सामाजिक नेटवर्क में कमी आने से महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य में पहुंच रही बाधा

पटना:-जिले के गुलाबबाग की खुशबू उन महिलाओं में शामिल है जिसने सामाजिक मानदंड या उनके परिवार द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों के कारण हाल ही में प्रजनन स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का सामना किया है। खुशबू बताती हैं कि अगर वह अपने घर से बाहर निकलती, अन्य महिलाओं या गांव की आशा से संपर्क में रहतीं, तो शायद उनको अनचाहे गर्भ को नहीं रखना पड़ता। उनके दो बच्चे पहले से ही हैं। यह किसी एक खुशबू की कहानी नहीं है। ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ में छपे एक शोध-पत्र के मुताबिक, यदि सास के साथ रहने वाली और नहीं रहने वाली विवाहित महिलाओं की तुलना की जाए, तो, जो महिला अपने सास के साथ रहती है, उसके अपने घर के बाहर करीबी साथियों की संख्या 36% कम है। इसके परिणामस्वरूप प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच कम हो जाती है। साथियों की कमी से महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को नुकसान:-आइडियाज फॉर इंडिया में प्रकाशित इस लेख के सर्वे का निष्कर्ष है कि एक अतिरिक्त करीबी बाहरी साथी होने से एक महिला के परिवार नियोजन क्लिनिक में जाने की संभावना 67 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जबकि इसके सापेक्ष जिन महिलाओं का गांव में कोई भी करीबी साथी नहीं है, उनके लिए यह संभावना 30 प्रतिशत है। इसी प्रकार, एक अतिरिक्त करीबी बाहरी साथी होने से एक महिला की आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों का उपयोग करने की संभावना 11% अंकों तक बढ़ जाती है, जबकि इसके सापेक्ष जिन महिलाओं का गांव में कोई बाहरी साथी नहीं है, उनके लिए यह संभावना 16% है। सिर्फ 46 प्रतिशत महिलाओं को है आपातकालीन गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी:-नवीन नेशनल फैमिली हेल्थ स्टैंडर्ड (पांचवें) के अनुसार, राज्य की 19 प्रतिशत महिलाओं को लेडीज कंडोम और 46 प्रतिशत महिलाओं को आपातकालीन गर्भनिरोधक के बारे में पता है। एक सत्य यह भी है कि 99 प्रतिशत महिला बंध्याकरण के बारे में जानकारी होने के बावजूद 15 से 49 वर्ष की 59 प्रतिशत महिलाएं परिवार नियोजन के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं।                    आधुनिक परिवार नियोजन के यह आंकड़े एनएफएचएस 4 के डाटा से लगभग दोगुनी है। इसके अलावा गर्भपात के दो बड़ों कारणों में सबसे बड़ा अन्प्लान्ड प्रेगनेंसी 50 प्रतिशत तथा 12 प्रतिशत उनके स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं। परिवार नियोजन पर प्री काउंसलिंग जरूरी:-पटना विश्वविद्यालय के पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और रिसर्चर डॉ दिलीप कुमार बताते हैं कि भारतीय समाज की यह हकीकत है कि अभी भी परिवार नियोजन जैसे फैसले परिवार के द्वारा ही तय किए जाते हैं। विवाह के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का सामाजिक नेटवर्क कट सा जाता है। परिवार नियोजन जैसे मुद्दे वहां गौण ही होते हैं। वहीं परिवार महिलाओं को फ्रंटलाइन वर्कर्स के समक्ष भेजने से गुरेज करते हैं। ऐसे में राज्य में एडसोलेंट फ्रेंडली हेल्थ क्लीनिक की संख्या और वर्किंग को सुधारना होगा, ताकि वहां किशोरावस्था या विवाह पूर्व के उम्र में उन्हें परिवार नियोजन पर स्पष्ट और सही जानकारी मिल सके। इसके अलावा, परिवार के पुरुषों को भी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर हस्तक्षेप करना होगा। परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य को विश्वविद्यालय या हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन के व्यापक प्रचार प्रसार पर सरकार को ध्यान केंद्रित करना होगा। जब ग्रामीण महिला भी अपनी जरूरत के अनुसार परिवार नियोजन के उपाय तक अपनी पहुंच खुद बनाएगी, तभी महिलाओं में प्रजनन स्वास्थ्य के मामलों में सुधार होने की गुंजाइश है।

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