खुद बीमारी से होकर लाचार, दूसरों को बचाने का कर रही प्रयास

सीतामढ़ी:-फाइलेरिया भारत में विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। सीतामढ़ी की रानी, रोशन और रामसखी देवी जैसी न जाने कितनी महिलाएं और पुरुष इस बीमारी के शिकार हैं। कुछ ने अपने जीवन को फाइलेरिया पर छोड़ दिया वहीं इन्होंने अपनी बीमारी से लाचार होते हुए भी दूसरों को फाइलेरिया से बचाने का जज्बा दूसरों से इन्हें अलग करता है। जानते हैं इनके संघर्ष और किए गए प्रयासों को।बीमारी ने तोड़ा आईएएस बनने का सपना:-कभी आईएएस बनने का सपना देखने वाली रानी को छह वर्ष की उम्र में घुटने में जख्म हो गया और उसका पैर सूज गया। चिकित्सक ने फाइलेरिया होने की आशंका जताई। परिवार के लोग उसकी कई जगहों पर इलाज कराया। इलाज के बाद चलने पर सूजन कम हो जाता था, फिर स्थिति ज्यों की त्यों रहती थी। रानी का होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक और एलोपैथिक पद्धति से इलाज कराया गया, परंतु खास फायदा नहीं हुआ। तब उसके पिताजी उसे एम्स दिल्ली ले गए, जहां डॉक्टरों ने पट्टी बांधा और मशीन से प्रेसर दिलवाने की सलाह दी, जिसके लिए प्रति पांव 600 रुपये खर्च होते थे। डीएमओ से मिली जीने की आशा:-आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए उक्त खर्च का वहन करना संभव नहीं था।                                     ऐसे में 2022 में रीना को सीतामढ़ी सदर अस्पताल में फाइलेरिया के इलाज के लिए एमएमडीपी क्लिनिक खुल जाने की खबर मिली। तब वह आशा दीदी के साथ सदर अस्पताल पहुंची और इलाज शुरू कराई। उसे एमएमडीपी कीट मिला। इलाज के क्रम में उसकी मुलाकात डीएमओ डॉ आरके यादव से हुई। उन्होंने रानी के हौसले को पंख दी और जीने की आशा जगा दी। डॉ आरके यादव और अन्य कर्मियों की प्रेरणा से रानी फाइलेरिया उन्मूलन अभियान से जुड़ गई, ताकि फिर रानी इस बीमारी का शिकार न बने। फाइलेरिया मरीजों को कराती हैं ग्रुप एक्सरसाइज:-रौशन खातून 54 साल की हैं। वह सिर्फ 34 की थी जब उन्हें फाइलेरिया हुआ। सूजन बढ़ने पर बच्चे, घर सब संभालना मुश्किल हुआ। ताने मिले पर सहती रही। इस सबके बीच पति हसीन अख्तर मददगार रहे। काफी जगह दिखाया पर कोई फायदा नहीं हुआ। फिर वह आशा शहनाज से मिलीं। एमएमडीपी प्रशिक्षण मिला। कुछ व्यायाम भी सीखा। सर्वजन दवा सेवन अभियान के तहत उन्होंने न सिर्फ अपने समाज के लोगों को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई बल्कि वह अपने हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर हर मंगलवार को अन्य फाइलेरिया मरीज को अपना सीखा हुआ व्यायाम और रोग प्रबंधन के लिए सीखे हुए तकनीक के गुर भी लोगों को बताती हैं। मिथक तोड़ आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही रामसखी:-उम्र का आधा पड़ाव पार कर चुकी लगमा सुभई की रामसखी को पिछले तीन दशकों से फाइलेरिया है। स्थिति ऐसी थी कि चलने फिरने में भी दिक्कत थी। इन्हें अपनी जिन्दगी बोझ सी लगने लगी थी। पिछले दो महीने पहले एक फाइलेरिया मरीजों के ग्रुप से जुड़ी। डीईसी का कोर्स, एमएमडीपी किट का सही इस्तेमाल और सटीक व्यायाम ने इनकी जिंदगी में ऐसा परिवर्तन लाया कि अब यह अराम से चल फिर सकती हैं। यह परिवर्तन देख इन्हें भी अपने जैसे दूसरों की मदद करने की अलख जगी। इनकी इस सोंच को एक पंख सर्वजन दवा सेवन अभियान ने दी जब यह लोगों को फाइलेरिया से बचाव को दी जाने वाली दवाओं के जागरुकता में उतर पड़ी। घर के कामों को छोड़ यह कभी भी जागरुक करते हुए दिख जाती हैं। इनका कहना है कि अगर इनके प्रयास से फाइलेरिया उन्मुलन को थोड़ी भी गति मिलती है तो उन्हें काफी सुकून होगा।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

विज्ञापन बॉक्स (विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें)


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे
Donate Now
अब पायें अपने शहर के सभी सर्विस प्रवाइडर के नंबर की जानकारी एक क्लिक पर


               
हमारे  नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट , और सभी खबरें डाउनलोड करें
डाउनलोड करें

जवाब जरूर दे 

क्या आप मानते हैं कि कुछ संगठन अपने फायदे के लिए बंद आयोजित कर देश का नुकसान करते हैं?

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles

Back to top button
Close
Website Design By Mytesta.com