गर्मी के कारण डायरिया के चपेट में आ सकते हैं बच्चे, प्रबंधन जरूरी

बक्सर:- गत दिनों जिले में गर्मी का प्रकोप अपने चरम पर रही। लेकिन दो दिनों से तापमान में थोड़ी नरमी देखी जा रही है। ऐसे में भयंकर गर्मी के बीच अचानक तापमान में अंतर के कारण लोगों के बीमार होने की संभावना बढ़ गई है। वहीं, राज्य के अन्य जिलों में डायरिया के अत्यधिक मामले सामने आने और उससे हो रही मौतों में जिला स्वास्थ्य समिति के कान खड़े कर दिए हैं। जिसके कारण स्वास्थ्य अधिकारी सतर्क है। हालांकि यह एक मौसमी बीमारी है, लेकिन इसमें सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। लापरवाही बरतने पर मरीज की जान भी जा सकती है। खासकर इस बीमारी की चपेट में पांच साल तक के बच्चों के आने की संभावना अधिक होती है। इसके लिए डायरिया के लक्षणों के प्रति सतर्कता एवं सही समय पर उचित प्रबंधन कर इस गंभीर रोग से बच्चों को आसानी से बचाया जा सकता है। डायरिया के लक्षण दिखते ही मरीज तथा उसके घरवालों को सजग हो जाना चाहिए। प्राथमिक उपचार के रूप में ओआरएस का घोल दिया जा सकता है जिससे निर्जलीकरण की स्थिति से बचा जा सके। अगर मरीज को इससे राहत न मिले तो बिना विलम्ब किये तुरंत मरीज को चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। ताकि शीघ्र इलाज की समुचित व्यवस्था हो सके। इसमें विलम्ब जानलेवा साबित हो सकता तथा डायरिया से मरीजों की मृत्यु भी हो सकती है। डायरिया से होने वाली मौत का प्रमुख कारण उपचार में देरी:-एसीएमओ डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, डायरिया के लक्षण दिखने पर बच्चों को ओआरएस का घोल देना चाहिए। यदि ओआरएस के सेवन के बाद भी रहे तो अविलम्ब मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं तथा उचित उपचार कराना चाहिए।            उन्होंने कहा कि नीम हकीम द्वारा बताये गए उपायों से बचना चाहिए तथा चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। डायरिया से होने वाली मौत का प्रमुख कारण उपचार में की गयी देरी होती है। उन्होंने बताया कि जिले में डायरिया के बेहतर प्रबंधन तथा लोगों के बीच इसके लिए जागरूकता फैलाई जा रही है। यदि कोई डायरिया से पीड़ित हो गया है तो तत्काल अपने नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडलीय या रेफरल अस्पताल में जाकर ओआरएस के पैकेट ले सकता है। या फिर आशा कार्यकर्ता से संपर्क कर सकता है। आशा कार्यकर्ताओं को भी ओआरएस के पैकेट बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। तीन प्रकार के होते है डायरिया:-जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. विनोद प्रताप सिंह ने बताया कि डायरिया मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट वाटरी डायरिया, जिसमें दस्त काफ़ी पतला होता एवं यह कुछ घंटों या कुछ दिनों तक ही होता है। इससे निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) एवं अचानक वजन में गिरावट होने का ख़तरा बढ़ जाता है। दूसरा एक्यूट ब्लडी डायरिया जिसे शूल के नाम से भी जाना जाता है। इससे आंत में संक्रमण एवं कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। तीसरा परसिस्टेंट डायरिया जो 14 दिन या इससे अधिक समय तक रहता है। इसके कारण बच्चों में कुपोषण एवं गैर-आंत के संक्रमण फ़ैलने की संभावना बढ़ जाती है। चौथा अति कुपोषित बच्चों में होने वाला डायरिया होता है जो गंभीर डायरिया की श्रेणी में आता है। इससे व्यवस्थित संक्रमण, निर्जलीकरण, ह्रदय संबंधित समस्या, विटामिन एवं जरूरी खनिज लवण की कमी हो जाती है। दूषित जल व स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी:-डॉ. विनोद प्रताप सिंह ने बताया कि डायरिया का प्रकोप पांच साल तक के बच्चों में अधिक देखने को मिलता है।इसकी रोकथाम को लेकर साफ-सफाई भी जरूरी है। साफ-सफाई नहीं रहने के कारण बच्चों में कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इससे बचाव जरूरी है। गर्मियों में बच्चे अक्सर प्यास लगने पर कहीं से भी पानी पी लेते हैं, जिससे इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है। दूषित जल का सेवन, साफ-सफाई की कमी इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं। इसलिए बच्चों को खाना खिलाने से पहले अच्छी तरह उनका हाथ धो लेना चाहिए। खाना बनाते व परोसते समय सफाई रखनी चाहिए। बच्चों को शौच के बाद साबुन से हाथ धोने की आदत डायरिया से बचाव के लिहाज से जरूरी है। बच्चों को दस्त की समस्या होने पर किसी दवा से पहले उन्हें पानी की कमी से बचाएं।
इन लक्ष्णों का रखें ध्यान:-
डायरिया के शुरुआती लक्षणों का ध्यान रख आसानी से पहचान की जा सकती है:-
– लगातार पतले दस्त का होना
– बार-बार दस्त के साथ उल्टी का होना
– प्यास का बढ़ जाना
– भूख का कम जाना या खाना नहीं खाना
– दस्त के साथ हल्के बुखार का आना
– दस्त में खून आना जैसे लक्षण।

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