फाइलेरिया एक खतरनाक बीमारी, दवाओं का सेवन करना ही एकमात्र विकल्प:- सीएस

बक्सर:- राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत जिले में फाइलेरिया पर नकेल कसने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयासरत है। पूरे विश्व में 2030 तक फाइलेरिया का पूरी तरह से सफाया करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लेकिन, स्वास्थ्य विभाग ने बिहार समेत पूरे देश में 2027 तक इस पर नियंत्रण का लक्ष्य रखा है। जिसको लेकर जिले में विभिन्न अभियान चलाए जा रहे हैं। इनमें से एक है सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान। जिसके लिए जिले में अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है। ताकि, आगामी 10 अगस्त से जिले में एमडीए राउंड का संचलन किया जा सके। लेकिन इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए केवल स्वास्थ्य विभाग के अभियानों से ही काम नहीं चलेगा। इसके लिए अब लोगों को भी आगे बढ़ कर फाइलेरिया उन्मूलन के इस अभियान में शामिल होना होगा। ताकि, हम अपनी आगामी पीढ़ियों को इस खतरनाक बीमारी से बचा सकें। दवाओं का सेवन करना इस बीमारी से बचाव का एक मात्र विकल्प:-सिविल सर्जन डॉ. सुरेश चंद्र सिन्हा ने बताया कि फाइलेरिया एक संक्रामक रोग है, जो मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है। जिसके कारण किसी भी उम्र का व्यक्ति ग्रसित हो सकता है। मच्छरों के काटने के कारण माइक्रो फाइलेरिया लार्वा शरीर में लिम्फेटिक और लिम्फ नोड्स में चला जाता है। जो कई सालों तक शरीर में एडल्ट वर्म में विकसित होते रहते हैं। फाइलेरिया के लक्षण आठ से 12 साल तक के बीच उभर कर सामने आते हैं। लेकिन, तक तक मरीज के शरीर को यह खराब कर चुकी होती है।          इस बीमारी को अनदेखा करना कभी कभी मरीज को दिव्यांग भी बना सकता है। जिसका कोई भी इलाज नहीं हो पाता। इसलिए कहा जाता है कि इस बीमारी से बचाव के लिए फाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन करना ही एकमात्र विकल्प है। हाथीपांव का अभी तक कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं:-एसीएमओ सह जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि फाइलेरिया में व्यक्ति को हाथ-पैर में सूजन की शिकायत होती या फिर अंडकोष में सूजन आ जाती है। महिलाओं के स्तन के आकार में परिवर्तन हो सकता है। हालांकि, अभी तक इसका कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन शुरुआती दौर में रोग की पहचान होने पर इसकी रोकथाम की जा सकती है। संक्रमित होने के बाद मरीजों को प्रभावित अंगों की सफाई सहित अन्य बातों को समुचित ध्यान रखना जरूरी होता है। साथ ही, नियमित व्यायाम कर मरीज अपने पैरों के सूजन को कम कर सकते हैं। इसके अलावा मरीज सोने समय नियमित रूप से मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और अपने पैरों के नीचे तकिया या मसनद का भी प्रयोग करें। जिससे सोते समय उनके पैर ऊपर रहे। उन्होंने बताया कि जिले में जल्द ही एमडीए राउंड का शुभारंभ किया जाएगा। जिसमें जिले के हर एक योग्य लाभुकों को दवाओं का सेवन करना अनिवार्य है। ताकि, भविष्य में वो फाइलेरिया की चपेट में आने से स्वयं के साथ अपने परिजनों को बचा सकें। जिले में हाथीपांव के कुल 1611 मरीज हैं मौजूद:-वीबीडीसीओ पंकज कुमार ने बताया कि मार्च 2024 तक जिले में कुल 1611 हाथीपांव के मरीज हैं। जिनमें छह मरीज ऐसे हैं, जिनको पिछले वर्ष हुए नाइट ब्लड सर्वे में डिटेक्ट किया गया था। सबसे अधिक हाथीपांव के मरीज इटाढ़ी प्रखंड में है। जिनकी संख्या 274 है। उसके बाद डुमरांव में 243, सिमरी में 224, ब्रह्मपुर में 219, सदर प्रखंड में 133, राजपुर में 122, नावानगर में 121, चौसा में 102, चौगाई में 79, केसठ में 61 व चक्की में 33 मरीज हैं। वहीं, फाइलेरिया के हाईड्रोसिल मरीजों की बात करें तो इनकी संख्या जिले में 683 है। जिनमें राजपुर में 131, इटाढ़ी में 177, नावानगर में 107, डुमरांव में 77, चौगाई में 67, चौसा में 50, सदर प्रखंड में 43, ब्रह्मपुर में 41, सिमरी में 33, केसठ में दो और चक्की में एक मरीज हैं। हालांकि, हाइड्रोसिल के 146 मरीजों का ऑपरेशन किया जा चुका है।

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