रमेश झा के द्वारा किये गए कार्यों को भुलाया नही जा सकता है:-राहुल

सहरसा:-कहरा प्रखंड अन्तर्गत पंडित रमेश झा विचार मंच द्वारा बनगांव बैंक ऑफ इंडिया परिसर में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। रमेश झा विचार मंच के संयोजक राहुल झा ने कहा कि रमेश झा के द्वारा किये गए कार्यों को भुलाया नही जा सकता है। महिला शिक्षा मे उनके योगदान को शहरवासी कभी नही भूल सकते है। बिहार मे 5 कॉलेज था तब सहरसा मे कॉलेज, महिला को पढ़ने को लिये विभिन्न गांव बालिका स्कुल खोल दिए थे। सहरसा जिला बनाने मे योगदान था उनका सहरसा सहित बिहार के कई जिले मे उसके दिए नौकरी से आज घर चलता है बनगांव सहित अन्य गांव के लोग तब सब खुद को रमेशी कहलाते है। रमेश झा के बाद शहर वीरान हो गया और विकास रुक गया। रमेश झा जन्म तिथि 1 फरवरी 1924 एवं मित्यु 18 नम्बर 1985,
पिता स्वर्गय गणेश झा, माता सूरज देवी, पत्नी गोरी देवी, ग्राम बनगाँव, जेल यात्रा 20 अक्टूबर 1942 से 16 मई 1946 तक। अगस्त के क्रांति में भाग लेने वाले युवा क्रन्तिकारी में रमेश झा प्रथम पांति में थे।                               स्वभाव से नटखट एव चंचल श्री झा उस समय तेजनारण जुबली कालेज के दुतीय वर्ष के छात्र थे। उन्होंने समय की पुकार सुनी और दीवाने के रूप में संग्राम में कूद पड़े। इनका विवाह एक वर्ष पूर्व ही हुआ था। रमेश बाबू के मूल गाम बनगाँव था लेकिन उनके पिता गढ़िया आकर बस गए थे और वही रहने लगे थे। 15 अगस्त को इनके नेतृत्व में सहरसा हेलेड इंन्स्टीच्यूट जो अब मनोहर उच्च विधालय के नाम से जाना जाता है,को बंद करवाया तथा छात्रो को देश के आजादी के लिऐ ललकारा। उसी दिन आजादी के दिवाने पर गोरी पलटन के गोली दागी जिस में बारह सेनानी जख्मी हुए। 15 अगस्त 1942 को उन्होंने अपने नेतृत्व में अनेको बन्दूक रायफल तलवार आदी जमा किय। बरियाही अँगेज के कोठी में घुसकर जबरन उसके बन्दुक, डायनोंमो सेट, रायफल लूट लिया। 29 अगस्त को अंगेरजो ने सहरसा में एकत्रित उग्र भीड़ पर पुनः गोली चालई जिसमे 6 लोगो को गोली लगी जो घटना स्थल पर ही दम तोर दिए। बनगाँव के कपिलेश्वर चौधरी के घुटने में गोली लगी तथा रमेश बाबू के आँख में एक छारा के चोट से जख्मी। इसी बीच रमेश बाबू जहा तहा भागते रहे। उन्होंने 19 अक्टूबर 1942 तक पकिलवार, धमदाहा, दुर्गानन्द पाटशाला कटिहार, जोगबनी आदि स्थान पर शरण ली। 20 अक्टूबर को उन्हें गिरप्तार कर लिया गया और 16 मई 1946 तक लगातार सेंट्रल जेल भागलपुर में रहे। 1942 से 1946 तक लगातार छड़े से जख्मी इनके आखे इन्हे लगातार कष्ट देती रही जब तब जेल में रक्तसाव भी हुआ और इन्हे अपने एक आखे खोने पड़ी। 1942 में रमेश झा सहित 25 आजादी के दिवाने के विरोध अंग्रेजी हकुमत ने साढ़े साठ वर्ष की सजा प्रत्येक के लिय सुनाई। अंतरिम सरकार बनने में इन सब को मुक्त कर दिया गया। पंडित रमेश झा आचार्य नरेन्द देव के नेतृत्व में नासिक समेलन में कांगेस से अलग होकर एक सोसलिस्ट दल में आये। 1952 में प्रजा समाजवादी दल की स्थापना हुई जिस में वो समलित हुऐ। विभिन्न लोगो नें रमेश झा पर अपना राय रखा। इस श्रद्धांजलि सभा मे पवन, सूरज, शंकर, नितेश, राजा, शिवा, प्रदीप सहित अन्य मौजूद थे।

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