जिले में धूमधाम से मनाया गया वट सावित्री व्रत, सुहागिनों ने पति की लंबी उम्र के लिए की कामना

सहरसा:-वट सावित्री व्रत जिले में धूमधाम से मनाया गया। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाओं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।   जानकारी हो कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत करने की परंपरा होती है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और वट के पेड़ की पूजा भी करती हैं। इस व्रत का महत्व करवाचौथ जैसा ही है। वट सावित्री की पूजा वट वृक्ष के नीचे की जाती है। वट सावित्री व्रत की पूजा में एक वट वृक्ष, बरगद का फल, सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, भिगा हुआ काला चना, कलावा, सफेद कच्चा सूत, रक्षासूत्र, बांस का पंखा, सवा मीटर का कपड़ा, लाल और पीले फूल, मिठाई, बताशा, फल, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मिट्टी का दीया, सिंदूर, अक्षत, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, पान का पत्ता, सुपारी, नारियल, श्रृंगार सामग्री, जल कलश, पूजा की थाली, वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक आदि रखकर पत्नियां पति के लंबी उम्र के लिए व्रत करती है। शास्त्रों के अनुसारवट वृक्ष (बरगद) एक देव वृक्ष माना जाता है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सावित्री भी वट वृक्ष में रहते हैं। प्रलय के अंत में श्री कृष्ण भी इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुए थे। तुलसीदास ने वट वृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है, ये वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है बल्कि काफी ज्यादा दीर्घायु वाला भी है। लंबी आयु, शक्ति, धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर इस वृक्ष की पूजा होती है।                    पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस वृक्ष को ज्यादा महत्व दिया गया है। वट सावित्री पूजा को लेकर जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना की। इधर देवनवन शिवमंदिर में भी बड़ी संख्या में विवाहित महिलाएं वट वृक्ष के नीचे जुटीं। महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र और अपने वैवाहिक सुख की रक्षा के लिए विभिन्न स्थानों पर वट वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना की। महिलाओं ने वट वृक्ष की परिक्रमा कर अपने वैवाहिक सुख की रक्षा और अपने पति की लंबी उम्र की कामना की। वट वृक्ष का वर्णन धार्मिक शास्त्रों, वेदों और पुराणों में किया गया है। एक ओर जहां वट वृक्ष को भगवान शिव का रूप माना जाता है, वहीं दूसरी ओर पद्म पुराण में इसे भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा और अमावस्या को विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे वट सावित्री व्रत कहा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की रक्षा और वैवाहिक सुख के लिए व्रत रखती हैं और वट वृक्ष के चारों ओर धागा बांधकर 108 बार परिक्रमा करती हैं। इसका बहुत महत्व बताया जाता है। कहा जाता है कि माता सावित्री अपने कठिन तप से अपने पति के प्राण यमलोक से वापस लाईं थी तभी से इसे वट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है।विवाहित जोड़े लाड़ली रिस्की का कहना है कि इस दिन वे वट वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं, परिक्रमा करती हैं और अपने वैवाहिक सुख की रक्षा और पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री की पूजा महिलाओं ने धूमधाम से मनाया।            वही दूसरी ओर सौर बाजार प्रखंड क्षेत्र में बाजारों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक सुहागिन महिलाओं ने वट सावित्री की पूजा अर्चना कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना की। इस दौरान महिलाओं ने पति की अखंड सौभाग्य और दीर्घायु की कामना के साथ वट सावित्री पूजा धूमधाम से मनाया। पर्व को लेकर महिलाएं अहले सुबह से ही वट वृक्ष के पास पहुंची और पूजा अर्चना की। महिलाओं ने नए वस्त्र के साथ संपूर्ण श्रृंगार कर वट वृक्षों को धागा से लपेटते देखी गयीं। कई स्थानों पर वट सावित्री की पूजा के बाद ही महिलाएं हाथ से उपयोग में ले जाने वाले नए पंख का उपयोग करती है। ऐसी मान्यता है की व्रत को धारण करने से महिलाएं आजीवन सुहागन रहती है। गुरुवार को अहले सुबह महिलाओं ने नवीन वस्त्र धारण कर वट वृक्ष को साफ-सफाई कर उसकी पूजा की। वृक्ष को धागा से बांधकर, उस पर फल, फूल, मिठाई आदि अर्पित किया और व्रत रखा। पूजा के दौरान महिलाओं ने सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुनी। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से पति की आयु बढ़ती है और सुहाग अखंड रहता है। यह पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह का प्रतीक भी माना जाता है। वट सावित्री पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान स्थान ही नहीं है, बल्कि महिलाओं के एक दूसरे से जोड़ने का माध्यम भी है। इस अवसर पर महिलाएं एक साथ समय बिताती और अपनी संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित रखती है। वट सावित्री पर्व केवल महिलाओं के धार्मिक विश्वास दर्शाता है, बल्कि यह उनके पारिवारिक जीवन में खुशहाली लाने का प्रतीक है। वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए करती है।                          वट सावित्री की कथा महाभारत में वर्णित है। इस कथा के अनुसार, सनातन धर्म में वट सावित्री पूजा सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना गया है। प्रत्येक साल इस पर्व को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु के बाद यमराज से उनका जीवन वापस मांग लिया था।

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