जमुई में वैदिक रीति-रिवाज से पूजे गए चित्रगुप्त भगवान, कलमजीवियों ने चरणों में झुकाया शीश

जमुई:- शहर स्थित ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल के समीप अवस्थित मंदिर में मुख्य यजमान डॉ. मनोज कुमार सिन्हा और उनकी धर्मपत्नी कुसुम सिन्हा के सौजन्य से भगवान चित्रगुप्त जी महाराज का विधि-विधान से पूजन और वंदन किया गया। श्रद्धालुओं का समुद्र इस अवसर पर उपस्थित होकर धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा लिया और अपने को धन्य किया। पूजा-अर्चना के बाद महाप्रसाद का वितरण हुआ जिसका पान करने के लिए लोगों को पंक्तिबद्ध होना पड़ा।           मौके पर सहभोज का भी आयोजन किया गया जिसका लोगों ने जमकर रसास्वादन किया। झारखंड, सिमडेगा के जिला जज राजीव कुमार सिन्हा, डीडीसी सुमित कुमार, पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह , डॉ. अंजनी कुमार सिन्हा , डॉ.एस. एन. झा , डॉ. रिंकी , स्वामी आत्मस्वरुप , जिला विधिज्ञ संघ के महासचिव अमित कुमार , पूर्व अध्यक्ष अश्विनी कुमार यादव , पूर्व महासचिव विपिन कुमार सिन्हा , अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह , उमाशंकर प्रसाद , दीपक कुमार सिन्हा , रूपेश कुमार सिंह , राजीव कुमार सिन्हा , चंद्रशेखर सिन्हा , शिक्षाविद ऋतुराज सिन्हा , शिवांगी शरण , यश राज , मानस मृणाल , अंशिका राज , जूही राज , जय शौर्य , सुजाता कुमारी , राकेश रंजन सिन्हा , भूपेंद्र सिन्हा , अभिषेक सिन्हा , अप्पू जी समेत सैकड़ों गणमान्य लोग पूजनोत्सव का हिस्सा बने और भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के चरणों में शीश झुकाकर उनका पूजन और वंदन किया। अंकित करने वाली बात है कि भगवान चित्रगुप्त परम पिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला , जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाए। इन्होंने सृष्टि की रचना के क्रम में देव-असुर , गंधर्व , अप्सरा , स्त्री-पुरूष और पशु-पक्षी को जन्म दिया।          इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ , जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का दायित्व दिया गया। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तब वे ध्यानलीन हो गए और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। चित्रगुप्त भगवान जिन्हें वेदों में परब्रह्म बताया गया उनका जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: वे कायस्थ कहलाए और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब , कलम , दवात और करवाल है। वे कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलता है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार के फल , फूल , अक्षत , कुमकुम , सिन्दूर एवं भांति-भांति के पकवान , मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा की जाती है। इसके बाद जाने-अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना की जाती है। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है।           सनातनी लोग कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को नरक से से मुक्ति के साथ सुख-समृद्धि के लिए भगवान चित्रगुप्त जी महाराज की आराधना करते हैं और उनसे स्वस्थ एवं कुशल जीवन की कामना करते हैं।

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