टिंग पर फोकस किया।  डॉ. एस.के. पूरबे ने बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के लिए स्थान-विशिष्ट समेकित कृषि प्रणाली मॉडल प्रस्तुत किए, और डॉ. एच. कलिता ने ऊँचाई-आधारित फसल प्रणाली और कृषिवानिकी नवाचारों पर बल दिया। डॉ. एल.एम. गरनायक ने तनाव-सहिष्णु किस्में, स्मार्ट फार्मिंग और कम लागत वाले आहार समाधान प्रस्तुत किए, जबकि डॉ. आर.के. जाट ने हस्तक्षेपों के मूल्यांकन के लिए संसाधन संरक्षण प्रोद्योगिकी तकनीकों को साझा किया।          कार्यशाला से पूर्व कुलपति के नेतृत्व में उत्तर-पूर्वी पर्वतीय टीम ने प्रक्षेत्र भ्रमण कर प्रगतिशील अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया गया।कार्यशाला में चर्चा के दौरान प्रत्येक राज्य के लिए प्राथमिक अनुसंधान क्षेत्रों की पहचान की गई, उपयुक्त तकनीकी हस्तक्षेप समाधान के रूप में प्रस्तावित किए गए और एक प्रसार पुस्तिका भी जारी की गयी कार्यशाला ने नवोन्मेषी कृषि प्रौद्योगिकियों को साझा करने, सहयोग को बढ़ावा देने और उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र में कृषि प्रणालियों की अनुकूलन और स्थिरता को मजबूत करने का एक प्रभावी मंच प्रदान किया।    प्रतिभागियों ने इस तरह की पहलों को किसान की आजीविका बढ़ाने, संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने और क्षेत्र की विशाल जैव विविधता का समावेशी कृषि विकास के लिए उपयोग करने में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। आयोजन सचिव डॉ. बिश्वजीत देबनाथ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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