बीएनएमयू से छात्रसंघ चुनाव में रहेगी ईमानदार पहल की उम्मीद

मधेपुरा:-बीएनएमयू में सिंडिकेट बैठक के एक दिन पहले ही छात्र संघ चुनाव की तिथिवार घोषणा पर जहां एक ओर छात्र संगठनों में हलचल तेज हो गई है वहीं वाम युवा संगठन एआईवाईएफ के जिलाध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह राठौर ने जारी अधिसूचना पर संगठन की ओर से आधिकारिक टिप्पणी करते हुए कहा कि यह सिंडिकेट में फजीहत झेलने से बचने के लिए हर बार की तरह इस बार भी बीएनएमयू का एक दांव मात्र है क्योंकि जारी अधिसूचना कई ऐसे बिंदु हैं जो बीएनएमयू प्रशासन पर ही सवाल खड़े करते हैं।            चुनाव के प्रारूप और सत्र का नहीं है उल्लेख:-एआईवाईएफ जिलाध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह राठौर ने कहा है कि विश्वविद्यालय ने इतने आनन फानन में अधिसूचना जारी किया है कि उसमें इस बात का जिक्र ही नहीं है कि चुनाव किस सत्र का है और चुनाव का प्रारूप क्या होगा। अधिसूचना छात्रसंघ चुनाव 2024 की दिखाई गई है और चुनाव की तारीख बारह मार्च 2025 पर तंज कसते हुए राठौर ने कहा कि आखिर इस छात्र संघ का कार्यकाल क्या होगा ।अगर मार्च में चुनाव होगा तो 2024- 25 सत्र में इसका दो से तीन महीने का ही कार्यकाल होगा फिर इसका लाभ ही क्या होगा।यह अधिसूचना महज एक झुनझुना सा है। चुनाव तिथि, महीना घोषित कर भूलने में माहिर रही है बीएनएमयू प्रशासन:-वाम युवा संगठन एआईवाईएफ जिला अध्यक्ष राठौर ने बीएनएमयू प्रशासन की घोषणा को महज एक छलावा बताया और कहा इसमें विश्वविद्यालय की गंभीरता नहीं दिखती यह कोई पहली दफा नहीं है इसके पहले भी सीनेट सिंडिकेट बैठकों में फजीहत से बचने के लिए तारीखों का ऐलान होता रहा है इस संदर्भ में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 2020- 21 सत्र में हुई घोषणा, मार्च 2024 के सिंडिकेट में इसी साल अगस्त में चुनाव पर मोहर लगी थी जो फिर ठंडे बस्ते में डाल दी गई इसलिए इस सिंडिकेट बैठक में आई अधिसूचना बहुत विश्वसनीय नहीं लगती। छात्र संघ को लेकर बीएनएमयू की सोच ईमानदार नहीं:-राठौर ने कहा कि वैसे विश्वविद्यालय इतना भी इसलिए कर देती है क्योंकि छात्र संगठनों के आंदोलनों और सीनेट सिंडिकेट बैठकों में कुछ मेंबर इस पर विश्वविद्यालय को घेरते रहते हैं। बीएनएमयू की कभी चाहत नहीं रही कि छात्र प्रतिनिधित्व भी सदन में हो क्योंकि उससे विश्वविद्यालय को जहां छात्रहित में सवाल जवाब से जूझना होगा वहीं पोल पट्टी भी खुलेगी।                                  राठौर ने इस घोषणा को छात्र संगठनों की संघर्ष और मेजर गौतम, संजीव सिंह सरीखे सदस्यों द्वारा सदन में मजबूती से सवाल करने का परिणाम बताया और उम्मीद जताई कि हर बार की तरह इस बार बीएनएमयू इसे जुमला नहीं बनने देगा।

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